प्राचीनकाल में दीपावली पर्व को "नवसस्येष्टि" के नाम से पुकारा जाता था क्योंकि इस दिन लोग (नव -नया,सस्य -फसल,इष्टि - यज्ञ) नई फसल के आने पर बडे -बडे यज्ञों का आयोजन करते थे जिसमें नए अन्न की आहुति दी जाती थी
Deepawali means deepon ki aawali- rows of diyas.
It comes on the Amavasya day of Kartik month. Prayers are offered to Devi Laxmi, Ganesh ji, Devi Sarasvati, and Kuber Devta. Laxmi ji and Kuber ji give prosperity and wealth. Saraswati devi gives knowledge and Ganesh ji gives wisdom. Wealth is best used with knowledge and wisdom.
Ram ji is called as Maryada Purushottam shri Ram. Maryada is boundary. Ram always worked in the boundaries of Dharm. Purushottam is made of two words Purush and Uttam. Purush is man and uttam means excellent. Ram is excellent among humans.
Ram was the eldest son of king Dashrath. Bharat was next and then Laxman and Satrughan. Laxman and Shatrughan were twins.
Stories associated with Deepawali are:
- It is Navasasyeshti. Harvest of autumn crop and offering grains to Yagya.
- Ram's return to Ayodhya, after 14 yrs of exile.
- Killing of Narkasur by Krishn.
- Pandavs return to their kingdom after exile.
- Nirvan diwas of Rishi Dayanand Saraswati.
- Nirvan diwas of 24th Jain Tirthankar, Mahavir Ji. Deepalikaya means jyoti leaving the body. Deep means light/jyoti and kaya is sharir/body.
- Day when Guru Har Gobind Singh was released from captivity. Baandi chorh diwas.
Questions:
- why we offer prayers to Laxmi Devi on Deepawali? If Ram returned to Ayodhya, why do we ask for wealth from Laxmi Ji?
- Why we do not offer prayers to Shri Ram on Deepawali?
- Why is it a five day festival?
- Why bhai dooj is part of Deepawali festival?
- What is the relation between Dhanteras and Ram returning to Ayodhya?
Food for thought:
We offer prayers to LAxmi Devi on Deepawali and ask for wealth and prosperity. Instead we should be asking for qualities of Laxmi Devi. We should try to imbibe characteristics of Laxmi Devi. We should strive to be givers, Nishkaam givers.
Lakshmi represents Lakshya. Uloo is Laxmi Ji's Vaahan. What others can not see, Uloo can see.Uloo has different abilities. When all possibilities seem distant to others, Uloo still can work through those possibilities.
हिन्दू धर्म के अनुसार कितने युग होते हैं
1 Sat Yug
2 Treta Yug
3 Dwapar Yug
4 Kal Yug
सारे युगों के नाम लिखिए।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने किस युग मे अवतार लिया था?
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी की माता का क्या नाम था।
राजा दशरथ को किसने पुत्र वियोग का श्राप दिया था और क्यों।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम को कितने वर्ष का वनवास दिया गया था और किसने दिया था।
वनवास को जाते समय किसने प्रभु श्री राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण को गंगा नदी पार करने में सहायता की थी।
प्रभु श्री राम के परम मित्र वानरराज सुग्रीव किस पर्वत पर रहते थे और क्यों।
प्रभु श्री राम के परम भक्त हनुमान किसके अवतार थे?
भगवान विष्णु
भगवान ब्रह्मा
भगवान शिव
श्री कृष्ण
रामभक्त हनुमान की माता जी और पिताजी का क्या नाम था।
माता सीता के अपहरण का कारक स्वर्ण मृग वास्तविकता में कौन था
खर
दूषण
मारीच
रावण
जब रावण माता सीता को अपहरण करके ले जा रहा था तो किसने रावण से युद्ध करके माता सीता को बचाने का प्रयत्न किया था।
पक्षीराज सम्पाति
पक्षीराज जटायु
नागमाता सुरसा
कालनेमि
रावण ने माता सीता को लंका में कहा पर बंदी बना कर रखा था।
अशोक वाटिका
पंचवटी
किशोर वाटिका
स्वर्ण वाटिका
बंदी गृह में माता सीता की सेविका त्रिजटा किसकी पुत्री थी।
इंद्रजीत
कुम्भकर्ण
विभीषण
रावण
लंका जाने हेतु पुल निर्माण से पहले प्रभु श्री राम ने एक शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी। उस शिवलिंग का क्या नाम है।
सीता जी की सुधि लेने हेतु सबने हनुमान जी को भेजने का निश्चय किया था लेकिन हनुमान जी अपनी शक्तियों को भूल चुके थे, हनुमान जी को उनकी शक्तियां किसने याद दिलाई थी?
पुल निर्माण हेतु किसने प्रभु श्री राम को बताया था कि उनकी सेना में ही कोई है जो पुल निर्माण में सहायक होगा?
