Cow

Cow cuddling increases self esteem and decreases fear. It gives relaxation and reduces stress and anxiety.
Cow is considered mother/Maa. Sitting near it gives peace, cuddling it relieves tension, its milk (curd, paneer, butter, ghee, buttermilk) and urine ( treatment of some diseases) are useful, cow dung is used as a fuel ( Gobar), antibacterial cleaner, plastering material to keep house cool during summer and warm during winter, and fertilizer. Cow urine has antimicrobial properties. It is a very tolerant animal. It does not behave violently. Sitting near a cow gives a very comforting feeling as its body temperature is little more than humans and its heart rate is usually same or little less than humans.

Cowdung%20slippers
Slippers made of cowdung

Indigenous Bhartiya cow breeds ( Bos Indicus ) are Sahiwal, Red Sindhi, Tharparkar, Rathi, Gir, Khillar, Deoni, Kangayam, Kenkatha, Gaolao, Hariana, Hallikar, Kankrej, Nagori, Krishnavalli,Amritmahal, Panwar, Malvi, Bachaur, Mewati, Kosi, Siri, Bargur, Dangi, Punganur, Umblacheri, Ongoli, Gangatheeri, etc.Their common feature are a hump, slender legs, dropping ears, long face, and straight up thorns. Their milk is called A2 type.

Hindus consider cow as a mother and call it Gaumata.

Krishn had many cows. He used to take cows for grazing. Surabhi was a special cow in this group of cows. One name of Krishn is Gopal ( Go plus paal= one who raises cow).
Kamdhenu cow appeared during Samundra manthan. Kamdhenu is a wish fulfilling cow.
Shiv had Nandi cow.
Rishi Jamadagni had Kamdhenu. It was stolen by Kshtriyas. Parshuram, son of Jamadagni, brought Kamdhenu back to his ashram.
KAmdhenu and her calf Nandini are mentioned in Raghuvamsha.
Kamdhenu was mentioned in the era of King Dilipa, father of King Raghu.

Gosukt is sixth Mandal of RIgved. It has 28 sukts which explain the importance, value, and use of cow.

Panchgavya is an Ayurvedic medicine. It contains cow milk, cow urine, cow dung, ghee, and dahi.

