Fabric

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This is a 3d-4d painting on a special fabric. Watch the expressions changing as per the rhythm of the song. This is a wonder of electronic and digital programming, and is installed in one of the most famous temples, ISKCON.

साड़ी...नारी का वो सबसे सुंदर परिधान जो प्रतीक है भारतीय संस्कृति का,
विश्व साड़ी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं
साड़ी
इक दिन जैसे ही मैंने अलमारी खोली
मेरी प्यारी साड़ी मुझसे ये बोली
सुनो ज़रा इक बात ये मेरी
बोलो कब आएगी बारी मेरी
पहने तुमनें कितनें परिधान
एक मेरा ही तुम्हें न आया ध्यान
कभी मुझे भी बाहर तो लाओ
मुझे भी पहन ज़रा घूम तो आओ
मुद्दतें हुईं कभी कहीं मैं गई नहीं
बेकार सी पड़ी हूँ कब से यहीं
कभी मान सखी मेरा भी कहना
मैं निखारूँगी तुम्हें, तुम मुझसे संवरना
कितनें सुन्दर सुन्दर रंग हैं मेरे
और कितनी अलग अलग है मेरी पहचान
चंदेरी , पटोला, कांजीवरम
लहरिया, तांत और लिनेन
ढाकाई, जामदानी, कलमकारी
पोचमपल्ली, बोमकाइ और फुलकारी
सम्भलपुरी, बनारसी और पैठानी
कासवु, बनारसी और बाँधनी
शिफॉन, जॉरजेट और चिकनकारी
बोमकाई , मूंगा और बालूचेरी
माना की जीन्स, सूट पहनना है आसान
पर मेरी भी कुछ अलग ही है शान
कजरा गजरा चूड़ी बाली बिंदिया
ये सब हैं मेरी ही सखियाँ
सब हँस हँस कर मेरे संग है आतीं
रूप तेरा दूना कर जातीं
जब मेरा लहराता है आँचल
रुक जाते हैं उड़ते बादल
सुनकर बातें ये साड़ी की
मैं बोली ऐसा ना बोल सखी री
पहनूँगी तुम्हें अभी आज से ही
तो आओ साड़ी को दे इक नई उड़ान
बनाये इसे आधुनिकता की पहचान
करें अपनी संस्कृति का सम्मान
साड़ी से बढ़ता है हर नारी का मान....
साड़ी से बढ़ता है हर नारी का मान....

