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Lohri Dance Bhajans:
- Sub Nu Milan Wadhaiya Aayi Lohri Raavinder
- Satguru Kirpa Wali Lohri De Guruji
- Lohri de Nidhi Sahil
- Happy Lohri Harbhajan Mann
- Dhol
- Ishar aaye, dalidar jaye, dalidar di jarh chulhe paye
मकर संक्रांति शुभेच्छा
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।
भावार्थः- जैसे मकर राशि में सूर्य का तेज बढता है, उसी तरह आपका स्वास्थ्य और समृद्धि निरन्तर बढ़े, यही ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
मकर संक्रांति की अनंत शुभकामनाएं.
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।
मकरसंक्रांतिशुभाशयाः
यह उत्सव है नए आशाओं का, नवीन संकल्पों का
परिवर्तन का है यह पल, छोड़ कल, तू लड़!
प्रतीक्षा में है एक स्वस्थ कल, तू बढ़!
उत्तरायण, लोहड़ी, पोंगल, पेड्डा पांडुगा, मकर विलाकू, कीचेरी, माघ बिहू, मकर संक्रांति की आशाओं भरी शुभकामनाएं।
- मकर संक्रांति (छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और जम्मू।
- ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल (तमिलनाडु)
- माघ साजी (हिमाचलप्रदेश,लदाख)
- शिशुर सेंक्रात (कश्मीर)
- ओणम (केरल)
- खिचड़ी (उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बिहार)
- पौष संक्रांति (पश्चिम बंगाल)
- मकर संक्रमण (कर्नाटक)
- उत्तरायणी (गुजरात, उत्तराखंड)
- माघी (हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब)
- भोगाली बिहु (असम)
- मकरचौला (उड़ीसा)
- सूर्य कुंभ पर्व (सूरीनाम)
- पौष संक्रांति (बांग्लादेश)
- पोंगल/खिचड़ी (मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद टौबैगो)
- माघे संक्रांति/माघी संक्रांति/खिचड़ी (नेपाल)
- สงกรานต์ /सोंगकरन (थाईलैंड)
- पि-मा-लाओ (लाओस)
- थिंयान (म्यांमार)
- मोहा संगक्रान (कंबोडिया)
- पोंगल/उझवर तिरुनल (श्री लंका)
Makar Sankranti (Most of India), Pongal (Tamilnadu), Uttarayan (Gujarat), Maghi (Himachal), Lohri (Punjab) Bhogali Bihu (Assam), Shishur Saenkraat (Kashmir) Maghe Sankranti (Nepal), Songkran (Thailand), Pi Ma Lao (Laos), Thingyan (Myanmar), Moha Sangkran (Cambodia) or Ulavar Thirunaal (Sri Lanka).
Whatever you call it.. whatever your rituals are, Makar Sankraman is a truly global festival.
You may attach religious significance to it, but it is all about our planet.
Today, Sun starts its northern transition (Sankraman) through the tropic of Capricorn (Makar).
It is time to cheer for those of us who are in the northern hemisphere since our days start getting longer and warmer.
It is the healthiest time of the year.
So forget your race, religion, color, gender.
Let's celebrate this celestial event.
Happy Capricorn Transition everyone with lots of love to our mother earth.
Traditionally, we celebrated Sankranti as winter solstice day since ancient times. We followed Magha Shukla Pratipada or Vedanga Jyotish calendar from Vedic era to Mahabharata era. After 4000 BCE, Magha Shukla Pratipada used to occur at winter solstice in Kumbha Rashi. Thus, New Year celebrations coincided with the occurence of winter solstice. The tradition of Kumbh Mela also started during the period 4000-3000 BCE. Kumbh Mela was named so because it started when winter solstice occurred in Kumbh Rashi.
Winter solstice used to occur in Kumbh Rashi around 4000-1800 BCE and in Makara Rashi around 1800 BCE to 300 CE. When Sakanta epoch was introduced in 78 CE, Sankranti used to occur in Makara Rashi. This is the reason why we celebrate Sankranti as Makara Sankranti though it occurs in Dhanu Rashi today.