Bharti Raizada

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गाय का दूध हल्का पीला क्यों होता है?
* धार्मिक ग्रंथों में लिखा है "गावो विश्वस्य मातर:" - अर्थात गाय विश्व की माता है। गौ माता की रीढ़ की हड्डी मे सूर्य नाड़ी एवं केतु नाड़ी साथ हुआ करती है और जब वो धूप में निकलती तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्धारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है, जिसे स्वर्णक्षार कहते है। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय के दूध का रंग हल्का पीला या सुनहला होता है जिसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हो और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले है वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा। गौ माता का (गोधूलि वेला) में घर वापस लौटने का संध्या का समय अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गौ-औषधि है। माँ शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है और मानव समाज ने भी माँ शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो "माँ" शब्द गुंजायमान होता है। गौशाला में बैठकर किये गए यज्ञ, हवन,जप-तप का फल कई गुणा मिलता है। बच्चों को नज़र लग जाने पर गौ माता की पूंछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उतर जाती है। ऐसा उदाहरण पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नज़र लग जाने पर गाय की पूंछ से नजर उतारने का ग्रँथों में भी पढ़ने को मिलता है।
. सर्व ज्ञात है कि गौ की महिमा तो अपरम्पार है किन्तु फिर भी कुछ अनजान वैज्ञानिक तथ्य है जो जानने योग्य हैं। कहते है की गौमाता के खुर से उडी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है। पशुओं में बकरी, भेड़, ऊँटनी, भैंस इत्यादि का दूध भी काफी महत्व रखता है। हालाँकि केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण भैंस प्रजाति को प्रोत्साहन मिला है क्योकिं ये दूध अधिक देती है और इसमें वसा की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। इसके उलट गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होने के बावजूद कम मात्रा में प्राप्त होता है। दूध अधिक मिले इसके लिए गाय और भैंस के दूध निकलने की प्रक्रिया कुछ लोग क्रूर और अमानवीय तरीके से निकालते है। गाय का दूध निकालने से पहले यदि बछड़ा/बछिया हो तो पहले उसे पिलाया जाना चाहिए पर वर्तमान में लोग बछड़े/बछिया का हक़ कम करते है। साथ ही इंजेक्शन देकर दूध बढ़ाने का प्रयत्न करते है जो कि उचित नहीं है।
. प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के १४ रत्नों में एक), नंदिनी, पद्मा, कपिला आदि गायों का महत्त्व बताया गया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने असि, मसि एवं कृषि गौ वंश को साथ लेकर उनके महत्त्व मनुष्य को सिखाए। हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्रा से काल सर्प योग निवारण हो जाता है। कहते है की गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है क्योंकि गाय के चार पैर चार धाम माने गए है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते है उसी प्रकार यदि एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन बनती है। यही कारण है कि इसलिए हमारे यहाँ यज्ञ हवन अग्नि-होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता था। प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।
. गौ के गोबर से स्थान का लीपने से स्थान पवित्र होता है। गौ-मूत्र का पावन ग्रंथों अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाणभट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सश्रुतु संहिता इत्यादि में सुंदर वर्णन किया गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष नाश के लिए सर्वोत्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय के दूध में रेडियों विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है जिसमे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, दुग्ध, शर्करा, खनिज-लवण, वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते है। गाय का दूध उपयोगी रसायन का उत्पादन करता है, ऐसी जानकारियां वैज्ञानिकों शोध की एवं धार्मिक ग्रंथों में दर्शित है।
. आज भी कई घरों में गाय की रोटी रखी जाती है और कई स्थानों पर संस्थाएं गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही है। साथ ही यांत्रिक क़त्लखानों को बंद करने का आंदोलन, मांस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएं एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत है। यहाँ तक कि इस्लाम धर्म के गुरु मोहम्मद पैगंबर ने कहा था कि गाय का माँस हराम है क्यूंकि गाय केवल दूध देने के लिए है। दुःख की बात ये है कि उनकी ये सीख आज कोई मानने को तैयार नहीं है और गाय का भी राजनीतिकरण हो गया है। इसके अलावा कुछ लोग गाय को आवारा भटकने बाजारों में छोड़ देते है। उन्हें इनके भूख प्यास की कोई चिंता ही नहीं होती। लोगो को चाहिए की यदि गाय पालने का शौक है तो उनकी देखभाल भी आवश्यक है क्योकि गाय हमारी माता है एवं गौ रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।

