Kanya Daan

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Should we be discussing this topic of Kanyadaan?

If the answer is No then most likely the reason is that it is a well-accepted practice for years. It is not done forcefully. It is not compulsory for every wedding. People may opt out of it and remain Hindu. This is the beauty of Hinduism and Sanatan Dharm. You may follow whatever rituals, Devta, way of life, etc. but remain a Hindu. There are no fixed rules in Hinduism and Dharm depends on the place, time, kaal, etc. So our traditions, rituals keep changing. If there is a need to change it, Hindus will change it.

If the answer is Yes, we should be proud that we are so open-minded and ready to discuss our traditions and willing for cross-examination. Sanatani people believe in observation, analysis, comtemplation, discussion, change, and evolution.

In discussion, pro-Kanyadan people should explain the reasons for it and state the positive aspects. They should stay away from attacking others and bringing the weaknesses and drawbacks of other religions. They should not compare Hinduism with other religions.

These issues should be brought up only if we think that there is a sinister agenda behind this if we believe that some people or organizations are trying to dismantle Hinduism.

Discussions are good and will increase awareness. People will understand the reason behind these rituals. Many Hindus are ignorant and blindly follow the traditions. It will help them understand the history and significance of rituals and then they can spread the knowledge.

Now, let me give you some perspective.

We were such an evolved society that women used to choose their groom in a Swayamvara pratha. Since the beginning of creation men and women have had equal rights in Hinduism.
To understand this think of the Ardhnarishwar roop of Shivji.
We have Devis ( Goddesses) who impart wealth, knowledge, energy, values, etc.
We have dedicated Devi mandirs. Yogini mandirs.
We have Rishikas. Our females fought wars, ruled kingdoms, participated in politics, etc.

Daughter and Son, both are Dhan. Dhan is very dear or precious. Dhan is not money only. Knowledge, patience, respect, etc. are Dhan too.
Daan can be of many things e.g. knowledge, life, body, body organs, blood, Abhay.
Jaab aave santosh dhan, sab dhan dhooli saman
Payo ji maine ram ratan dhan payo
Vidhya dhanam sarv dhanam pradhanam

Prajapati or the Creator told the devataas to control their senses and said ‘da’ for daamyata or control. For Asuras he said the same ‘da’ indicating dayadhvam or practice of mercy. For humans (including those in political parties) he said ‘da’ meaning datta or give as humans are greedy.

Thus giving or daana became the foundation of Indian civilization in many many forms as obligations to be performed through pindadaana (sacrifices for ancestors, also practiced in Greece and China), vidyaadaana (knowledge to students & all coming generations) annadaana (for the hungry and dependent sections of social order), godaana (a primary tool for agricultural and dairy benefits) and kanyadaana (giving the daughter to a worthy groom for progeny and continuation of the human species for able offspring).

Daana or giving back was also the foundation of five debts to be mandatorily paid back by every householder or bread earner: to gods by yajna (later by puja), to gurus by producing good students, to parents by raising children, to birds and animals by sharing your food, to humans by extending hospitality, even to strangers and the unexpected (atithi).

Following are the explanations are given by pro-Kanya daan people:

Kanyadaan does not mean the donation of a woman or property.
Kanyadan means that the girl leaves the gotra/ancestry of her father & enters the ancestry/lineage of the groom.
The bridegroom, considering Agni as a witness, gives his gotra to the girl, accepts her in his gotra. This is called Kanyadaan.

