Namaste

"नमस्ते " या "नमस्कार "..क्या है ।

नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है।
संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है ....
नमः + असते
नमः का मतलब होता है झुक गया और असते मतलब सर( अहंकार या अभिमान से भरा ) ...

यानि मेरा अहंकार से भरा सर आपके सम्मुख झुक गया।
नम: का एक और अर्थ हो सकता है जो है....
न + मे
यानी की मेरा नही .....सब कुछ आपका
आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है।

नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है...
कि इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये।

हम बड़ों के पैर क्यों छूते है ?
भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है।

अच्छे भाव से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक ऊर्जा होती है।
आदर के निम्न प्रकार है : ---
१- प्रत्युथान :---
-किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना ।
२- नमस्कार :---
-हाथ जोड़ कर सत्कार करना ।
३-उपसंग्रहण : ----
-बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना ।
४-साष्टांग :-
-पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना ।
५- प्रत्याभिवादन : -
-अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना ।

आज कल पश्चिमी संस्कृति के हावी होने के कारण हम नमस्ते ,प्रणाम अदि कहना लगभग भूलते जा रहे हैं अब उनकी जगह....
"हाय " हेल्लो " गुड मोर्निंग " या "गुड नाईट " जैसे शब्दों ने ले लिया ....
जिसके अर्थ और अनर्थ का पता ही नहीं चलता ।
हम सनातनियों को चिन्तन करना चाहिए।
क्या हमारे पूर्वजों ने भी हमसे ऐसा कराया है ?
फिर हम अपने संकार से दूर क्यों ?
चिन्तन करें....................

अभिवादन शीलस्य ,नित्य वृद्धोपसेविन:!
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आर्युविद्या यशो बलम् !!

Benefits%20of%20Namaste

https://www.hinduamerican.org/blog/the-power-of-namaste

नमः ने द्यावा पृथ्वी को धारा है
'नमः'के अंदर बहुत बड़ी शक्ति है।'नम:' में नमस्कार, झुकना किसी को बड़ा मानना किसी की शरण में जाना,अपराध स्वीकार करना, प्रायश्चित करना, किसी अवसर पर झुककर अपने आप को बचा लेना आदि अनेक अर्थ समाविष्ट हैं।
'नम:' ने ही द्यावापृथ्वी को धारण किया हुआ है। यदि भूमि सूर्य के सम्मुख नज़र ना होती, उसे महत्वपूर्ण मानकर उसके चारों ओर परिक्रमा ना करती, तो वह किसी भी आकाशीय पिंड से टकराकर कभी का अपना अस्तित्व खो चुकी होती। पृथ्वी के क्षेत्र में विद्यमान वृक्ष-वनस्पतियां नदियां,बादल आदि भी झुक कर ही अपनी सत्ता बनाए हुए हैं। जब तीव्र झंझावात आता है उस समय वृक्ष यदि अपनी शाखाओं को झुका ना लें, तो वे टूट कर एक ओरर जा गिरें। नदियों ने भी झुकने का व्रत धारण किया हुआ है। वे नीचे की ओर बहती हुई, अपने अमृत सलील से धरा को सींचती हुई समुद्र में जा मिलती है। समुद्र से जल-वाष्प बनकर जो बादल अपनी ऊर्ध्वयात्रा आरम्भ करते हैं, वे नमः का व्रत ले, जल- भार से नत हो, भूमि पर बरस जाते हैं। अनेक बार संसार के बड़े-बड़े ज्योतिषियों ने गणना करके जहां भविष्यवाणी की है कि अमुक वर्ष अमुक दिन और अमुक समय पर हमारा भूमंडल या अन्य कोई ग्रह उपग्रह हमको आकाशीय पिंड से टकराकर चूर चूर हो जाएगा। किन्तु हमने देखा कि समय आने पर वह पिंड थोड़ा सा झुक गया और विनाश टल गया। सूर्य भी यदि झुके नहीं तो दिवस रात्रि के चक्कर का प्रवर्तन ही समाप्त हो जाए।
द्यावापृथ्वी के 'नम:' से शिक्षा लेकर मैं भी नमः को अपनाता हूं। मैं भी विद्वज्जनों के प्रति झुकता हूं, उन्हें नमस्कार करता हूं, उनकी चरण-रज का स्पर्श कर अपने आप को धन्य मानता हूं। माता देवी है, उसके चरणों में लोटता हूं‌। पिता देव हैं उनको शीश नवाता हूं। गुरुजन देव हैं, उन्हें प्रणाम करता हूं। अतीत और वर्तमान काल के अन्य महापुरुष देव है उनकी वन्दना करता हूं। देवजन नमः के वशवर्ती हैं, 'नम:' को देखकर पसीज उठते हैं। अतः मुझसे यदि कोई अपराध हो गया है तो मैं 'नमः' को धारण कर शुद्ध हृदय से अपना अपराध उनके सम्मुख निवेदन कर देता हूं। उस अपराध के लिए क्षमा कर देते हैं। वे कहते हैं कि प्रायश्चित के आंसुओं से तुम्हारा पाप धुल गया।
आओ, हम सब 'नमः' की स्तुति करें, 'नम': को अपने अन्दर धारण करें और 'नम:' के द्वारा ही ऊंचे उठें।