मकर संक्रांति का त्योहार, सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहारों की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर रेखा से गुजरता है। यह पर्व वैदिक सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है।
कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है लेकिन ऐसा कम ही होता है। मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता हैऔर लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।
मकर संक्रान्ति का काल और महत्व:
काल गणना और वैदिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर एक सम्पूर्ण परिक्रमा को एक वर्ष कहा जाता है, इस एक वर्ष को दो भागों में बाँटा गया है - उत्तरायण और दक्षिणायण। जो छः छः माह का होता है। २२ जुन से २१ दिसम्बर तक दक्षिणायण और २२ दिसम्बर से २१ जुन तक उत्तरायण। इसमें उत्तरायण में दिन बडा और रात छोटी होती है दक्षिणायन में रात बडी़ और दिन छोटा होता है। अब २२ दिसंबर से उत्तरायण लग चुका है अब धीरे-धीरे दिन बड़ा होगा और रातें छोटी होंगी। अभी हवन में संकल्प कराते समय विद्वान लोग भी उत्तरायण कहते हैं।
जितने काल में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा पूरी करती है उसको एक "सौर वर्ष" कहते हैं और कुछ लंबी वर्तुल आकार जिस परिधि पर पृथ्वी परिभ्रमण करती है। उसको "क्रांति वृत्त" कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार क्रांति वृत्त के १३ भाग माने गए हैं। उन १२ भागों के नाम उन उन स्थानों पर आकाशस्थ नक्षत्रों के प्रकाश से मिलकर बनी हुई कुछ मिलती-जुलती आकृति वाले पदार्थों के नाम पर रख लिए गए हैं।
जैसे - १) मेष २) वृष ३) मिथुन ४) कर्क ५) सिंह ६) कन्या ७) तुला ८)वृश्चिक ९) धनु १०) मकर ११) कुंभ और १२) मीन
प्रत्येक भाग वा आकृति को राशि कहते हैं। जब पृथ्वी एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करती है तो उसको "संक्रांति" कहते हैं। लोकाचार से पृथ्वी के संक्रमण को सूर्य का संक्रमण समझा जाता है। ६ मास तक सूर्य क्रांति वृत्त से उत्तर की ओर उदय होता है और ६ मास तक दक्षिण की ओर निकलता है। प्रत्येक ६ माह की अवधि का नाम "अयन" है। सूर्य के उत्तर की ओर उदय होने को उत्तरायण और दक्षिण की ओर उदय होने को दक्षिणायन कहते हैं। दक्षिणायन काल में सूर्योदय दक्षिण दिशा की ओर दृष्टिगोचर होता है और उत्तरायण में सूर्य उत्तर दिशा की ओर दृष्टिगोचर होता है। सूर्य की मकर राशि की संक्रांति से उत्तरायण और कर्क राशि की संक्रांति से दक्षिणायण प्रारंभ होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को "उत्तरायण" कहते हैं।
अब यह सामान्य प्रश्न उपस्थित होता है कि जब "दक्षिणायन" लगता है तब उत्तरायण की तरह उसे क्यों नहीं मनाया जाता?
इसको इस प्रकार से समझा जा सकता है जैसे रात की अपेक्षा दिन कार्य करने के लिए उत्तम है वैसे ही शास्त्र कारों और उपनिषद कारों ने भी दक्षिणायन की अपेक्षा उत्तरायण को विभिन्न प्रकार के संस्कारों को संपन्न कराने के लिए प्राण छोड़ने के लिए उपयुक्त माना है। वैदिक ग्रंथों में उसको "देवयान" कहा गया है और ज्ञानी पुरुष अपने शरीर त्याग तक की अभिलाषा इसी "उत्तरायण" में रखते हैं। उनके विचार अनुसार इस समय देह त्यागने से उनकी आत्मा सूर्यलोक में होकर प्रकाश मार्ग से प्रयाण करेगी। भारतीय इतिहास के अनुसार भीष्म पितामह ने इसी उत्तरायण के आगमन तक शरशय्या पर शयन करते हुए प्राण उत्क्रमण की प्रतीक्षा की थी। फिर पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो देवलोक में चली जाती हैं अर्थात् पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि २२ दिसम्बर से लेकर २१ जून तक कोई भी मरेगा तो वह मोक्ष को प्राप्त कर लेगा। इसका मतलब यह है कि जो जितेन्द्रिय समाधिस्थ योगी पुरुष, ईश्वर की अनुभूति करने के बाद जबा वह मोक्ष मार्ग का पथिक बन जाता है तब वह नश्वर शरीर का त्याग करने के लिये वह उत्तरायण काल को चयन करता है।