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Wonders Of Cow Urine
Cow Urine Benefits
gavyam pavitram ca rasayanam ca pathyam ca hrdyam balam buddhi syata
aayuh pradam rakt vikar hari tridosh hridrog vishapaham syata
Meaning: Cow urine panchgavya is great elixir, proper diet, pleasing to heart, giver of mental and physical strength, enhances longevity. It balances bile, mucous and airs. Remover of heart diseases and effect of poison.
Today many AIDS patients are taking cow urine therapy. People who were suffering with migraine and headache for the past 15 years have recovered within six months of taking this therapy. Whether it is the question of relieving tension or improving the memory power. In the past few years the Cow Urine Treatment and Research Center, Indore has treated one and half lakhs of people. Out of the total patients 85 to 90 percent were patients of constipation there is an old saying that if the stomach is clean half of the diseases get cured automatically. The patient taking cow urine therapy says that he is enjoying sound health and passing bowels easily within one month of this therapy.
Cow urine has amazing germicidal power to kill varieties of germs. All germ generated diseases are thus destroyed.
According to Ayurveda the cause of all diseases is the imbalance in three faults (tri-dosas) i.e. mucous, bile and air. Cow urine balances the tri-dosas, thus diseases are cured.
Cow urine corrects functioning of liver. So, liver makes healthy pure blood. It gives disease resistance power to the body.
There are some micro nutrients in our body, which give life strength. These micro nutrients are flushed out through urine. Therefore gradually ageing steps in our body. Cow urine has all elements, which compensate for deficiency of nutrients in our body, which are required for healthy life. Thus Cow urine stops ageing process. So it is called an elixir and also life giving.
Cow urine contains many minerals especially Copper, gold salts, etc. It compensates for bodily mineral deficiency. Presence of gold salts protects body against diseases.
Mental tension hurts nervous system. Cow urine is called medhya and hradya, which means it, gives strength to brain and heart. Thus cow urine protects heart and brain from damages caused by mental tension and protects these organs from disorders and diseases.
Excessive use of any medicine leaves some residue in our body. This residue causes diseases. Cow urine destroys the poisonous effects of residues and makes body disease free.
Electric currents (rays) which are present in the environment keep our body healthy. These rays in form of extremely small currents enter our body through Copper in our body. We get Copper from cow urine. To attract these electric waves is quality of Copper. Thus we become healthy.
By acting against the voice of soul (immoral & sinful action), the heart and mind become narrow minded. Due to this the functioning of body is effected and causes diseases. Cow urine provides mode of goodness. Thus helps us to perform correct activities by mind. Thus protects from diseases.
In scriptures some diseases are said to be due to sinful actions performed in previous lives which we have to bear. Ganga resides in cow urine. Ganga is destroyer of sins, thus cow urine destroys such previous sins and so diseases are cured.
The diseases caused by entrance of ghosts in body are cured by intake of cow urine. The Master of ghosts is Lord Shiva. Lord Shiva holds Ganga on his head. Ganga is in cow urine also. Thus by taking cow urine, the ghosts get to see Ganga over their master’s head. So they are calmed and become peaceful. So they do not trouble the body. Thus, diseases caused by entrance of ghosts are also destroyed.
By regularly taking cow urine before sickness, we get so much immunity that any attack of diseases is repulsed.
Cow urine being miraculous poison destroyer, destroys the disease caused by poison (Toxin). Extremely dangerous chemicals are purified by cow urine. Cow urine provides immunity power by increasing resistance power against diseases in human body. It is anti toxin.
“Sarve rogaah hi mandagnau” All diseases begin with mandagni (Low fire i.e. digestive capacity). If fire is strong, diseases won’t occur. Cow urine keeps the fire strong.
How to use Gomutra ?
Gomutra can be used in the following ways as a spiritual healing remedy.
Direct Application:
Directly applying concentrated Gomutra on an affected body part. Drinking a few cc of Gomutra is also recommended as a means for spiritual healing.
Diluting it in water:
