Radhastami
Bharti Raizada
राधा रानी जगत जननी का जन्म भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी अनुराधा नक्षत्र में वर्षभानु अग्रवाल के घर हुआ इनके छोटे भाई नंद लाल अग्रवाल हैं राधा रानी का विवाह स्वंय महाराज अग्रसैन जी के कुल गुरु महर्षि गर्ग जी की उपस्थिति में भगवान कृष्ण से हुआ जिसका पूर्ण वर्णन महर्षि गर्ग की पुस्तक गर्ग संघीता में है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में मुखिया वृषभानु गोप एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी का प्राकट्य जन्म हुआ। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी उनकी माता ने अपने गर्भ को धारण कर रखा था उन्होंने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।
राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।
शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात राधा का विधिपूर्वक विवाह संपन्न कराया था। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है।
श्री राधा जी की जन्म कथा:
आज से पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट #रावल_गांव में वृषभानु एवं कीर्ति देवी की पुत्री के रूप में राधा रानी ने जन्म लिया था।
राधा रानी के जन्म के संबंध में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी, उनकी माता ने अपने गंर्भ में #वायु को धारण कर रखा था। उसने योग माया की प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गईं।
श्री राधा रानी जी कलिंदजाकूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई। उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल १२ बजे और सोमवार का दिन था।
उस समय राधा जी के जन्म पर नदियों का जल पवित्र हो गया। सम्पूर्ण दिशाए प्रसन्न निर्मल हो उठीं।
वृषभानु और कीर्ति देवी ने पुत्री के कल्याण की कामना से आनंददायिनी दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान में दीं।
ऐसा भी कहा जाता है कि एक दिन वृषभानु जी जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका "कमल के फूल" पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के
रूप में अपना लिया।
श्री राधा रानी जी आयु में श्री कृष्ण जी से ग्यारह माह बडी थीं।
लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली हैं। इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ।
कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज की पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती हैं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती हैं।
यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती हैं और जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते हैं तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती हैं।
अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए वे एक टक कृष्ण जी को देखती हैं। अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते हैं। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओ के लिए भी दुर्लभ हैं तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ों जन्मो तक तप करने पर भी जिनकी झाँकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के
यहाँ साकार रूप से प्रकट हुई और गोप ललनाएँ जब उनका पालन करने लगीं, स्वर्ण जडित और सुन्दर रत्नों से रचित चंदन चर्चित पालने में सखीजनों द्वारा नित्य झुलाई जाती हुई श्री राधा प्रतिदिन शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की कला की भांति बढ़ने लगीं।
श्री राधा क्या हैं: रास की रंग स्थली को प्रकाशित करने वाली चन्द्रिका, वृषभानु मंदिर की दीपावली, गोलोक चूड़ामणि, श्री कृष्ण की हारावली है।
हमारा उन परम शक्ति को सत्-सत् नमन है।
Radha's connection to Krishna is of two types:
svakiya-rasa (married relationship) and
parakiya-rasa (a relationship signified with eternal mental "love").
The Gaudiya tradition focuses upon parakiya-rasa as the highest form of love, wherein Radha and Krishna share thoughts even through separation.
Radha and Krishna were separated because of Shridhama's curse. Shridhama was a friend and a devotee of Shri Krishna, who believed that Bhakti (devotion) is higher than Prem (live). Therefore, he did not want people to take Radha's name before Krishna's. --श्रीमद्भागवत महापुराण
प्यार से ऊंचा त्याग और जिम्मेदारी भी होती है।
किशन कन्हैया जब राधा के साथ थे । उस के बाद उन को उदधव जी मथुरा ले गये थे। जहाँ उन को युध कला और दर्शन की शिक्षा मिली ।
कस का वध माता पिता को कैद से आजाद कराया।।और क्ई जिम्मेदारी निभाई
राधा के अलावा उन को अपने ेमाता पिता, परिवार , मित्र सब छोडना पड़ा था।
उस वक्त के हालात कुछ और थे।
हम अपने नजरिये से सोच रहे है कि प्यार के बाद राधा से शादी करनी चाहिए थी
हम ये सवाल आज में कर रहे है।
(Radha krishna ka byaah)
Krishna vishnu k avtar the
Nd Radha Rukmani dono laxmi ka avtar thi
Vo dono ek hi thi
Bas 2 Roopo me thi
Vishnu ki shadi lxmi se hi honi thi
Har avtar me.
Radha pyar ka balroop thi
Nd Rukmani kartavya nd responsibility ka .