So what is the Gotra is a system & why is it that the female has to change her Gotra?
The Gotra system associates a person with his most ancient or root ancestor in an unbroken male lineage. For instance, if a person says that he belongs to the Bharadwaja Gotra then it means that he traces back his male ancestry to the ancient Rishi (Saint or Seer) Bharadwaja. So Gotra refers to the Root Person in a person’s male lineage.
Every person has a Gotra & is passed down automatically from Father to Son.
But not from Father to Daughter.
This seems biased. However, there's a little science behind it:
Y Chromosome is the only Chromosome that gets passed down only between the men in a lineage. Women do not get Y Chromosome in their bodies. And hence Y Chromosome plays a crucial role in modern genetics in identifying the Genealogy i.e. Ancestry of a person.
And the Gotra system was designed to track down the root Y Chromosome of a person quite easily. And this information helps in DNA tracing, identifying disease risks, avoiding marriages of cousins, etc.
Just for info, a body is made up of 84 parts out of which, 28 part is by the person himself from his food, etc, 56 from ancestors (21 father, 15 grandfathers, 10 great-grandfathers, 6,3 & 1 from more previous ancestors). So the DNA is comprised of 7 previous generations that are identified by Gotras.

कन्या दान कन्या का दान नहीं होता। गोत्र बदलाव है कन्या का पिता का गोत्र छोड़ पति का गोत्र मिलता है। गोत्र दान होता है । कन्या का पिता कन्या का दान अपने मर्जी और कन्या के चुने हुए वर से उस वर का विवाह करके गोत्र दान करता है। स्वयंवर होता था कन्या अपनी मर्जी से var चुन, पिता उसकी मर्जी से गोत्र धान और कन्या दान करता था। हम आप सब जानते हैं कि स्त्री में गुणसूत्र xx और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं ।

इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र) अर्थात इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्योंकि माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही है !

और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) यानी यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते हैं ।

१. xx गुणसूत्र

xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री , अस्तु xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है । तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।

२. XY गुणसूत्र

xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र , यानी पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है ।और ९५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है,तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्योंकि y गुणसूत्र के विषय में हमें निश्चित है कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।

बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों / लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।

वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र :
अब तक हम यह समझ चुके है कि वैदिक गोत्र प्रणाली y गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है ।

उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल हैं ।

चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है ।

वैदिक / हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहन कहलाएंगे क्योंकि उनका प्रथम पूर्वज एक ही है ।

परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहन हो गये ?

इसका मुख्य कारण एक ही गोत्र होने के कारण गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी ।

ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा , पसंद , व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता । ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है।

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगोत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता , अपंगता , गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं । शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था ।

इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके , इसलिये विवाह से पहले कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है , यही कारण था कि उस समय विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था , क्योंकि , कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है।

इसीलिये , कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने पर ज्यादा सावधानी बरती जाती है ।
आत्मज या आत्मजा का सन्धिविच्छेद तो कीजिये ।
आत्म + ज अथवा आत्म + जा
आत्म = मैं , ज या जा = जन्मा या जन्मी , यानी मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ।

यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है । यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है । फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा , फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा , इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह प्रतिशत घटकर 1% रह जायेगा ।
अर्थात , एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है , और यही है सात जन्मों का साथ ।

लेकिन , जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% ( जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है ) डीएनए ग्रहण करता है , और यही क्रम अनवरत चलता रहता है , जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं , अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है ।

इसीलिये , अपने ही अंश को पित्तर जन्म जन्मान्तरों तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रध्येय भाव रखते हुए आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं , और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है , और सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है ।

एक बात और , माता पिता यदि कन्यादान करते हैं , तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं।

बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुलधात्री बनने के लिये , उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये । डीएनए मुक्त तो हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही , इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है।

गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है । तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी यानी उसके गोत्र और डीएनए को दूषित नहीं होने देगी , वर्णसंकर नहीं करेगी , क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है । यही कारण है कि प्रत्येक विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है ।

यह रजदान भी कन्यादान की ही तरह कोटि यज्ञों के समतुल्य उत्तम दान माना गया है जो एक पत्नी द्वारा पति को दान किया जाता है ।

Gotra Daan is done in front of Agni. What kind of Daan is this where there is no receiver? The receiving person does not accept that Gotra, instead he gives his Gotra to his wife. So, how can it be called Gotra Daan?