After putting a few cc of Gomutra in water, it can be sprinkled around the house to spiritually purify the premises. Alternatively, after adding a small amount of Gomutra in a bucketful of water, it can be used to have a bath. Below is a subtle diagram of the mechanism of action of Gomutra when used in bath water. It has been drawn by Mrs. Yoya Vallee, a seeker with advanced sixth sense of vision, and has been checked by His Holiness Dr. Jayant Athavale.
Table – Chemical contents of cow urine and cure of diseases as per them. Yes Cow Urine (Gomutra) Benefits are there. Check the science behind this with given below table.
S. No. Name of chemical Effect of chemical on diseases
1 Nitrogen N2 ,NH2 Removes blood abnormalities and toxins, Natural stimulant of urinary track, activates kidneys and it is diuretic.
2 Sulphur S Supports motion in large intestines. Cleanses blood.
3 Ammonia NH3 Stabilise bile, mucous and air of body. Stabilises blood formation.
4 Copper Cu Controls built up of unwanted fats
5 Iron Fe Maintains balance and helps in production of red blood cells & haemoglobin. Stabilises working power.
6 Urea CO(NH2)2 Removes blood abnormalities and toxins, Natural stimulant of urinary track, activates kidneys and it is diuretic.
7 Uric Acid C5H4N4O3 Removes heart swelling or inflammation. It is diuretic therefore destroys toxins.
8 Phosphate P Helps in removing stones from urinary track.
9 Sodium Na Purifies blood. Antacid
10 Potassium K Cures hereditary rheumatism. Increases appetite. Removes muscular weakness and laziness.
11 Manganese Mn Germicidal, stops growth of germs, protects decay due to gangrene.
12 Carbolic Acid HCOOH Germicidal, stops growth of germs and decay due to gangrene.
13 Calcium Ca Blood purifier, bone stregthener, germicidal, ?? Rakta skandak ??
14 Salt NaCl Sanyas vishamta ?? decreases acidic contents of blood, germicidal
15 Vitamins A,B,C,D,E Vitamin B is active ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive power.
16 Other Minerals Increase immunity
17 Lactose C6H12O6 Gives satisfaction. Strengthens Mouth, strengths heart, removes thirst and nervousness.
18 Enzymes Make healthy digestive juices, increase immunity.
19 Water (H2O) It is life giver. Maintains fluidity of blood, maintains body temperature.
20 Hipuric Acid CgNgNox Removes toxins through urine.
21 Creatinin C4HgN2O2 Germicidal.
22 Aurum Hydroxide AuOH It is germicidal and increases immunity power. It is highly antibiotic and anti-toxic
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अमरता केन्द्र
हे मनुष्य! तू गौ को कभी मत मार। इस निरपराध बेचारी गौ को कभी मत मार। तू चेताने वाला है, तुझे परमात्मा ने कुछ समझ, अक़्ल, बुद्धि दी है। इसलिए तुझे कहता हूं--तू गौ- घात कभी मत करना! तू ज़रा-सा अपनी समझ का उपयोग करेगा तो तुझे पता लग जाएगा कि यह गौ यद्यपि बड़ी भोली,बेचारी, बिल्कुल निर्दोष है, इसलिए इसे कोई भी कभी मार सकता है, मारने से यह मर जाएगी, कोई प्रतिरोध न करेगी, पर साथ ही यह इतनी महत्व शालिनी है, सब देवों की संबंधिनी और अमर पन का एक केंद्र है की इसका मारना अपना नाश करना है, इसका घाट करना आत्मघात है। यह गौ कहीं और नहीं, हमारे अंदर है। 'अदिति' आत्मशक्ति, है, वाणी है, अन्तरात्मा की वाणी है, अन्दर की आवाज है। इसे तुम जब आओगे तो बेशक यह चुपचाप दब जाएगी, पर इससे तुम्हारा आत्मा नष्ट हो जाएगा। 'अदिति' वाणी (यह आदित्य की बहिन) वसुओं--आत्मा की वासक अग्निओं से प्रकट होती है (इनकी पुत्री है) और मनुष्य के सब रूद्रों-प्राणों--की और सब चेष्टाओं की माता है। यह ऐसी अमृत वस्तु है कि इसे मारने का यत्न करने वाला खुद मर जाता है, और इसकी रक्षा करने वाला ही सुरक्षित रहता है। इसी अन्दर की 'गौ'कीकीकीकी प्रतिनिधि आधिदैविक में भूमि है, आदि भौतिक में राष्ट्र देवी है। और पशुओं में गौ माता है। हे चेतना वाले मनुष्य! तू समझ कि इन गौओं का भी घात कितना भयंकर परिणाम लाने वाला है। भूमि राष्ट्र और गायों की रक्षा करने में ही मनुष्यों की, मनुष्य -जाति की रक्षा है। देखना, इस भूमि गौ की, इस राष्ट्र-गौ की तथा इस गौ पशु की जरा भी हिंसा करने वाला कर्म तुझसे ना हो। जब कभी इन सर्वथा और अप्रतिरोधिनी गौओं की हिंसा करने का प्रलोभन आए तो याद कर लेना कि यह सब अमृत की नाभियां हैं और अपने- अपने क्षेत्र के आदित्यों, वसुओं और रुद्रों से सम्बन्धित दिव्य शक्तियां हैं। इनको मार कर तो कभी फूल- फल नहीं सकता, पर अन्त में सब बाह्य गौओं की तो अन्तरात्मा की वाणी है। इस गौ को तो कभी मत छेड़ना, इसे सदा पालना पहुंचना और इसकी आज्ञा को सदा मानना। अपना सर्वस्व स्वाहा करके भी इस गौ की रक्षा करना। इसे जरा भी नहीं दबाना। यदि इस अमृत- नाभि 'अदिति'गौ का रक्षण, पोषण और वृद्धि होती गई तो तू भी एक दिन अमृत हो जाएगा, देवों का राज्य पा जाएगा। देखना, इस सर्वथा अप्रतिरोधिनी परम शान्त गौ का तेरे यहां ज़रा भी तिरस्कार ना हो पाए, इसे ज़रा भी क्षति ना पहुंचने पाये।
वैदिक मन्त्र
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।।
प्र नु लोचन चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वशिष्ट।।ऋ॰८.१०१.१५

