King Bhaskara Setupathy of Ramnad kingdom aka Greater Marava Dynasty, The hereditary guardian of Ram-setu Bridge.
Bhaskara Setupathi was one of the major contributor for Vivekananda's visit to Parliament of the World's Religions held in Chicago.
When Swami Vivekananda returned to India from Chicago in 1897, King Bhaskara Sethupathi of Ramanathapuram paid tribute to Swami and greeted him.
हिन्दुआसूरजमहाराणा_प्रताप
चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट काट,
करता था सफल जवानी को।।
कलकल बहती थी रणगंगा,
अरिदल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी,
चटपट उस पार लगाने को।।
वैरी दल को ललकार गिरी,
वह नागिन सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो बचो,
तलवार गिरी तलवार गिरी।।
पैदल, हयदल, गजदल में,
छप छप करती वह निकल गई।
क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर,
देखो चम-चम वह निकल गई।।
क्षण इधर गई क्षण उधर गई,
क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई।
था प्रलय चमकती जिधर गई,
क्षण शोर हो गया किधर गई।।
लहराती थी सिर काट काट,
बलखाती थी भू पाट पाट।
बिखराती अवयव बाट बाट,
तनती थी लोहू चाट चाट।।
क्षण भीषण हलचल मचा मचा,
राणा कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह,
रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी।।
भारत माता के लाडले सपूत महाराणा प्रताप की जन्म जयन्ती पर कोटि कोटि प्रणाम
437 years ago on Vijaydashmi of 1583 , the most important battle of this subcontinent was fought between Maharana Pratap Singh Of Mewar and Mughal forces of Akbar at Dewair.
In the next two days Pratap not only won Dewair but also regained Kumbhalgarh , Amet , Udaipur and all of Mewar except Chittor fort .
Pratap slaughtered 36,000 Mughals and destroyed 86 Mughal Thaanas.
The fury with which Pratap struck has been best expressed by British historian Col. James Tod -
Pratap made a desert out of Mewar.
Among Pratap’s main generals was an Oswal Jain Baniya , Bhaama Shah who led the right flank.
Among Pratap’s army were Bheels who had literally raised Pratap.
Hindus of Mewar United to defeat the barbarians from the desert death cult.
Pratap lived a free and just king till his Devlok Gaman in 1597.
Akbar never dared attack Mewar after Dewair.
Was it a coincidence that Pratap chose Vijaydashmi to avenge his ancestors or was Pratap following a divine path laid by his glorious ancestor Bhagwan Shree Ram ?
That is for all of us to figure out as we set out to celebrate yet another Parv of Vijaydhasmi.
Har Har Mahadev !!!!
Malta, a small European nation, had issued a 1 Kg silver coin making it the world’s heaviest coin so far. The silver coin was issued in 2003 features king, Maharana Pratap, as part of the Knights of Malta Series. “The coin is 5000 Lira and weighs 1 kg (silver). This coin, weighing one kilogram, is the largest coin in the world, on one side of which is the picture of Maharana Pratap and the date of his birth and death, and on the other hand is the symbol and name of the country of Malta. The Malta government had issued only 100 such coins. The honor given by a nation to a Hindu king of the sixteenth century, which is 6500 km away from us, shows the influence of Maharana on the world. Amazingly in our country, historians consider only intruders as great.
आखिर कौन थे ?
सम्राट पृथ्वीराज चौहान
पुरा नाम :- पृथ्वीराज चौहान
अन्य नाम :- राय पिथौरा
माता/पिता :- राजा सोमेश्वर चौहान/कमलादेवी
पत्नी :- संयोगिता
जन्म :- 1149 ई.
राज्याभिषेक :- 1169 ई.
मृत्यु :- 1192 ई.
राजधानी :- दिल्ली, अजमेर
वंश :- चौहान (राजपूत)
आज की पिढी इनकी वीर गाथाओ के बारे मे..
बहुत कम जानती है..!!