“साड़ी पुराण”
लगभग 30-35 वर्ष पहले अमूमन एक लड़की के जीवन में साड़ी की शुरुवात स्कूल की "फेयर वेल" पार्टी से होती थी ।
स्कूल के आखरी दिन साड़ी का उड़ता आँचल लहराते हुए सभी क्लासमेट्स के बीच छा जाने की चाहत में महीनों पहले से मम्मी की अलमारी , भाभी या चाची की कलेक्शन में से साड़ियाँ खंगाली जाती |
बड़ी मशक्कत से पसंद की साड़ी और उस मांगे हुए ब्लाउज़ की ऑल्टरेशन , मैचिंग की चूड़ियाँ जैसी ताम झाम की अति व्यस्तता के बीच फेयरवेल के चंद दिनों बाद होने वाले बारहवी बोर्ड के एक्जाम तक की याद न रहती |
पहली बार लपेटी हुई साड़ी जाने कैसे ढीली ढीली और कदमों के आगे दब दब जाती |
किसी अनुभवी की मदद से अनगिनत पिन लगाकर पहनाई गयी साड़ी घर के बड़ो के सामने आने पर लज्जाजनक असहज भाव लाती |
सबसे ज्यादा शर्मनाक साड़ी में अपने पिता और भाइयों का सामना करना होता |
खुद को चाहे साड़ी पहननी नही आती थी लेकिन लगातार पहनाने वाले को एक्सपर्ट सुझाव दिए जाते __
पल्ला लम्बा कर दीजिये न थोड़ा ,,
नीचे कितनी चुन्नट आयी ,
सैंडिल की हील साड़ी में छिपनी चाहिए |
एक आदमकद आईने में घूम घूमकर संतुष्ट होते ।
प्रायः किसी निर्धारित सहेली के घर सबका मिलना तय होता था | यहाँ से ये "साड़ी सेना" स्कूल के लिए कूच करने वाली थी |
सभी की शर्त होती कि साड़ी पहनकर स्कूटी नही चलाना है | कोई हमें स्कूल छोड़ दे । मानो सड़क में पूरा शहर साड़ी पहनी लड़की को देखने उमड़ने वाला है |
स्कूल के आखरी दिन साड़ी पहनने का रोमांच भी होता लेकिन स्कूल से बाहर कोई हमें साड़ी में देखे न इस बात का एहतियात भी |
खैर सेमीनार हाल में सभी आत्ममुग्धाए पल्ला लहराती अपनी अपनी सीट पर बैठ जाती |
24 घंटे पहले तक स्कूल कारीडोर में छोटी छोटी स्कर्ट में घूमती किशोर लडकियां यकायक साड़ी में तरुणी नजर आने लगती |
स्कूल के आखरी दिन से शुरू हुआ साड़ी का सफर फिर तो आगे चलकर सरस्वती पूजा ,भैय्या की शादी , बीएड की साड़ी , इंटरव्यू की साड़ी, सहेली की सगाई के पड़ाव तय करता बढ़ने लगता |
लडकियां अपनी शादी के समय भी साड़ियों की खरीददारी बड़े चांव से करती |
कोई भी स्त्री शादी -ब्याह , व्रत -त्यौहार किसी भी समारोह में साड़ी पहन कर ही व्यक्तित्व की उच्चतम भव्यता को प्राप्त करती है ।
सोचिये साड़ी न होती तो कितने गीत न बन पाते
"हुजूर इस कदर न इतरा के चलिए सरे आम आँचल न लहरा के चलिए" ,
"छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा" ,
"पल्लू लटके जी मारो पल्लू लटके" ,
"माँ मुझे आँचल में छिपा ले"
से लेकर
"साड़ी के फाल सा तुझे मैच किया रे" ।
कभी साड़ी का आँचल फैला फ़रियाद माँगती है ,
कभी सर पर आँचल रख सम्मान देती है ,
कभी पल्लू दाँतो में दबा लाज की सुर्खियां बिखेरती है ,
कभी तैश में आ पल्लू कमर में कस कर खोंसती है ,
कभी वात्सल्य में डूबी मीठी किलकारियों को आँचल में समेटती है ,
कभी चाभियों का गुच्छा छोर में बांध आधिपत्य का ठाठ दिखाती है ।
हमारे यहाँ प्रचलित कई सामजिक तंज भी साड़ी के इर्द गिर्द लिपटे हुए है जैसे....
माँ के आँचल से बाहर न निकला,
जोरू के पल्लू से बँधा हुआ है।
बॉलीवुड फिल्मों के एक्शन दृश्यों के क्लाइमेक्स में नायिका को ख़ास तौर पर साड़ी पहनाई जाती थी ।
हीरो की चोट से बहते लहू का प्राथमिक उपचार तो साड़ी के पल्लू को फाड़ कर ही न किया जाता है ??
जब तक नायिका बर्फीली वादियों में शिफॉन की साड़ी लहरा कर गीत न गाए यश चोपड़ा की फिल्मों का प्रेम अधूरा है ।
अलग - अलग क्षेत्र की साड़ियों की डिज़ाइन,
कपडे की विशेषता,
धागों की बुनावट और
बाँधने के भिन्न भिन्न तरीको की वज़ह से ये और भी लुभावनी हो जाती है ।
बनारसी साड़ी, तांत की साड़ी, कोटा चेक , मुलमुल , चंदेरी , संबलपुरी साड़ी , ओड़िसा प्रिंट , बंगाली तांत , कांजीवरम , मधुबनी , मणिपुरी , पटोला , बंधेज की गुजराती साड़ी, कोसा साड़ी, सिल्क साड़ी और हरदिल अजीज रेशमी शिफान ।
कोई भी समारोह हो महिलाओं की तैयारी और साड़ी का चुनाव महीने भर पहले से शुरू हो जाता है । मैचिंग के ब्लाउज़ से लेकर चूड़ियाँ तक ।
अन्य परिधानों के फैशन आते जाते रहेंगे लेकिन साड़ी की गरिमा कभी भी " आउट ऑफ ट्रेंड " नही हो पाएगी |
तभी तो कहा जाता है
साड़ी बिन नारी है कि नारी बिन साड़ी है
नारी की ही साड़ी है कि साड़ी की ही नारी है !