If Gotra can be donated to Agni and new Gotra can be obtained then what is the need for the Gotra system? It means that anyone can change his Gotra at any time.

गोत्रदान is a process of adoption of gotra mentioned in Dharmasindhu. In this process, someone who has forgotten his gotra can give himself to someone and adopt their gotra-pravara as his own. अथस्वगोत्राज्ञाने ... दत्वात्मानंतुकस्मैचित्तद्गोत्रप्रवरोभवेत् ।। But there is still no mention of the word गोत्रदान.
Even this is not explicitly called gotradāna.
In the mainstream Hindu society and the rshigotra system, descent passes down patrilineally. In theory, it's not only about one's parentage but also about the spiritual lineage that traces back to the rishis. Since the father is supposed to be one's formal guru, by default, gotra passes down patrilineally. Marriage for a woman is equivalent to upanayana, and therefore she enters the gotra i.e. clan and spiritual lineage of her husband. There are some communities in the South and the NE where descent is/was traced matrilineally.
A matrilineal society traces the female line as the primary line of descent, while a matriarchy society is one where females, by design, hold most political power. While matrilineal societies were relatively common, matriarchal societies were extremely rare, if they ever existed at all. Matrilineal societies also tend to be matrilocal, where the females do not relocate to their husband's habitation. In such societies, children are raised by their mother along with their maternal uncle (mama) or great uncle who typically acted as the 'man of the house.
Gotra doesn't have to be genetic. You get yours from your guru, which happens to be your father. So, although in practice, gotra does follow a genetic lineage, it doesn't have to. Looking at the Rshigotra system, it is supposed to be biological only for Brahmins, who do not have separate vamsha. This is also why we find different gotras within one Kshatriya vamsha and the same gotra among different Kshatriya vamshas. This is because those gotras were acquired from the Rishis who performed upanayana of their ancestors and teach them.
Regarding chromosomes, if one wants to get into that, it is not perfectly symmetrical. Since women carry XX and men carry XY sex chromosomes, all the male descendants of the same paternal line carry the same Y chromosome, virtually unchanged. This is not the case with the female line where recombinations can occur in the X chromosome. What is passed through the female line is the mitochondrial DNA.
mt-DNA and x-chromosome DNA are completely different things. mt-DNA is outside the nucleus as opposed to 23 chromosome pairs (out of which one is gender pair) that reside in the nucleus. mt-DNA is inherited by both sons n daughters.
The gotra concept for women wouldn't exist apart for the reason to keep it for the son to know and prevent two same gotras from marrying. However not considering women's gotra would be a folly for this inter gotra marriage.
The Rishi aspect of the gotra system is basically about spiritual lineage, and not genetic. People can have changed their gotra in the past. Those who don't have one or have forgotten can even get a new one. Most jatis in India don't even follow the rshigotra system. They have their jati-specific gotras.
How the gotra system ends up manifesting concerning marriage is called the Moiety system. Such systems can be seen among the indigenous peoples of the Americas, Africa, and Australia. You don't need to ensure the diversity of the Y chromosome. That's not what the systems are for. It is the rest 45 chromosomes that it is more concerned about. In a patrilineal and patrilocal system, there is an incentive in marriage within one's extended paternal clan i.e. cousin marriages to maintain one's power, money, and connections. These types of marriages taking place for several generations can lead to severe inbreeding and the negative effects that naturally follow. In a society that follows patrilocal residence and inheritance, a patrilineal moiety system such as the gotra system prohibits intergenerational inbreeding, thereby keeping the population healthy. Likewise, in a matrilocal society, such as it used to be among the Nairs of Kerala, moiety follows the female line, and marriage between maternal cousins is prohibited. In that regard, the two systems are equally valid. The reason most Hindus follow the patrilineal gotra system when it comes to marriage is that most Hindus follow the patrilocal system of residence and inheritance.

