Janeu, यज्ञोपवीत (जनेऊ)

Janeu, यज्ञोपवीत (जनेऊ)

प्राय: लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि जनेऊ तो ब्राह्मणों का चिन्ह है किंतु ऐसा नहीं है यह ब्राह्मणों का चिन्ह है नहीं द्विजों का चिन्ह है। द्विज उसे कहते हैं जो अपने कर्तव्य को समझता हो । जनेऊ ऐसे हैं जैसे हम किसी से कर्जा लेते हो । कर्जा देने वाला हमारे से हस्ताक्षर करवा कर एक फाइल बना लेता है । इसी प्रकार जनेऊ भी हमारे कर्जे का तीन धागों का फाइल है । मनुष्य पर तीन ऋण होते हैं । ऋषि ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण ।

पितृ ऋण - माता-पिता जिन्होंने हमें जन्म देकर मल मूत्र धोकर पढ़ा लिखा कर बड़ा किया उन का ऋण हमारे ऊपर है । जनेऊ का एक धागा आपको बार-बार याद दिलाता रहेगा कि अपने माता-पिता दादा-दादी की सेवा करके इस ऋण को चुकाना है ।

देव ऋण - जैसे अग्नि देवता, जल देवता, सूर्य देवता, वायु देवता, चंद्र देवता, धरती देवता यह सभी देवता है यह हमें अन्न, प्राण, स्थान, उष्णता-शीतलता आदि देते ही रहते हैं । इनका ऋण भी हमारे ऊपर है यह धागा बता रहा है कि नित्य हवन करें इन देवताओं को प्रदूषण से बचाकर शुद्ध करना ही कर्जा चुकाना है । जोकि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन हवन करना ही चाहिये । केवल हवन ही ऐसा साधन है जिससे प्रदूषण दूर होता है और किसी चीज से नहीं । शुद्ध घी और जड़ी बूटियों से बनी सामग्री से नित्य प्रति अपने अपने घरों में रोगों को दूर करने के लिए हवन किया करें।

ऋषि ऋण - ऋषि मुनियों ने जो आर्ष साहित्य, वेद शास्त्र आदि बड़ी मेहनत के बाद हमें ग्रंथ रच कर उनमें जो ज्ञान दिया उसे पढ़ कर व उस पर चल कर अपना ऋण उतारना चाहिये । ये जनेऊ के तीन धागे हमें यही प्रेरणा देते हैं । जो इन तीन ऋणों से ऊऋण हुआ उसी ने अपना जीवन सार्थक किया ।