Om, Aum

Om

Om sound emanated with Brahmand Vishphotak. It is still reverberating. It is the most ancient sound and is also always new or Navah. Om sound is anahat. Ahat means injured. Om is anahat, means this sound does not hurt anything anywhere.

In Rig Ved Om is described as:

    Prajapati vai idam agra asit  
    Tasya vak dvitiya asit  
    Vag vai paramam Brahma

    In the beginning was Prajapati,  
    the Brahma with whom was the Word,  
   and the Word was verily the Supreme Brahma

   Om is the निज name of Parmatma, He has many names but Om is his निज name. Om has three syllables and each of these three syllables gives other names of Parmatma. E.g. O root gives Agni and Virat names. U gives Vayu and Hiranya Garbaha.  M gives Ishwar, Aditya.  
   Other than Om, all names of Parmatma describe his qualities. These other names are गुन वाचक. All of his names are सार्थक. Human may have a name which does not reflect his qualities e.g. shaktivan may not be courageous. However, all names of Parmatma are true to his qualities.  

  Om is a single syllable mantr. Mandukya Upnishad talks about the significance of Aum. This mantra reveals an idea that these three letters represent three states of Vishwa(waking), Taijasa(dreaming), Prajna(deep sleep) and the silence after aum represents the absolute innermost reality or atma which is the substratum of any conscious being.   

The 3 syllables + 1 silence can refer to the various states of the human mind, awake, sleep, dream & unity state. It also refers to creation, sustenance and destruction of the universe itself.

Om7

नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानीं॒ नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् । किमाव॑रीव॒: कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भ॒: किमा॑सी॒द्गह॑नं गभी॒रम् ॥ Rigved 10-129-1
Om12
Word-Meaning: -(तदानीम्) सृष्टि से पूर्व उस समय प्रलय अवस्था में (असत्-न-आसीत्) शून्य नितान्त अभाव न था (सत्-नो-आसीत्) सत्-प्रकटरूप भी कुच्छ न था (रजः-न-आसीत्) रञ्जनात्मक कणमय गगन-अन्तरिक्ष भी न था (परः-व्योम न-उ-यत्) विश्व का परवर्ती सीमारूप विशिष्ट रक्षक आवर्त-घेरा खगोल आकाश भी न था (किम्-आ-अवरीवः) आवरणीय के अभाव से भलीभाँति आवरक भी क्या हो सके ? न था (कुह कस्य शर्मन्) कहाँ ? न कहीं भी तथा प्रदेश था, किसके सुखनिमित्त हो (गहनं गभीरम्-अम्भः किम्-आसीत्) गहन गम्भीर सूक्ष्म जल भी क्या हो सके अर्थात् नहीं था, जिससे भोग्य वस्तु उत्पन्न हो, जिसमें सृष्टि का बीज ईश्वर छोड़े ॥१॥
Connotation: -सृष्टि से पूर्व न शून्यमात्र अत्यन्त अभाव था, परन्तु वह जो था, प्रकटरूप भी न था, न रञ्जनात्मक कणमय गगन था, न परवर्ती सीमावर्ती आवर्त घेरा था, जब आवरणीय पदार्थ या जगत् न था, तो आवर्त भी क्या हो, वह भी न था, कहाँ फिर सुख शरण किसके लिये हो एवं भोग्य भोक्ता की वर्तमानता भी न थी, सूक्ष्मजलपरमाणुप्रवाह या परमाणुसमुद्र भी न था, कहने योग्य कुछ न था, पर था, कुछ अप्रकटरूप था ॥१॥

Om8

Om9

Om10

Om11

  Other words for Om are Aum, Omkara, Ekaksharam, and Pranav. Based on Gunsandhi, Aa and Uu  together make O sound. Aa+ Uu +Mm= OM.

