जो सब संघर्षों में विजयी होता है वही इन्द्र है।
इन्द्र ही अपनी व्यवस्था से इस अहि= मेघ, बादल का संहार करके इन सप्तसिन्धु का प्रस्त्रवण करता है,जो इन बहने वाली सब नदियों का जल से लबा-लब भर कर बड़े वेग से बहता है, वह इन्द्र है ।और कौन है धरती पर दूसरा ऐसा जो इस महान कार्य को इस तरह कर सके! इन मनुष्यों के पास तो ना ही इतने बड़े पात्र हैं और ना ही इतनी बड़ी शक्ति है तथा न ही इतनी ऊंची सूझबूझ है कि जिससे वे इतने अधिक जल को ऊपर पहुंचा कर वर्षा करवा सकें। यह तो वह भगवान ही है जो सूर्य की तेजोमय रश्मियों से वाष्प रूप में ना जाने कितना जल ऊपर चढ़ा कर पुनः सब पर वर्षा कर सब धरती को हरा -भरा कर देता है ! हरियाली से धरती को ढक देता है, और सबके घरों को नाना विध खाद्य एवं पेय पदार्थों तथा अन्य अनेकों सुख सुविधाओं से भर देता है। हम मनुष्यों के पास सिवाय कृतज्ञता पूर्वक धन्यवाद के,और है भी क्या वस्तु जो हम उस भगवान को दे सकते हैं ।जो गौएं- सूर्य- चन्द्र आदि की रश्मियां सारे जग को अपने प्रकाश स्वरूप धवल दुग्धामृत से प्रकाशमान करती व तृप्त करती है उन गौओं- रश्मियों को बलासुर वृत्र मेघ ने अपने घेरे में लेकर छुपा रखा या रोक रखा था इन्द्र ने उस घेरे को तोड़कर उस मेघ को खोलकर बादल को बरसात कर पुनः उन गौओं अर्थात् रश्मियों को बाहर निकाल दिया।अर्थात् उसने संसार को पुनः प्रकाश, तेजोरूप शक्ति-बल प्रदान करना आरम्भ कर दिया।
वही महान इन्द्र है। जिसने दो पाषाणों में अग्नि को उत्पन्न किया है। वही भगवान है जिसने मेघों, बादलों में अग्नि-विद्युत को उत्पन्न किया है।उस इन्द्र परमेश्वर की एक बार की सशक्त अग्नि विद्युत को हम यदि हस्तगत कर सकें तो ना जाने कितने वर्षों तक धरती के प्राणियों को प्रकाश आदि मिल सके।ऐसा वह इन्द्र है।
वह इन्द्र सभी प्रकार के संग्राम में सभी तरह के संघर्षों में युद्धों में लड़ाईयों में निश्चय ही जीतता है और अपनी राह में आने वाली सभी बाधाओं को सभी रुकावटों को हटाकर दूर परे फेंक देता है,
मन्त्र
यो हत्वाहिमरिणात् सप्त सिन्धून्यो गा उदाजदपधा बलस्य।
तो अश्मनोरन्तरग्निं जजान संवृक्समस्तु से जनाब इन्द्र::।। ऋ•२.१२.३
बह रहा है सप्त सिंधु का प्रवाह
मेघों का कर संहार देता जल को राह वेगवती नदियों का यह जल का भंडार
वह तो इन्द्र प्रभु का है असीम उपहार नदियों में उमड़ता है लहरों का प्यार आओ हृदय से करें इन्द्र को नमस्कार
बह रहा.....
कहां ऐसा दीर्घ पात्र जो लाकर रखें
जो गगन में असीम जल लेके उठे
ना तो लोक-लोकांतर में इन्द्र देव सा
हुआ ना, ना होगा ऐसा दिव्यांश दातार
बह रहा......
जल लेकर सूर्य किरणें नभ में उड़े
बार-बार बरसे हरियाली खिले
इन्द्र के प्रति कृतज्ञ हम सब रहें
केवल कृतज्ञता का दे सकें उपहार
बह रहा......
सूर्य चन्द्र की गौएं मेघ ले छुपा
मेघ का संहार कर गौएं ली छुड़ा
और फिर प्रकाश पुञ्ज प्रसरता चला
कौन करें उसके बिन प्रकाश का प्रसार।। बह रहा.....
मेघों के संघर्ष से विद्युत चमक उठे
धरती-गगन प्रकाश से उज्जवल करे
विद्युत को क्यों ना हस्तगत कर लें?
हे इन्द्र!तेरा बल है अनन्त अपार
बह रहा ......
संघर्षों युद्धों में इन्द्र है अजय
उसकी कृपाएं बरसती हर समय
संकटों का कर सकता है वही विलय
इन्द्र सम्राट है ऐश्वर्यों का भंडार ।
बह रहा......