कन्यादान एक ऐसा शब्द है जिससे सामान्यतः प्रतीत होता है कि कन्या एक दान देने योग्य वस्तु है। कन्या की अपनी इच्छा का स्वतन्त्रता का कोई महत्व नही। मगर यदि ध्यान से देखा जाये तो ये भी एक सामाजिक कुरीति है जिसने स्त्री की दशा को और दयनीय ही बनाया है। कन्यादान एक ऐसा शब्द है जो दर्शाता है कि स्त्री भोग की वस्तु है जो आपके प्रयोग के लिए दी जा रही है। यह तो यही बात हुई कि आपने स्त्री को भी गाय, भैंस बकरी की तरह बना दिया है जिसे जब चाहें जैसे भी प्रयोग किया जा सकता है। विवाह के मंडप में पण्डित भी सबसे कहता है कि कन्या दान महा पुण्य का कार्य है और इस तरह से कहते हुए वह अनेक लोगों से उसी एक कन्या का दान करवाता है। जैसे यह कोई कन्या नही हुई कोई दान की बछिया हुई जिसकी पूंछ पकड़ कर अनेकों लोग वैतरणी के पार हो जाते हैं। बहुत लोगों को मैंने देखा है जो बेटी की विदाई के वक्त वर से कहते हैं कि ये तुम्हारे घर की दासी है इसे अपने चरणों में जगह देना...!!
आखिर ऐसा क्यों ?
क्या बिगाड़ा है कन्या ने जो उसे दान किया जाए। दामाद भी तो बच्चा ही है। जैसे हमारी बेटी वैसे ही उसे भी बेटा माना जाये तो क्या कुछ फर्क आ जायेगा ? कैसे अपनी बेटी को वस्तु के समान दान कर सकते हैं। विवाह में तो बराबरी होती है दोनों पक्षों की।
असल मे कन्यादान शब्द धर्माधीशों द्वारा अपनी पुरोहिताई चमकाने के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक किए जाते हैं। इनमें से तेरहवाँ संस्कार विवाह संस्कार है। विवाह दो शब्दों से मिलकर बना है- वि + वाह। जिसका शाब्दिक अर्थ है विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना। और इसके लिए कन्यादान की जगह पाणिग्रहण का प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है हाथ सौंपना। विवाह में वर व वधू अपने अलग अस्तित्वों को समाप्त कर, एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं और एक-दूसरे को अपनी योग्यताओं एवं भावनाओं का लाभ पहुँचाते हुए गाड़ी में लगे दो पहियों की तरह प्रगति पथ पर आगे बढ़ते हैं। अर्थात विवाह दो आत्माओं का पवित्र बंधन है, जिसका उद्देश्य मात्र इंद्रिय-सुखभोग नही, बल्कि संतानोत्पादन कर एक परिवार की नींव डालना है। इस यज्ञ में जिन मंत्रो का प्रयोग होता है उनके अनुसार हाथ सौंपना से तात्पर्य है जिम्मेदारी का अहसास दिलाना है।
यदि हम विवाह संस्कार में देखें तो इसमें कहीं भी कन्या को किसी वस्तु की तरह दान के रूप में सौपने या दान के रूप में ग्रहण करने का कोई उल्लेख नही है। इसीलिये आज कन्या दान के बजाय पाणिग्रहण की परम्परा को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है जो कि धर्मसम्मत भी है।
कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि कन्यादान शब्द में आखिर आपत्ति ही क्या है। तो दान उसका दिया जाता है जो खुद के द्वारा अर्जित किया गया हो जब कि बेटी तो ईश्वर का वरदान है उसे आप भला दान कैसे दे सकते हैं। यदि आप किसी को कुछ दान देते हैं तो इसका अर्थ है कि उस वस्तु से फिर कोई सम्बन्ध ममता मोह आदि आपका नही रहेगा। जब कि कन्या सारी जिन्दगी आपसे जुड़ी रहती है। इसे आप कन्या आदान तो कह सकते हैं किन्तु कन्यादान नहीं!!
विवाह संस्कार में कहीं भी कन्यादान का जिक्र नही है। जो आप फेरे के समय वचन लेते और देते हैं उसमें भी पत्नी को सहधर्मिणि ही कहा गया है। वर और कन्या जीवन साथी होते हैं कोई दान की वस्तु नही।
विवाह एक यज्ञ भी है जिसमें दो परिवारों के संस्कारों का सम्मिलन करके नये उत्कृष्ट कार्य करने के लिए एक दूसरे का हाथ बटाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य ऐसी संतान को पैदा करना जो यशस्वी शक्तिशाली ज्ञानी व कीर्तिवान हो क्यों कि ऐसे लोग ही देश समाज व परिवार का भला कर सकते हैं। संसार का भला करने के कारण ही यज्ञ को श्रेष्ठतम

