तीन देवियां
इळा,सरस्वती और मही इन तीनो देवियों की चर्चा वेदों में कई स्थलों पर आती है। कहीं-कहीं मही के स्थान पर तीसरी देवी भारती है। एवं महि और भारती पर्यायवाची हैं।
यह तीनों देवियां राष्ट्रयज्ञ में आसीन होनी चाहिएं, तभी राष्ट्र उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच सकता है।
'इळा'संपदा की प्रतीक है। 'इळा' शब्द वैदिक कोष निघंटु में भूमि, अन्न और गाय का वाचक है। भूमि, अन्न, और गाय तीनों विभिन्न संप्रदायों के ही रूप हैं। राष्ट्रीय के पास पर्याप्त भूमि होनी चाहिए, भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्नों के भंडार भी भरे होने चाहिए, और गायें एवं दूध दही माखन आदि भी राष्ट्र वासियों को यथेष्ट उपलब्ध होने चाहिएं।
दूसरी देवी सरस्वती है, जो विद्या की प्रतीक है। सरस्वती के लिए वेद में कहा गया है कि वह ज्ञान की बाढ़ लाती है, सूनृताओं को प्रेरित करती है और सुमतियों को जागृत करती है। 'सरस्'का अर्थ है मधुर ज्ञानधारा। एवं सरस्वती प्रशस्त ज्ञान धारावाली है। राष्ट्रीय में ज्ञान-विज्ञान की धार सदा बहती रहनी चाहिए। इसके लिए राजा और प्रजा दोनों का सतर्क रहना अनिवार्य है।
तीसरी देवी 'मही' या 'भारती' है, जो संस्कृति की प्रतीक है।'मही'का योगार्थ है पूजित या पूजा की साधन भूत और भारती का योगार्थ है भरने वाली। उच्च संस्कृति से ही कोई राष्ट्रीय पूजित या सम्मानास्पद होता है। संस्कृति भरने का कार्य करती है। कोई राष्ट्र बाहर शरीर से कितना ही विकसित क्यों ना हो जाए श्लाघ्य संस्कृति के बिना खोखला रहता है।
यह तीनों प्रकाशमयी, प्रकाशदात्री एवं दिव्य गुणों से युक्त होने के कारण देवियां कहलाती हें। उक्त तीनों देवियां मयोभुव:' हैं, राष्ट्रीय में सुख चैन को उत्पन्न करने वाली हैं। इन्हें 'अस्त्रिध:'होकर राष्ट्र में निरंतर विद्यमान रहना है।
'बर्हि' का मूल अर्थ कुशा है। कुशा के बने आसन को भी बर्हि कहते हैं। यज्ञ में कुशा के आसन का प्रयोग होने के कारण यज्ञ भी बर्हि कहलाता है। यज्ञ कई प्रकार के होते हैं अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यंत कर्मकांडिक यज्ञ हैं। इसके अतिरिक्त ब्रह्म यज्ञ पितृ यज्ञ भूत यज्ञ अतिथि यज्ञ सिर्फ यज्ञ राष्ट्र यज्ञ आदि को भी यज्ञ कहते हैं। जो बर्हि शब्द के गृहीत हो सकते हैं।
इळा ,सरस्वती और मही यह तीनों शब्द वैदिक कोष में वाणी के भी वाचक हैं।'इळा'वह स्थूल वाणी है, जिसका सम्बन्ध हमारे जिह्वा आदि उच्चारण अवयवों से होता है। इसे 'वैखरी' वाणी कहते हैं। सरस्वती मन में रहने वाली विचारात्मक वाणी है, जो 'मध्यमा' वाक् कहलाती है। 'मही'आत्मा में प्रतिष्ठित वाक् है,जो 'परा' और 'पश्यन्ती' दो रूपों में रहती है।
अपनी इन तीनों वाणियों को हम प्रशस्त एवं सुखदात्री बनाकर अपने आध्यात्मिक विकास को भी सम्पन्न करना है।
आओ, इळा सरस्वती और मही इन तीनों देवियों को हम अपने व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवनयज्ञ का अंग बना कर चौमुखी विकास प्राप्त करें।
मन्त्र
इळा सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुव:।
बर्हि: सीदन्त्वस्त्रिध:।। ऋ॰१.१३.९
जय भारती जय भारती
जय भारती जय भारती
स्वर्ग ने थी जिस तपोवन की उतारी आरती॥
ज्ञान-रवी-किरणें जहाँ फूटीं प्रथम विस्तृत भुवन में
साम्य सेवा भावना सरसिज खिला प्रत्येक मन में
मृत्यु को भी जो अमर गीता गिरा ललकारती
॥जय भारती॥
ध्यान में तन्मय जहाँ योगस्थ शिव सा है हिमालय
कर रही झंकार पारावार वीणा दिव्य अव्यय
कोटि जन्मों के अधों को जाह्नवी है तारती
॥ जय भारती॥
कंस सूदन का सुदर्शन राम के शर भीम भैरव
त्याग राणा का शिवा की नीति बंदा का समर रव
ज्वाल जौहर की शिखा जिसकी विजय उच्चारती
॥जय भारती॥
असुर-वंश-विनासिनी तू खंग खप्पर धारणी माँ
ताण्डवी उस रुद्र् की तू अट्टहास विहारिणी माँ
शत्रु-दल की मृत्यु बेला आज तुझको पुकारती
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bhaarati maa kannatalli bhaagyOdaya kalpavalli
viSva Saamti viriyimcina cirupuvvula Sirasu maLLi
vaadhitraya bhavya vasana vimdhyaachala ViSada racana
kaaSmIrapu raSmi vadana nirmala guNa niKila sadana
sannuta himaSiKharamu vale unnata mastaka SObhini
paavana gamgaa nadi vale jIvana gItaadaayini
bhaarati bamgaru mumgiTa bhagavamtuDe paaraaDenu
Rshi samtati gomtu vippi Rkkulu chakkaga paaDenu
kshamataa kEtanamettenu samataa SamKhamunottenu
vitaraNa guNa gouravamuna viSvamunE mumcettenu
bhArati-mA-kannatalli.mp3
Maa_Bharati_sharada_janani_0.mp3