Om2

Om6

Om5

🕉 OM-sacred & spiritual Symbol and its Representation in some Asian Scripts

*In Cambodia & Thailand, the symbol is known as Om, Aom, or Unalaom. In Khmer literature (Cambodia), this symbol is called "Komutr"

Bharti Raizada

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जानिए ॐ के 11 शारीरिक लाभ

प्राचीन भारत से लेकर अब तक ॐ का बहुत महत्व है। ॐ सानतन संस्कृति का मूल आधार ही है , यह एक शब्द नहीं स्वंय परमात्मा ही है। आज संस्कृति में हम आपको ॐ के 11 शारीरिक लाभ बतायेंगे जो आपके लिए बहुत महत्वपुर्ण हैं।

ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।
“अ” का अर्थ है उत्पन्न होना,
“उ” का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
“म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना।

ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।

ॐ शब्द का महत्व और उसका वैज्ञानिक अर्थ – संस्कृति।

जानिए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग…

ॐ और थायराॅयडः-
ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
ॐ और घबराहटः-
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
ॐ और तनावः-
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
ॐ और खून का प्रवाहः-
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
ॐ और पाचनः-
ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।
ॐ लाए स्फूर्तिः-
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
ॐ और थकान:-
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
ॐ और नींदः-
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।
ॐ और फेफड़े:-
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
ॐ और रीढ़ की हड्डी:-
ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
ॐ दूर करे तनावः-
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
आपको यह अवश्य करना चाहिए ॐ का उच्चारण करते रहिए और जीवन में तनाव भगाते रहिए , ॐ का उच्चारण करने मात्र से बहुत फायदा मिलता है।

Acharya Kamlakant Bahuguna Ji:
ॐ" शब्द के उच्चारण का अभ्यास
यदि किसी को मानसिक शांति वा ऊर्जा की आवश्यकता हो तो यह लेख है।
ॐ का उच्चारण करने से क्या होता है ??
पहले जानिए कि, ॐ शब्द
" आकार
उकार
और मकार "
की ध्वनि से बना है।
यदि आप होंठों को बंद करके " अकार " का उच्चारण करेंगे तो आपको मष्तिष्क में झनझनाहट महसूस होगी जिससे जड़ अर्थात भौतिकता का संज्ञान लिया जाता है।
जब आप " उकार " का उच्चारण करेंगे तो आपको छाती के आस-पास झनझनाहट महसूस होगी जो कि संवेदनाओं का स्थान है। अर्थात भाव-विभोर होकर किसी को गले लगा लेने का मन इसी स्थान से उठी संवेदना के कारण होता है।
और जब आप बंद होठों से " मकार " यानी मा का उच्चारण करेंगे तो आपकी नाभी के चारों ओर झनझनाहट होगी जो कि जीवऊर्जा का केंद्र है। मतलब भ्रूण को पोषण और जीवन इसी स्थान से मिलता है।
इस प्रकार ॐ का उच्चारण मष्तिष्क , हृदय वा नाभि को एक साथ झंकृत करता है इसलिए हर मंत्र के पहले ॐ को रखा गया है ।
यदि आप अपने मष्तिष्क , संवेदनाओं वा सृजनशीलता को नियंत्रित करना चाहते हैं तो ॐ शब्द का उच्चारण बार-बार कीजिये । आप बेहद सकारात्मक व शरीर में महसूस किया जा सकने वाला परिवर्तन अनुभव कर पाएंगे। ऊर्जा का संचार अनुभव कर पाएंगे।
मष्तिष्क मतलब विचार काबू में और , हॄददय मतलब भाव काबू में और नाभि केंद्र अर्थात जीवन की सृजनशीलता भी काबू में मतलब बेलेंस होती जाएगी।
करके देखिएगा आपको अद्भुत अनुभव प्राप्त होगा और हाँ लेख के अंत में बता दूँ की ॐ का उच्चारण किसी देवता का आह्वान नहीं बल्कि विशुद्ध वैज्ञानिक क्रिया है इसलिए ॐ का उच्चारण करने से ना किसी का धर्म उसे पारितोषक देगा न ही किसी का धर्म भ्रष्ट होगा।
ॐ शब्द वैदिक बीजमंत्र है औऱ ध्वनि विज्ञान का पूर्ण वा उच्च उदाहरण है। वस्तुतः सारे मंत्र बल्कि दुआ- बददुआ जैसे भाव भी ध्वनि विज्ञान पर आधारित बातें हैं।
अभी बस इतना समझ लीजिए कि ॐ शब्द जीवन को मन, शरीर और आत्मा तीन अलग-अलग रूपों में समझ सकने का आधार है।

The_Gods_Within_The_Vedic_Tradition_and.pdf

ओ३म् का नाम, सदा मन भाये
ओ३म् का नाम
ओ३म् को जो, श्रद्धा से ध्याये(२)
मनवांछित फल, वो ही पाए
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये

नगर-डगर क्यों, ढूँढन जाए
प्यारे प्रभु तो, मन में समाए
दुरित हृदय उसे, देख ना पाए
सोम हृदय में, ओ३म् समाए
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये

वेद सुने पढें, अन्तर अँखियाँ (२)
अन्तर्मन करे, प्रभु से बतियाँ
सत्य के मार्ग, चले दिन-रतियाँ (२)
क्योंकर मन, फिर भटकन जाये ?
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये
ओ३म् का नाम

उसकी शरण, दु:ख दर्द मिटाए(२)
आत्मा में, आनन्द जगाए
भवसागर ना, भये भयानक
जीवन तरणी, वो ही तराये
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये
ओ३म् का नाम

तार मिलन के, प्रभु से जोड़ें(२)
जीवन कम हैं, दिन भी थोड़े
तारों में हों, ओ३म् की तानें
टूटे तार तो, काम ना आयें
ओ३म् का नाम,
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये
ओ३म का नाम्
ओ३म् को जो, श्रद्धा से ध्याये
मनवांछित फल, वो ही पाए
ओ३म् का नाम, सदा मन भाये

रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- 29/07/2013 09:15 प्रातः
*राग :- जयजयवंती

  • गायन समय रात्रि १० से १२
    ताल कहरवा ८ मात्रा

शीर्षक :- मिलन के तार
तर्ज :- *
780-00181
भजन नं ८०६

प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :--

जिस प्रकार पूरे ब्रह्मांड में आकाश छाया हुआ है, उसी प्रकार परमात्मा व्योम की तरह पूरे ब्रह्माण्ड को अपने नियन्त्रण में लिए हुए विराजमान हैं। व्योम शब्द में भी वि उपसर्ग + ओ३म् से व्योम शब्द की उत्पत्ति हुई है। परमात्मा आकाश की तरह चारों ओर से छाया हुआ हर प्रकार से हमारा पालन पोषण और रक्षण कर रहा है। एक छोटी सी वस्तु पाने पर हम देने वाले का धन्यवाद कर देते हैं, पर जिसने अपने लिए कुछ ना रख कर सब जीवात्माओं को समर्पिण कर दिया है।
तो क्या हम अपने आप को परमात्मा में समर्पित नहीं कर सकते? समर्पण भाव लाने से पहले हमें याज्ञिक बनना पड़ता है। यज्ञ स्वयं में समर्पण भाव से ओतप्रोत शब्द है। स्वयं परमात्मा भी तो याज्ञिक ही हैं। याज्ञिक- कर्म पाप, दूरितऔर सभी ईर्ष्या द्वेष वैमनस्य आदि विनाशकारी भावों को जलाकर राख कर देता है। इसलिए व्यर्थ में इधर उधर भटक कर,ऐसे महान नाम ओ३म् का जाप करते रहने से ईश्वर के अधिकाधिक गुणों का हृदय में धारण होता है। तब परमात्मा का हृदय से अन्तःकरण से सम्बन्ध जुड़ जाता है। सारी तुच्छ इच्छाओं का विनाश हो जाता है, और ओ३म् से सम्बन्धित जितनी मनवांछित वस्तुएं है, हमें प्राप्त हो जाती हैं।
जो प्रारम्भ से ही ओजोमय ओ३म् की शरण में आ जाते हैं, उन्हें भवसागर भी भयानक नहीं लगते क्योंकि उनका मांझी वही ओ३म् रहता है। परमात्मा अपने भक्तों को भवसागर में डूबने नहीं देते बल्कि उस पार परम आनन्द की ओर, मोक्ष की ओर, ले जाते हैं।
आइए ! हम अपने ओ३म् के ध्यान के स्वरों में अपनी स्वरमयी तारों को, तरंगित करके, ओ३म् के गुणगान के द्वारा इतने खो जाएं कि अपना अस्तित्व भुला दें। पाप,दुरित, दुर्गुणों से उन तारों को तोड़ ना दें, क्योंकि टूटे हुए तार तो काम नहीं आते।
इससे पहले कि काल- विकराल हमें निगल जाए, हम दौड़कर उस महान शक्तिशाली परमात्मा के पास पहुंच जाएं,
ताकि कोई अन्य शक्ति हमारा कुछ ना बिगाड़ सके।

https://www.youtube.com/watch?v=B7veqM1rK-A