       वैदिक भजन ८८१A वां  
                भाग १  
             राग पहाड़ी  
 गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर  
     ताल कहरवा ८ मात्रा  

हे मनुष्य गौओं को
कभी मत मारा कर
तुझको चेताते रहते
सदा परमेश्वर (२) (२)
हे मनुष्य !....
गौ बेचारी भोली है
बिल्कुल निर्दोष है (२)
जब तक वह सामने है
उसका उपयोग है(२)
मारता है क्यों उसे
वसुधन ना गंवाया कर (२)
हे मनुष्य......
मारता रहेगा पापी
उससे क्या लड़ेगी (२)
भोली-भाली बेचारी
व्यर्थ मरेगी (२)
मिला है जो पूजित धन
उसको सम्भाला कर
हे मनुष्य......
महत्वशालिनी है
गौएं देव-सम्बन्धिनी
केंद्र अपनेपन का है
मानवों की संगिनी
दया, प्रेम, सत्कार
हृदयी प्रीत द्वारा कर (२)
हे मनुष्य .....
गौ आत्मशक्ति है
ना उस पे वार करना (२)
माता का घात करना
आत्माघात है अपना ‌‌ (२)
पश्चाताप कर लेना
ये पाप ना दोबारा कर
हे मनुष्य.......
२०.२.२००२
1.30 pm
वैदिक भजन ८८१ B वां
क्रमश: भाग २
हे मनुष्य ! गौ को कभी मत मारा कर तुझको चेताते रहते सदा परमेश्वर (२)
हे मनुष्य......
एक और गौ है
जिसका अन्तर्निवास है (२)
वेदवाणी -आत्मशक्ति
सूर्य-सम प्रकाश है (२)
जो है अदिति स्वरूप
उसको उच्चारा कर (२)
हे मनुष्य!.....
इसे जो दबाओगे तो
दबी ही रह जाएगी (२)
आत्मा जो होगा नष्ट
स्थान कहां पाएगी (२)
अन्तरात्मा की वाणी को
कभी ना दबाया कर ।।
हे मनुष्य!.......
आदित्यों की बहन है
वाणी वसुओं की वासक
अग्निओं से प्रकट होती
दिव्यतम विभासक
वैर, द्वेष, वैमनस्य से
इसको बचाया कर (२)
हे मनुष्य........
शब्दार्थ:-
गौ=वाणी(इस प्रकरण में गौ का अर्थ)
अदिति=सृजनात्मक शक्ति
वासक=निवास करने वाली
वैमनस्य= शत्रुता

