Chhath-Chhath parva ( Surya shasti or Skanda Shasti) can well be regarded as the state festival of Bihar, where it goes on for four days. Outside of India, Chhath is mainly celebrated by the Bhojpuri and Maithili speaking community apart from the Nepalese Hindus. It assumes a joyous and colorful form as people dress up in their best clothes and gather by rivers and other water bodies to celebrate Chhath. Many devotees take a holy dip at dawn before preparing the ritual offerings or ‘prasad,’ which mainly comprise ‘Thekua,’ a hard and crude but tasty wheat-based cake usually cooked on traditional earthen ovens called ‘chulhas.’ The divine offerings are placed on circular trays woven out of bamboo strips called ‘dala’ or ‘soop.’ Women adorn new clothes, light lamps and sing devotional folk songs in honor of ‘Chhat Maiya’ or the holy river Ganga.
After sunset, devotees return home to celebrate ‘Kosi’ when earthen lamps or ‘diyas’ are lit in the courtyard of the house and kept beneath a bower of sugarcane sticks. Serious devotees maintain a strict anhydrous fast of three days.
The 4 Days of Chhath
1.The first day of Chhath is called ‘Nahai Khai,’ which literally means ‘bath and eat’ when devotees bathe in the river, preferably a holy one such as the Ganga and bring home the water to cook food offerings for the Sun God.
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On the second day called ‘Kharna,’ the devotees observe 8-12 hours of anhydrous fast and end their ‘vrat’ in the evening after performing puja with the ‘prasad’ offered to Surya. This normally consists of ‘payasam’ or ‘kheer’ made rice and milk, ‘puris,’ fried bread made of wheat flour, and bananas, which are distributed to one and all at the end of the day.
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The third day is also spent in worship and preparing ‘prasad’ while fasting sans water. This day is marked by the elaborate evening ritual called the ‘Sandhya Arghya’ or ‘evening offering.’ The offerings are served to the setting sun on bamboo trays that has ‘Thekua,’ coconut, and banana among other fruits. This is followed by the ‘Kosi’ ritual in homes.
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The fourth day of Chhath is considered the most auspicious when the final morning ritual or ‘Bihaniya Arghya’ is performed. The devotees along with their family and friends congregate on the bank of the river to offer ‘arghyas’ to the rising sun. Once the morning ritual is over, devotees break their fast by taking a bite of ginger with sugar. This marks the end of the rituals as joyous celebrations ensue.
Legends Around Chhath Puja
It is said that in the times of the Mahabharata, Chhath Puja was performed by Draupadi, the wife of Pandava Kings. Once during the long exile from their kingdom, thousands of wandering hermits visited their hut. Being devout Hindus, the Pandavas were obliged to feed the monks. But as exiles, the Pandavas were not in a position to offer food to so many hungry hermits. Seeking a quick solution, Draupadi approached Saint Dhaumya, who advised her to worship Surya and observe the rituals of the Chhath for prosperity and abundance.
'उगते सूरज की पूजा' तो संसार का विधान है, पर केवल और केवल हम 'भारतवासी' अस्ताचल सूर्य की भी अराधना करते हैं, और वो भी, उगते सूर्य से पहले। अगर 'उदय' का 'अस्त' सांसारिक नियम है, तो 'अस्त' का 'उदय' प्राकृतिक और आध्यात्मिक सत्य।
संसार में कहीं भी और कभी भी ऐसी प्रकृति की पूजा एवं ऊर्जा के अक्षय श्रोत का ऐसा जय जयकार नहीं देखने और सुनने को मिला। सनातन धर्म की यही छठा इसे औरों से भिन्न, आगे और महान बनाती है।
प्रकृति के इस स्वरूप और ऊर्जा के अक्षुण्ण श्रोत, गो धूलि के रक्तिम रवि' भगवन भास्कर की अराधना का महापर्व 'छठ'
छठपूजा- अन्धविश्वास के बढते कदम---डा मुमुक्षु आर्य
छठ पूजा का त्योहार जो पहले मुख्य रूप से बिहार के कुछ भागों मे मनाया जाता था,अब देश के कई भागों में मनाया जाने लगा है । छठ पूजा अभी भी बिहार के प्रत्येक जिले मे पूर्ण रूप से नही मनाया जाता है। घर परिवार वाले प्रायः छठ पूजा के लिए नव दम्पति को दबाव देते है और नही मनाने पर उन्हें तिरस्कृत व ओछे नजरो से देखा जाता है | सूर्यपूजन की जो विधी और महात्म ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्मखंड मे लिखा है उसमें भी छठ मईया का नाम तक नही । सूर्य पुल्लिंग है जबकि छठ मईया स्त्रीलिंग , फिर सूर्य पूजन का नाम छठ मईया होना क्यो और कैसे सम्भव है ?