तो आइए जानते है.. #सम्राट #पृथ्वीराज #चौहान से जुडा इतिहास एवं रोचक तथ्य,,,
''(1) प्रथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष कि उम्र मे बिना किसी हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ ड़ाला था ।
(2) पृथ्वीराज चौहान ने 16 वर्ष की आयु मे ही
महाबली नाहरराय को युद्ध मे हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त की थी।
(3) पृथ्वीराज चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था ।
(4) महान सम्राट प्रथ्वीराज चौहान कि तलवार का वजन 84 किलो था, और उसे एक हाथ से चलाते थे ..सुनने पर विश्वास नहीं हुआ होगा किंतु यह सत्य है..
(5) सम्राट पृथ्वीराज चौहान पशु-पक्षियो के साथ बाते करने की कला जानते थे।
(6) प्रथ्वीराज चौहान 1166 ई. मे अजमेर की गद्दी पर बैठे और तीन वर्ष के बाद यानि 1169 मे दिल्ली के सिहासन पर बैठकर पुरे हिन्दुस्तान पर राज किया।
(7) सम्राट पृथ्वीराज चौहान की तेरह पत्निया थी।
इनमे संयोगिता सबसे प्रसिद्ध है..
(8) पृथ्वीराज चौहान ने महमुद गौरी को 16 बार युद्ध मे हराकर जीवन दान दिया था..
और 16 बार कुरान की कसम का खिलवाई थी
(9) गौरी ने 17 वी बार मे चौहान को धौके से बंदी बनाया और अपने देश ले जाकर चौहान की दोनो आँखे फोड दी थी ।
उसके बाद भी राजदरबार मे पृथ्वीराज चौहान ने अपना मस्तक नहीं झुकाया था।
(10) महमूद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर अनेको प्रकार की पिड़ा दी थी और कई महिनो तक भुखा रखा था..
फिर भी सम्राट की मृत्यु न हुई थी ।
(11) सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सबसे बड़ी विशेषता यह थी की...
जन्मसे शब्द भेदी बाण की कला ज्ञात थी।
जो की अयोध्या नरेश "राजा दशरथ" के बाद..
केवल उन्ही मे थी।
(12) पृथ्वीराज चौहान ने महमुद गौरी को उसी के भरे दरबार मे शब्द भेदी बाण से मारा था ।
गौरी को मारने के बाद भी वह दुश्मन के हाथो नहीं मरे..
अर्थार्त अपने मित्र चन्द्रबरदाई के हाथो मरे, दोनो ने एक दुसरे को कटार घोंप कर मार लिया.. क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था ।
आज सुनिए कहानी 'शुभ्रक' की।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था, जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।
एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा।
कुतुबुद्दीन स्वंय कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया। 'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।
जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया। उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू वहीं उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए।
मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा लगाते हुए लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!
राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था। उसमें प्राण नहीं बचे थे। सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया।
भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुगल परस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
नमन् स्वामी भक्त 'शुभ्रक' को
13 जुलाई/बलिदान-दिवस
बाजीप्रभु_देशपाण्डे का बलिदान
शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दू पद-पादशाही की स्थापना में जिन वीरों ने नींव के पत्थर की भांति स्वयं को विसर्जित किया, उनमें बाजीप्रभु देशपाण्डे का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
एक बार शिवाजी 6,000 सैनिकों के साथ पन्हालगढ़ में घिर गये। किले के बाहर सिद्दी जौहर के साथ एक लाख सेना डटी थी। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने अफजलखाँ के पुत्र फाजल खाँ के शिवाजी को पराजित करने में विफल होने पर उसे भेजा था। चार महीने बीत गये। एक दिन तेज आवाज के साथ किले का एक बुर्ज टूट गया। शिवाजी ने देखा कि अंग्रेजों की एक टुकड़ी भी तोप लेकर वहाँ आ गयी है। किले में रसद भी समाप्ति पर थी।
साथियों से परामर्श में यह निश्चय हुआ कि जैसे भी हो, शिवाजी 40 मील दूर स्थित विशालगढ़ पहुँचे। 12 जुलाई, 1660 की बरसाती रात में एक गुप्त द्वार से शिवाजी अपने विश्वस्त 600 सैनिकों के साथ निकल पड़े। भ्रम बनाये रखने के लिए अगले दिन एक दूत यह सन्धिपत्र लेकर सिद्दी जौहर के पास गया कि शिवाजी बहुत परेशान हैं, अतः वे समर्पण करना चाहते हैं।
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