Memories

Memories

Whenever someone or we make mistakes, we usually store that memory in our minds. We may forget it for some time but it vividly comes back in response to some events or circumstances. Whenever that memory is retrieved, we go through that guilt, consequence/punishment, and anger feeling again. One mistake can make us feel guilty multiple times. For one past mistake that has become a memory, we punish ourselves and others numerous times.
Many studies have shown that we retrieve bad memories more often than good memories.
Also, evidence shows that memories are not reliable. Unintentionally we add lies to it. We describe our memories differently in different environments, for different listeners, and at different times.
We perceive situations the way we like. We store these perceived conclusions in our minds. Our mind fills with all these notions we perceive as per our convenience or ego satisfaction.
Even good memories are not good all the time. For example, a happy memory of parents with their child may become very depressing if they lose the child.

One way to replace bad memories with good ones is to pay attention to the details of that memory, write it down, try to get some insight or lessons from it, and move forward in life. At some point, we need to introspect, clean our minds, and fill them with universal love and happiness to live a meaningful life. Happy, loving memories bring mental well-being.
Neither good nor bad memories are good for spiritual well-being. In Dharana, Dhyan, and Samadhi(meditation), the goal is to observe and work with equanimity without any attachment to anything. So, memories are an obstacle in the path of Samadhi.
Memories are vrittis. We need to remove vrittis and sanskars to attain samadhi.

जब भी हम कोई गलती करते हैं या कोई और कुछ गलती करता है तो हम उसको अपने दिमाग में याद बनाकर रख लेते हैं1 थोड़ी देर के लिए हम उसको भूल जाते हैं पर वह दोबारा से ध्यान में आती है ,जब भी कोई ऐसा एनवायरमेंट होता है या सरकमस्टेंस होते हैं या ऐसी घटना होती है कि हमें वह याद दोबारा से आ जाती है और जब-जब भी हम उस याद को, अगर वह अच्छी नहीं है, दोबारा से लाते हैं तो हम अपने अंदर कुछ ऐसी भावनाएं लाते हैं जैसे गुस्से की1 यह हम अपने को सजा देते हैं या दूसरे को सजा देते हैं 1 गलती एक बार होती है लेकिन उसे जितनी बार हम याद करते हैं उतनी बार उसकी सजा हम अपने को भी देते हैं और जिससे गलती हुई होती है तो उसको भी देते हैं1 तो एक ही गलती की सजा चलती रहती है, चलती रहती है, चलती रहती है1 एक ही गलती हमें कई बार सजा देती है, कई बार हमें अपराध बोध से ग्रस्त करती है1
काफी शोधों ने बताया है कि हम जो अच्छी यादें नहीं है उनको ज्यादा याद करते हैं1 पुरानी अच्छी यादें इतनी जल्दी-जल्दी नहीं आती है पर जो बुरी यादें हैं वह बार-बार दिमाग में आती हैं1 कुछ तथ्य यह भी बताते हैं कि जो हमारी यादें हैं वह बहुत विश्वसनीय नहीं है1 हम जानबूझकर उसमें कुछ झूठ मिला देते हैं1 हम जिस जगह पर हैं,आसपास का वातावरण कैसा है, हमारे सुनने वाले लोग कैसे हैं, वक्त कैसा है, उसके हिसाब से हम अपनी यादों में कुछ मिलते रहते हैं और अलग-अलग तरीके से उसे बताते हैं1 हमारे आसपास जो वातावरण है, उसको जैसा हम आत्मसात करना चाहते हैं वैसा करते हैं और फिर हम इसको यादों की तरह अपने दिमाग में बिठा लेते हैं1 हमारा दिमाग इन सारी यादों से भरा पड़ा है जिनको हम अपनी सुविधा अनुसार या अपने अहं को खुश करने के लिए दिमाग में भर के रखते हैं1
एक और बात है कि जो अच्छी यादें होती हैं वह भी हमेशा अच्छी नहीं रहती जैसे मान लो किसी मां-बाप की उनके बच्चों के साथ बहुत अच्छी याद है, लेकिन अगर वह बच्चा दूर चला जाता है, बीमार है, यह इस दुनिया में नहीं है, तो वह अच्छी याद अब डिप्रेशन भी दे सकती है1
एक तरीका जो की बुरी यादों को अच्छी यादों से बदलने का है वह यह है कि उसको ध्यान से हम समझे, उसको लिखें और उससे कुछ आत्मसात करें और उससे कुछ पाठ पड़े और फिर जिंदगी में आगे बढ़े1 हमें अपने अंदर झांक के देखना पड़ेगा, अपने दिमाग को खाली करना पड़ेगा और फिर उसको अच्छी यादों से भरना पड़ेगा, उसको विश्व में सबके लिए प्यार और खुशी से भरना पड़ेगा जिससे हम एक अच्छी मकसद वाली जिंदगी को जी सकें1 अपने दिमागी स्वास्थ्य के लिए अच्छी यादें बहुत जरूरी हैं1

एक मंत्र है- ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव
इसका मतलब है कि हमें खुद को तामसिक चीजों से पहले खाली करना पड़ेगा तभी उसमें सात्विक चीज,अच्छे विचार आएंगे1 जब हम गंदे विचार हटाएंगे तो अच्छे विचार लाने की उसमें जगह बनेगी1
और स्पिरिचुअलिटी के रास्ते में तो किसी भी तरह की यादें ठीक नहीं है ,अच्छी हो चाहे बुरी हो, कोई भी याद ठीक नहीं है क्योंकि धारणा, ध्यान, और समाधि का जो मकसद है वह यह है कि समत्व की भावना से हम सब देखें और काम करें, किसी चीज से मोह ना हो1
जो अष्टांग योग है उसमें कहा गया है कि किसी भी चीज से मोह नहीं होना चाहिए चाहे वह अच्छी हो चाहे बुरी हो1 समाधि के रास्ते में तो यादें रास्ते का पत्थर है, किसी तरह की याद नहीं होनी चाहिए1

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Bharti Raizada