National Healthy Ageing Month

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Bharti Raizada

दीर्घ जीवन का उपाय

मनुष्य की साधारण जीवन अवधि सौ वर्ष की है जैसा कि यजुर्वेद ४०/२ मैं कहा गया है--जिजीविषे ॅ समा: [मनुष्य सौ वर्ष जीने की इच्छा करें] प्रकृत मंत्र में भी भगवान ने कहा है--आ त्वा हरामि शतशारदाय=तुझे इस संसार में सौ वर्षों के जीवन के लिए लाया हूं। जैसे जलते दीपक से दूसरे दीपक जलाए जा सकते हैं, ऐसे ही जीते-जागतों से ही जीवन- ज्योति मिल सकती है। इसी भाव से कहा है--जीवतां ज्योतिर्भ्येहि=जीते -जागतों से जीवन-प्रकाश ले अर्थात् दीर्घजीवी लोगों के पास उठो, बैठो, उनकी दिनचर्या का निरीक्षण करो कि कैसे उन्हें दीर्घजीवन मिला। जैसी संगति होती है, प्रायः वैसे ही आचार विचार बनते हैं, अतः दीर्घ जीवन के अभिलाषियों को दीर्घजीवियों का संग करना अतीव उपयुक्त है। इसी प्रकार मरों का चिन्तन छोड़ देना चाहिए। जो मर गये, सो गये। इस रूप में वे आने के नहीं। उनको पुनः पुनः स्मरण करने से मरण के संस्कार ही पुष्ट होंगे। अतः वेद कहता है--
'मा गतानामा दीधीया ये नयन्ति परावतम्'
(अथर्ववेद ८/१/८) मरों का चिन्तन मत कर वे जीवन से परे ले जाते हैं। प्रत्युत
'आ रोह तमसो ज्योति:' अ•८/१/८=मृतक चिन्तनरूप अन्धकार से ऊपर उठकर जीवन ज्योति प्राप्त कर।
जीवन के विघ्नों का नाम मृत्यु या मृत्यु पाश है। दीर्घ जीवन के अभिलाषी को इन मृत्युपाशों को काटना होगा। वेद कहता है,अशस्ति=गन्दगी, दुराचाररूप मृत्युपाशों को छोड़।
समस्त अशस्त=निन्दित आचार, तथा व्यभिचार आदि, युक्त आहार- विहार का अभाव जीवन को घटाने वाले हैं। यह मृत्यु को समीप लाने वाले हैं, अतः इनका त्याग ही करना चाहिए।अशस्ति के विपरीत ब्रह्मचर्य=परमात्मा के आदेशानुसार आचार, मौत को मारने का प्रबल हथियार है। जैसा कहा है--'ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत'
(अ•११.५.१९)=ब्रह्मचर्यरूपी तप के द्वारा विद्वान मृत्यु को मार भगाते हैं।
और ब्रह्मचर्य से दीर्घ जीवन मिलता है।
हे मेखले !(कोपीन) ! जिस तुझको सत्यकारी पूर्ण ऋषि बांधते हैं, वह तू मुझे दीर्घ जीवन के लिए आलिंगन कर। मेखला ब्रह्मचर्य का बाह्य चिन्ह है। दीर्घजीवन अभिलाषी को ब्रह्मचर्य धारण करना चाहिए और उसके साधनों मेखलाबन्धन -आदि में कभी प्रमाद न करना चाहिए।
वैदिक मन्त्र
जीवतां ज्योतिरभ्येह्यर्वां त्वा हरामि शतशारदाय।
अवमुञ्चन्मृत्युपाशानशस्तिं आयु: प्रतरं ते दधामि।। अथर्ववेद ८/२/२
वैदिक भजन १०६८ A
भाग १
राग छायानट
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
राग छायानट
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
राग छायानट
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
ताल कहरवा ८ मात्रा

सौ वर्ष जीवन के प्रभु ने दिए हैं
पाया प्रभु का आधार
सौ वर्ष........
दीपक एक दूजे को जलाते(२)
दीर्घजीवी भी यही सिखाते(२)
उनकी दिनचर्या को देखो(२)
क्या है जीवन-आधार
सौ वर्ष.......
जैसी ही संगति वैसे विचार(२)
शुद्ध विचारों से बनते आचार(३)
दीर्घजीवन के ऐ अभिलाषी!(२)
दीर्घजीवी का संग धार।।
सौ वर्ष.........
मरों का चिन्तन छोड़ ही देना(२)
जो मर गए वो आएंगे ना(२)
उनकी गति देखेंगे ईश्वर(२)
तू अपने को संवार।।
सौ वर्ष......
भाग २
सौ वर्ष जीवन के प्रभु ने दिए हैं
पाया प्रभु का आधार
सौ वर्ष......
मृतक चिन्तनरूप है अन्धकार(२)
रख जीवन ज्योति- उपहार(२)
विघ्न जीवन के मृत्यु-पाश हैं(२)
दीर्घ जीवी को ना स्वीकार।।
सौ वर्ष......
पापी व्यभिचारी हैं अराति(२)
तृष्णा उनकी बुझी नहीं पाती(२)
ब्रह्मचर्य-आचार प्रबल हैं(२)
देते हैं मृत्यु को मार।।
सौ वर्ष.....
मेखला बांधते सत्यव्रती ऋषि(२)
दीर्घ जीवन पाते हैं अनुभवी(२)
ब्रह्मचर्य है दीर्घ जीवन-निधि(२)
वासना का करें प्रतिकार।।
सौ वर्ष......
शब्दार्थ:-
संगति=मेल-मिलाप
पाश=बन्धन
मेखला=धागे आदि की करधनी
वासना=कामना,इच्छा
प्रतिकार=रोकने के लिए किया जाने वाला प्रयत्न