"जौहर /साका"
बारबेरिक/नेक्रोफिलिक /क्रूर विदेशी आक्रांताओं से अपने स्वाभिमान की रक्षा मे जौहर या साके की परम्परा विश्व मे भारतवर्ष के अलावा अन्य कहीं के इतिहास मे दर्ज नही है।
प्रथम जौहर - अलेक्जेंडर के समय उत्तरी पश्चिमी भारत अर्थात खैबरपख्तून क्षेत्र मे 336-323 BC मे 20,000 विरांगनाओं द्वारा
दूसरा जौहर - मो. बिन कासिम 721 AD सिंध के क्षेत्र मे राजा दाहिर की धर्मपत्नी और अन्य विरांगनाओ द्वारा
तीसरा 1301 AD- खिलजी के समय रणथम्भौर मे रानी रंगादेवी और 12000 विरांगनाये
चौथा 1303 AD खिलजी , चित्तौड़गढ़ रानी पद्मिनी और 1600 विरांगनाये
पांचवा 1308 AD खिलजी, शीतलदेव की पत्नी और अन्य विरांगनाये
छठा 1327 AD तुगलक के समय हजारो विरांगनाओ ने (इब्नबतुता का रिकार्ड मौजूद है)
सातवां 1528 - बाबर.के समय खानवा मे राणा सांगा की हार के बाद
आठवे से 11वे - कुल 4 जौहर हुमायूं के समय
12-13वां - अकबर के समय.2 जौहर चित्तौड़गढ़ मे रानी कर्णावती और 12000 विरांगनाये तथा फूलकंवर और 700 विरांगनाये
14वां -1634 मे औरंगजेब के समय.जो अंतिम जौहर इतिहास मे दर्ज है ।
इनके अलावा जैसलमेर मे 4 , गागरोन मे 2 जौहर भी दर्ज है
कुल 20 जौहर इतिहास मे उसी समय के समकालीन लोंगो ने लिखे है ।
जौहर - सेना युद्ध पर जाती , हारने के समाचार प्राप्त होने पर विरांगनाये जौहर करती थी
साका - - गढ.की घेराबंदी होने पर राजपूत और क्षत्रिय केसरिया बांधकर अंतिम श्वास तक युद्ध करने के लिये निकलते और विरांगनाये जौहर करती थी ।