कुछ लोगों का मानना है कि छठ मैया सूर्य की बहिन है !! भला सूर्य की कोई बहिन कैसे हो सकती है ? हां सूर्य का पिता जरुर है जिसने उसको उत्पन्न किया है और वह है परमपिता परमेश्वर । सब मनुष्यों को उसी की पूजा अर्थात योगाभ्यास द्वारा उपासना करनी चाहिए । यह विडम्बना ही है कि उस एक सर्वव्यापी परमात्मा की उपासना व वेदादि शास्त्रों का स्वाध्याय छोड लोग नाना प्रकार के काल्पनिक देवी देवताओं की पूजा व पुराण आदि अनार्ष ग्रन्थों को अधिक महत्व देने लगे हैं !
बिहार मे कहा जाता है कि छठ मईया साल मे दो बार आती है ! प्रश्न उठता है बाकी के पूरे साल कहाँ चली जाती है ? उनके आने जाने की सूचना सर्वप्रथम किसे मिली थी ? और प्रत्येक वर्ष आने जाने की सूचना किसको मिलती है ?? अगर सच मे छठ मईया से माँगी हुई मन्नत पूरी होती है तो ये लोग आतंकवादियो की मौत और उनके ट्रेनिंग सेन्टरों की बर्बादी क्यो नही मांगते ? रिश्वतखोर और भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियो और कर्मचारियो के लिए सजा क्यो नही मांगते ? गौहत्या करने वालो के लिए प्राणदंड क्यो नही मांगते ? काले धन रखने वालो के लिए मौत क्यो नही मांगते ? क्या ये लोग किसी शुभ मुहूर्त का इन्तजार कर रहे है ?
छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं। धीरे-धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है। ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है। कहा जाता है कि छठ माता महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूर्य नामक किसी ऋषि से शादी के पहले के सम्बन्ध से गर्भवती हो जाती है और कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है। महाभारत की इस घटना को इस दिन सूर्य वरदान के रुप में मंचित किया जाता है । जिसने अब परम्परा का रुप ले लिया है । शुरू में केवल वे औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सकें ।अश्लीलता फैला कर पुरूषों को आकर्षित करना ही अर्ध्य देने का अर्थ है।सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके।ये अंधविश्वास और अनीति की पराकाष्ठा है जिसे अब त्योहार का रुप दे दिया गया है।
उन गायको को क्या कहा बजाए जिन्होने संगीत जैसी पवित्र विद्या को केवल मात्र व्यापार व धन कमाने का साधन बना रखा है और छठपूजा पर दिन रात अश्लील और वेद विद्या विरोधी गाने गा कर संगीत को अधर्म के दलदल मे गोते मरवा रहे हैं । क्या पैसे के सामने धर्म का कोई महत्व नही ? नेताओं को जनता के वोट चाहिए और मीडिया को अपनी टी आर पी , धर्म जाये भाड में !
सूर्य पूजा का वास्तविक अर्थ है सौर उर्जा के विज्ञान को अच्छी तरह जानकर उससे पूरा पूरा लाभ उठाना जैसे विद्युत उत्पादन, धूप स्नान आदि । आस्था के नाम पर ऋषिमुनियों की इस धरती पर सब ओर पाखंड का ही बोलबाला हो चला है ! मूर्तियों के हार श्रंगार, पूजा अर्चना, विसर्जन, जानवरों की कुर्बानी व अन्धपरम्परायों को ही लोग धर्म व मुक्ति का साधन मानने लगे हैं !
गुरु नानक देव जी ने जब हर की पौड़ी पर सूर्य की तरफ पीठ करके अंजुली में पानी उठाकर पश्चिम की तरफ फेंकना शुरू किया तो हरिद्वार के पंडों ने उन्हें मूर्ख बताकर पूर्व में उगते हुए सूर्य की तरफ पानी डालने के लिए कहा।गुरु नानक देव ने कहा कि मैं तो लाहौर के पास अपने खेतों को पानी पहुंचा रहा हूं । उस पर पंडों ने कहा तुम्हारे यहां से पानी देने पर लाहौर कैसे पहुंचेगा ? गुरु नानक देव ने जवाब दिया जब तुम्हारा जल करोड़ों मील दूर सूरज तक पहुंच सकता है तो लाहौर के खेत तो नजदीक हैं वहां क्यों नहीं पहुंच सकेगा।
छठ पूजा में लगे हुए तमाम मेरे भाई बहनों को विनम्र निवेदन है कि वे अपनी आस्था की ऊर्जा को सौर ऊर्जा के दोहन में लगाएं और इसके साथ ही अविद्या अंधकार से छुटकारा पाते हुए वैज्ञानिक चिंतन के द्वारा अपनी गरीबी और जहालत को भी दूर करें।
आइए हम सब मिलकर पाखंड खंडन की पताका फहरायें जिसे पहली बार महर्षि दयानंद ने हरिद्वार के कुंभ मेले में अकेले खड़े होकर अपने हाथों से फहराया था और अंधविश्वास में लिप्त लोगों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा था।