कन्यादान बेटियों को घर से पराया समझ कर बहिष्कृत करना नहीं है। Kanyadaan doesn't mean Daan "Of" Kanya. It means Daan "For" Kanya - taking care of her marriage, doing Dharmik ritual to celebrate her transition in new phase of life.
कन्या का आदान=कन्यादान
जिम्मेदारी सौंपना ।।
It is not Kanya plus Aadan. Aadan happens only after daan.
Da dhatu in kanyadaan means to give away

आज से लगभग साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व जिसने विवाह के वैदिक मंत्रों को रचा, उसका नाम था सूर्या सावित्री। पिता सविता सूर्या का विवाह सोम से करना चाहते थे परन्तु वह पूषा से प्रेम करती थी। उसने मुक्त मन से अपनी इच्छा पिता के सामने रखी कि वह पूषा के साथ जाएगी। पूषा ही उसके हाथ पकड़ कर ले जाएगा। उसी ने मंत्र रचा- गृम्णामि से सौभगत्वाय हस्तम्। यह मंत्र आज तक विवाह की वेदी पर पढ़ा जाता है।

लेकिन वेदों में 'कन्यादान' जैसा कोई शब्द नहीं है। उनमें कन्या, पाणिग्रहण, प्रतिग्रहण और दान जैसे शब्दों का अलग-अलग संदर्भों में प्रयोग हुआ है।

दान के महत्व का वर्णन करते हुए ऋग्वेद में कहा गया है कि गौ, अश्व तथा वस्त्रों का दान करने वाले सौभाग्यशाली होते हैं और उनके घरों में अनेक प्रकार के धन सदा उपलब्ध रहते हैं। (ऋग्वेद 5-42-8)।

अथर्ववेद में दान दी जाने योग्य वस्तुओं के नाम गिनाए गए हैं। इनमें जनने वाली गौ, बोझा ढोने वाले बैल, वस्त्र, सुवर्ण आदि वस्तुओं को दान करने से दाता को उत्तम गति प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है। (अथर्ववेद : 9-5-29)।

पर वहां किसी भी उद्धरण में दान के लिए बताई गई वस्तुओं में कन्या के दान का विचार प्राप्त नहीं होता।

वैदिक विवाह परंपरा में कन्या को प्रदेय द्रव्यों से परे रखा गया है। वह दान देने वाली वस्तुओं के समकक्ष नहीं है।

दान योग्य द्रव्य:
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दान का अर्थ है किसी वस्तु पर से अपने स्वत्व (अपना मानने) का अधिकार त्याग देना। कन्या न ही वस्तु है, और न ही उसके विवाह के पश्चात माता-पिता एवं संबंधियों से उसका संबंध समाप्त होता है। ऐसा नहीं होता तो सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में नहीं गई होतीं।

After daan, the donor does not have anything to do with the donated thing. However, after Kanya daan parents still have a relation with their daughter and never plan to part away from this relationship. She always remains their daughter. Not even this, her new family also has a relationship with her parents.

The donated thing does not have a relationship with the donor entity. After daan, the donor loses the right to the donated entity. After Kanya daan, parents still have the right to their daughter.