      वैदिक भजन ८८१ C  
         अन्तिम भाग ३  

हे मनुष्य ! गौओं को कभी मत मारा कर तुझको चेताते रहते सदा परमेश्वर
हे मनुष्य !........
एक और गौ है तेरी पवित मातृभूमि(२)
स्वतंत्र-सुरक्षित रख, यह तो है माधुरी
मातृ-रिपुओंको तू युद्ध में पछाड़ा कर(२)
हे मनुष्य !......
कर मनुष्य जातिरक्षा
रक्षा गोओंकी करके (२)
हिंसकों से रक्षा कर के
हृदयों में प्यार भर के
अप्रतिरोधिनी गौएं
प्राणाधिक पाला कर
हे मनुष्य !......
घात-लोभ जब भी आए
भूलना तू ना कभी (२)
अमृत नाभियां है ये
दिव्यशक्तियां सभी(गाय,वाणी,भूमिआदि)
वसु आदित्य रुद्र
शक्तियों को धारा कर (२)
हे मनुष्य !.....
बाह्य गौओं की गौ है
अन्तरात्मा वाणी ‌(२)
हनन इसका करने में
अत्यधिक है हानि (२)
पाल-पोस के सुनिश्चित
इसकी आज्ञा माना कर (२)
हे मनुष्य !.....
अमृत-नाभि मां अदिति का
आशीष प्राप्त कर (२)
एक दिन अमृत बन के
देव-तुल्य राज कर
मां के हिंसकों के लिए
रूद्ररूप धारा कर (२)
हे मनुष्य !.......इति।।
शब्दार्थ:-
अप्रतिरोधिनी=बदला ना लेने वाली
अमृत नाभि= अमृत का केंद्र
रिपु=दैत्य,राक्षस
घात= मारना, हिंसा करना
रुद्र रूप=भीषण रूप
पवित=निर्मल, पवित्र

Diseasescuredbycowurine

Gai%20Charan

Cow%20hugging

"If eating goat meat is not wrong, how does eating cow meat become wrong?" questions modern secular writer Shobhaa De!
Shobhaa De is a well-known writer, often celebrated for her opinions. Her argument here is:
"Meat is meat, whether it’s from a cow, a goat, or any other animal. Then why do Hindus discriminate between animals? Why is killing a goat acceptable but killing a cow considered wrong? Isn’t this hypocrisy and ignorance?"
Let’s address her logic with these responses:

Response No. 1:
Shobhaa De ma’am, you make an interesting point!
But let’s consider this:
Your father, husband, brother, and son—aren’t all of them men?
Yet, why do you behave differently with each of them?
For reproduction, you need your husband alone, don’t you?
Can you behave with your father, brother, or son the same way you do with your husband?
If intimacy is reserved only for your husband, wouldn’t it be hypocrisy or ignorance on your part not to extend it to others?
Relationships such as a father, husband, brother, or son are defined by emotions, respect, and social beliefs, not merely biological identities.
Similarly, the way we regard animals like cows and goats is shaped by cultural, emotional, and spiritual significance, not just their physical existence.

Response No. 2:
Here’s another question for you:
You and your family likely consume milk from cows or buffaloes in the form of coffee or tea, right?
But would you prepare coffee using milk from a dog, pig, or monkey?
If, according to your logic, milk is milk regardless of its source, why wouldn’t you do this?
Doesn’t this make your argument invalid and hypocritical?
The issue here isn’t about meat. It’s about beliefs and sentiments.
Just as familial relationships are built on values and trust, the way we treat cows, goats, or other animals reflects our cultural beliefs and emotional attachments.

Response No. 3:
A British man once asked Swami Vivekananda, "Which animal produces the best milk?"
Swamiji replied, "Buffalo milk is the best."
The man then asked, "But don’t you Indians regard the cow as supreme? Isn’t it the best?"
Swami Vivekananda smiled and said, "You’re asking about milk quality, but we consider the cow as our mother, not merely as an animal."
Likewise, while the cow may seem like just another animal to some, for Hindus, it holds sacred value as a mother figure.
A Final Question for Shobhaa De:
"Save the tiger!"—the person advocating for it is seen as a social servant.
"Save the dogs!"—that person is hailed as an
animal lover.
But "Save the cow!"—suddenly, that person is labeled a religious fanatic. Why?
The real tragedy is that such criticisms often come from our own people, who fail to respect the values and sentiments embedded in our culture.