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यह पर्व चिरकाल से चला आ रहा है। उत्तरायण, दक्षिणायन की अपेक्षा अधिक प्रकाशमान होता है। अंधेरा कितना भी उपयोगी हो परंतु प्रकाश सर्वश्रेष्ठ होता है। सज्जन, देवता लोग प्रकाश को पसंद करते हैं। हिंसक पशु, हिंसक मनुष्य लोग तमस, अज्ञान, अंधकार रात्रि को प्रिय करते हैं।
सूर्य पर आधारित वैदिक धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व माना गया है। वैदिक काल गणना के अनुसार यह मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। सूर्य के प्रकाशाधिक्य के कारण उत्तरायण विशेष महत्व शाली माना जाता है और उत्तरायण के आरंभ दिवस मकर की संक्रांति को अधिक महत्व दिया जाता है। यह ऐसा पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है क्योंकि इस समय शीत अपने यौवन पर होता है। अच्छी सर्दी पड़ रही होती है, वैदिक शास्त्र में इस शीत (सर्दी) का ठीक-ठीक उपयोग करने के लिए इस शीत को ऊर्जा में बदलने के लिए तिल, तिल का तेल गोंद के लड्डू, गाजर पाक, गाजर का हलवा, मूसली पाक, शतावरी, अश्वगंधा, जावित्री, जायफल, केशर आदि पौष्टिक पदार्थ उपयोगी माने गए हैं। जिसमें तिल की सबसे ज्यादा प्रधानता है। मकर संक्रांति के दिन भारत के सभी प्रांतों में तिल और गुड़ के लड्डू या तिल की विभिन्न मीठाईयाँ बनाकर दान किए जाते हैं। परस्पर इष्ट मित्रों में सगे संबंधियों में बांटे जाते हैं।
कैसे मनाए मकर संक्रांति -
मकर संक्रांति के दिन ब्राह्म मुहूर्त में उठकर प्रातः वंदना नित्य दिनचर्या, गृह के परिमार्जन, शोधन आदि के पश्चात स्नान कर नवीन शुद्ध स्वदेशीय वस्त्र परिधान पूर्वक सपरिवार यज्ञ करें। हवन की सामग्री में तिल, गुड़ या खांड का परिमाण प्रचुर मात्रा में होना चाहिए और आहुतिओं की मात्रा व सामर्थ्य अनुसार बढ़ानी चाहिए। यज्ञ के उपरांत स्व सामर्थ्य अनुसार गरीबों में कंबल वितरण, वस्त्र वितरण, खिचड़ी बनाकर बांटना, तिल के पदार्थ बनाकर अपने सगे संबंधी और व्यापारिक भाइयों को परस्पर आदान-प्रदान करना चाहिए। जिससे सामाजिक स्तर पर भी हमारा संगठन मजबूत रहे। शोषित और वंचित वर्ग भी मुख्यधारा में आ सके। कोई भी व्यक्ति शिक्षा से और भोजन से वंचित ना हो। इस पृथ्वी, धरा धाम, वायु, जल पर मनुष्य मात्र का समान अधिकार है। इसी भावना का प्रचार करना चाहिए
घर में स्नान प्राणायाम संध्या के बाद नित्य यज्ञ के मंत्रों की आहुति देने के बाद बृहद यज्ञ विधि के मंत्रों से आहुतियां दें। फिर मकर संक्रांति के मंत्रों से विशेष आहुतियां प्रदान करें। यज्ञ में आहुति देने के लिए केसर और तिल डालकर चावल और मूंग की मीठी खिचड़ी बनाएं। स्विष्टकृत् आहुति इसी खिचड़ी की देवें।
वैसे मकर संक्रांति का असली समय तो 22 दिसंबर होता है किंतु भारतवर्ष में 14 जनवरी को मनाने की परिपाटी चली आ रही है। यदि आप 14 जनवरी को मना रहे हैं तो इस प्रकार परिपालन करें और अगले वर्षों में धीरे-धीरे इसे 22 दिसंबर में मनाने की परिपाटी शुरू करनी है। इसका ध्यान रखें!
वेदिक विचारक
आप सभी को रूढी रूप से मनाए जाने वाली मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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Bharti Raizada