इसके अलावा दान देने के लिए शर्तें नहीं थोपी जातीं, लेकिन कन्या के लिए वर को पाणिग्रहण के समय सात वचन देने होते हैं और प्रतिग्रहण का संकल्प लेना होता है।

Daan can be of only those things which have been earned e. g. money. A daughter is not an earned thing, so it can not be given in daan.

Daan is given to the needy and poor. Groom is not needy and poor fellow.

वैदिक काल में भी भारतीय समाज पितृमूलक था। माता-पिता की इच्छा कन्या के लिए माननीय थी। लेकिन कन्या की भावना का भी सम्मान किया जाता था। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना पड़ता था कि कन्या को अभिरूप पति के साथ सुखमय जीवन बिताने का अवसर प्राप्त हो। इसकी पुष्टि राजा रथवीति के आख्यान से होती है। श्यावाश्व ऋषि ने राजा से उनकी कन्या से विवाह का प्रस्ताव किया। राजा ने पहले अपनी रानी शशीयसी से सलाह की। रानी ने पुत्री से पूछने के बाद कहा कि श्यावाश्व को पहले ऋषित्व प्राप्त करना चाहिए। जब श्यावाश्व ने यह पद और प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली, तभी रथवीती ने उन्हें अपनी बेटी का पाणिग्रण करने की इजाजत दी। (बृहद्देवता 5-50-80)

शतपथ ब्राह्माण में सुकन्या कहती है कि मेरे माता-पिता ने मुझे जिस पति के साथ प्रणय सूत्र में बांधा है, उसके साथ मैं आजीवन रहूंगी। (सा होवाच यस्मै मां पितादान्नैवाहं तं जीवंतं हास्यामीति 4-1) इस मंत्र में अदात् शब्द का प्रयोग दान अर्थ में नहीं है, यह माता-पिता द्वारा विधि-विधान से विवाह कराने का ही संकेत है।

मूल रूप से वैदिक अनुष्ठान में विवाह के पांच चरण माने गए हैं :

वाग्दानञ्च वरणं पाणिपीडनम्।
सप्तपदीति पंचांगो विवाह: प्रकीतिर्त:।।

वाग्दान से सगाई,
प्रदान- से कन्यादेय- या कन्या को दिए जाने वाले उपहार,
वरण-यानी वर द्वारा स्वीकृत करना,
पाणिपीडन- पाणिग्रहण करना तथा
सप्तपदी- से सात वचनों के पालन की प्रतिबद्धता का भाव लिया जाता है।

इन पांच चरणों में भी कन्या के दान का संकेत स्पष्ट नहीं होता। केवल कन्या को दिए जाने वाले उपहार और उसके लिए उपयोगी वस्तुओं के दान का संकेत मिलता है।

कन्यादान वैवाहिक कर्म के मध्य में सम्पन्न होने वाली क्रिया है और इसी के साथ पाणिग्रहण और सप्तपदी की प्रतिज्ञाएं भी संयुक्त है ।
यहां दान का अर्थ सामान्य प्रचलित दान के अर्थ में नहीं है । यहां दान पाणिग्रहण और सप्तपदी की प्रतिज्ञाओं से बंधा है, अनुकम्पा से नहीं ।

पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने।
रक्षंति स्थविरे पुत्रा:, न स्त्रीस्वातंत्र्यमर्हति।।
(मनुस्मृति : 9-3)

अर्थात कन्या जब कुमारी रहती है तो पिता उसका लालन-पालन और उसकी रक्षा करता है, युवा अवस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र। स्त्री अरक्षित नहीं रह सकती।

कन्यादान शब्द कन्या के विवाह के समय माता-पिता के कर्तव्य, संकल्प और भावुकता को रेखांकित करता
है, आज भी हम उसी का अनुपालन करते हैं -पाणिग्रहण और प्रतिग्रहण इन्हीं सूत्रों के अनुसार कराया जाता है। वैदिक परंपरा का उज्वल पक्ष यह है कि कन्या को प्रदेय वस्तुओं से परे रखा गया है।

Some believe that Kanya Daan really means Daan of Kanya. However, it is not in any derogatory sense. Following is Kanya Daan mantra.