          वैदिक मन्त्र  

नम इदुग्रं नम आ विवासे,नमो दाधार पृथिवीमुत द्याम्।
नमो देवेभ्यो नमः ईश एषां,,कृतं चिदेनो नमसा विवासे।।ऋ० ६.५१.८

राग जोगिया
गायन समय प्रातः काल का प्रथम प्रहर
ताल नाट्य ८ मात्रा

मद-मत्सर भरे मानव को
नम्रता का गुण कभी ना मिलेगा
विनत- शक्ति का मोल समझ लो
सार्थक जीवन तब ही मिलेगा।।
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
रास्ते भी प्रायश्चित के खुल गए
है प्रचूर शक्ति इस नमन में
कितने नमितों को ईश्वर भी मिल गए
झुकते......
द्यावापृथिवी है धारित नियम में
इसलिए ही है रक्षित सदन में
वरना अस्तित्व खुद का खो देती
इस नमन से ग्रह-नक्षत्र खिल गए
झुकते.......
वृक्ष, वनस्पति, मेघ व नदियां
झुकते झुकते उन्हें भी हुई सदियां
झंझावात से भी रक्षित हुए हैं
जो जो तन के खड़े थे गिर गए।।
झुकते......
नीचे बहती नदी वृत की धारक
अमृत जल बांटे कल्याण कारक
करके सागर में खुद को समर्पित
दोनों जल प्रेम से गले मिल गए
झुकते........
दानी सिन्धु से जल लेके बादल
वर्षा करते हैं भूमि पे निर्मल
है किसानों के खेत खुरायल
मेघ कृषकों की खुशियों में मिल गए झुकते.........
शब्दार्थ
दुरित=बुराइयां,
प्रचूर=अत्यधिक, बहुत
नमित= झुके हुए
सदन =रहने का स्थान
झंझावात =तूफान
खुरायल=बोने से पहले खेत को तैयार करना
कृषक= किसान
भाग 2
झुकते झुकते दुरित पाप धुल गए
रास्ते भी प्रायश्चित के खुल गये (२)
है प्रचुर शक्ति इस नमन में
कितने नमितों को ईश्वर भी मिल गये।।
झुकते........
द्यावा पृथ्वी से लेकर मैं शिक्षा
विप्रों पर है नमन की इक्षा
उनके सद्गुण पालन की है एषा
धन्य मानूं जो स्तुतियोग्य मिल गए
झुकते.........
मात-पिता देव गुरु हैं हितैषी
वे भी नमितों के रहते आपेक्षी
उनके चरणों में शीश नवाऊं
धन्य धन्य हूं अनुरक्त मिल गए
झुकते.......
हमने यदि कोई अपराध किया है
या हृदय को दु:खा भी दिया है
क्षम्य भाव से करते शर्मिंदा
आशुतोष हृदय उनके मिल गए।।
झुकते......
देवजन हैं नमन के वशवर्ती
आर्द्र -भावों से उनको अपनाएं
भूलों पर वे प्रायश्चित कराते
भाग्य से ऐसे सुधी लोग मिल गए।।
झुकते.....
शब्दार्थ:-
इक्षा=इच्छा
आपेक्षी=अपेक्षा करने वाले
अनुरक्त=अनुराग युक्त प्रेमी
आशुतोष=शीघ्र पिघलने वाले
आर्द्रभाव=कोमल भाव
सुधी=बुद्धिमान

5%20types%20of%20greetings

Dasha namaskars- gratitude to 10 entities - pancha mahabhoota (surrounding environment/ primordial elements - prithvi, aap, tej, vayu, akash) + sanskar (cultural environment) + goal (advait philosophy) - contributing to material and spiritual growth/ life-long nourishment of every individual, representing the journey from micro (subtle) to macro (gross).

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