Kanyadaan%20mantra

Vivah%20types

  1. Braahma marriage was a kind of marriage, wherein a canopy (mandapa) was made for a gathering and the daughter was given away by mantras with Agni- the fire god as a witness. It did not require a dowry. Manu says users of stri-dhana (wealth in possession of a woman) go to hell.
  2. Deva marriage was when after a sacrifice, the main priest was given a daughter in marriage. This resulted in an alliance of ruling and business classes with the academics.
  3. Aarsha Marriage was when the student was given his daughter by the teacher after receiving a pair of cows. Shows the self-sustaining nature of educational profession in ancient India.
  4. Praajaapatya Marriage, when the daughter was given to a suitable groom by just proclaiming them as man and wife with no social gathering.
  5. Asura Marriage, when a suitable amount of money was given to the father who gave his daughter to the paying groom. This was an accepted legality but was derided.
  6. Gandharva Marriage, when a sexually enamored couple without telling anybody else pronounced each other as lifelong partners and told the relatives later that they had cohabited as husband and wife. It was a legal marriage and as evidenced by the story of Shakuntala. It seems, the woman’s word was believed despite denial by the male.
  7. Raakshasa Marriage, when the woman was taken away from her family by force (sometimes with her consent, as Subhadra by Arjuna).
  8. Pishaca Marriage, when the woman was violated by fraud or drugging but not abandoned.

All dharmashastras condemn 5, 7 and 8 i.e. Asura, Raakshasa and Pishaca type of marriages.
There were two other forms, very exceptional, hence not in the law books, Svayamvara and Veerashulkaa. In the former, the woman chose from suitors, and in the latter, she was won by a heroic feat.

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Arya Samaj wedding steps:
Pre-wedding: Brahmbhoj, Chuda, and Nath
Wedding:
Varmala and swagat vidhi
Madhuparkaa
Aachman
Agni pradeepan
Yagya and Kanyadaan- Then Kanyadaan is the ritual of the father of the bride placing his daughter’s hand in the hands of the groom. This ritual symbolizes that the father henceforth hands the responsibilities of his daughter to her husband.
Pratigya mantra
Havan and Godaan
Panigrahan sanskar
Pledges- exchange of vows
Shilarohan
Lajarom
Mangal Phere
Kesh Mochan
Saptapadi and Hridya sparsh mantra
Sindoor and Mangal sutra
Surya Darshan
Post-wedding: Sindoor daan, Akhand saubhagyawati, Aashirwad, Dhruv Darshan

Things to ponder on:

1.कन्यामान की बात कर रहे हैं, तो ‘मान्यवर’ पुंलिङ्ग नाम क्यों? ‘मान्यवरा’ अथवा ‘मान्यवधू’ स्त्रीलिङ्ग नाम क्यों रख लेते?
When they are talking about ‘kanyaman’, why do they have a masculine name Manyavar/मान्यवर? Why not a feminine name like Manyavara/मान्यवरा or Manyavadhu/मान्यवधू? Charity (different from dāna) begins at home.

2.Kanyadaan is “Patriarchal” but Giving the bride, Nikah-Mehr are all “Woke” !!

  1. Total silence on cult of Halala, TTT, Polygamy, Iddat, Child marriage that views women as property

4.In Sharia the women does not even get husbands inheritance.. after his death but the father or the brother of the husband are the beneficiaries.

5.What about father walking his daughter in aisle and giving her to groom? Why mother does not walk her son in the aisle.

  1. What about doing Kumardaan also during Indian weddings. May be then the parents of the bride can also demand dowry, house, etc before agreeing for the Kanyadaan.

  2. What about sangeet gathering for the groom and mundan for the girl?

  3. Many civilizations have marriage as a business transection.

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Bharti Raizada