पुल निर्माण में प्रभु श्री राम की सेना में से किसने मुख्य भूमिका निभाई और कैसे।
अनुज लक्ष्मण को जब शक्ति बाण लगा और वो मूर्छित हो गए, तब उनके उपचार हेतु संजीवनी कौन लेकर आया था।
किस असुर ने संजीवनी लेकर आने वाले का रास्ता अवरुद्ध किया था और उसे किसने भेजा था।
लंका की सेना में दशकंधर कौन था?
मकरध्वज कौन था?
रावण की भार्या का क्या नाम था?
रावण का वध प्रभु श्री राम ने किस दिन किया था?
माता सीता को लेकर प्रभु श्री राम किस विमान से अयोध्या लौते थे।
🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹
1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।
8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।
15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।
17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं तो जानिये-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |
Answers
सही उत्तर
1, भरत
2, अगद
3 सुषेन
4 सुग्रीव
5 नल नील
6 विश्वामित्र
7 सीता माता
8 जामवंत
9 Hanuman/Sharbhang
10 जनक
11 कैवट या नाविक
12 विभीषण
13 कौशल्या माता
14 बाली
15 कुम्भकर्ण
16 मंथरा
17 परशुरामजी
18 Sunyana
19 रावण
20 महर्षि वशिष्ठ
21 केकैयी
22 मृग मरिच
23 जटायु
24 हनुमानजी
25 मेघनाद
26 अहिल्या माता
27 राजा दशरथ
28 महर्षि अगस्त्य
29 Trijata
30 शबरी माता
31 देवी मंदोदरी
32 सुरसा
33 प्रधानमंत्री Sumantra
34 निषादराज
35 लक्ष्मण जी
36 राजा रामचंद्रजी
Questions related to Ramayana and Mahbharata.docx
Based on the Ramayana Epic by Valmiki
-
Who was the sage to whom Valmiki asks “Kaunasmin Sampradam loke Gunavan, Veeravan etc” . i.e who in this contemporary world has the following characters , Brave, Empathetic etc
a. Vashista
b. Vishwamitra
c. Agastya
d. Narada -
How many verses/ Slokas are there in Ramayana?
a. 24,000
b. 25,000
c. 26,000
d. 27,000 -
Which sage came to the court of Dasharatha to ask Rama to accompany him to protect Yagas?
a. Vashista
b. Vishwamitra
c. Agastya
d. Narada -
How many divine qualities does Rama possess as told by sage Narada to Valmiki?
a. Million
b. Thousand
c. 32
d. 16 -
Who was Maricha and Subahu’s mother who kept interrupting the Yagas conducted by Sage Vishwamitra?
a. Sunda
b. Suketa
c. Tataka
d. Trijata -
What is the name of the mantra that Vishwamitra gave Rama and Lakshmana to conquer pain and hunger?
a. Atharvashirsha
b. Bala Athibala
c. Mrityunjaya
d. Aditya Hrudaya -
Who was sage Dasharathas close friend who ruled Anga?
a. Rishyashrunga
b. Romapada
c. Sheeradhwaja
d. Kushadwaja -
What is the name of the Dhanush that Rama broke during Sita’s swayamvara?
a. Sharanga
b. Pinaka
c. Gandiva
d. Mahendra -
What is the name of shravana kumaras father who cursed Dasharatha?
a. Subahu
b. Shantanu
c. Suketu -
When Rama was exiled and was taking a chariot which minister did Dasharatha send to accompany Rama?
a. Jayantha
b. Dhrishti
c. Manthrapala
d. Sumantara -
What is the name of the place that Rama meets Guha the king of Nishadas which was the first stop of the exile ? This place is situated in the banks of Ganga
a. Kundapura
b. Shringiberapura
c. Ratnapura -
Identify this place where Rama and Bharata met during the exile?
a. Hampi
b. Chithrakoota
c. Dandaka -
What was the article that Rama gave Bharata when Bharata refused to leave without Rama as a symbol that he is the defacto ruler of Ayodhya?
a. Choodamani
b. Paduka
c. Pinaka -
Who was the wife of Sage Atri whom sita met at Chithrakoota and who gifted sita with ornaments?
a. Arundhati
b. Urmila
c. Anasuya -
Who was the demon in Dandaka forest whom Rama fought with and who got an invincibility boon from Brahma
a. Mareecha
b. Subahu
c. Viradha -
Who is the sage whose last wish was to see Rama before achieving moksha in Dandaka vana ?
a. Suteekshna
b. Sarabhanga
c. Kaushika -
We have heard of Surphanakha and Surpakarna; what does Surpha mean in sanskrit
a. Bamboo Sieve
b. Bamboo baset
c. Bamboo nail -
Who was not a brother of Surpanakha
a. Khara
b. Dushana
c. Ravana
d. Vishrava -
Khara, Dushana bring how many warriors to fight with Rama and Lakshmana at Janasthana?
a. 13,000
b. 13,500
c. 14,000
d. 14,500 -
Where is Janasthana located in Bharath currently?
a. Pune
b. Nashik
c. Indore
d. Patna -
Who came as a golden deer near Panchavati whom sita wanted to play with?
a. Khara
b. Dushana
c. Subahu
d. Mareecha -
What was the name of Ravanas Chariot which he carried Sita Devi in?
a. Prasanna Vimana
b. Pushpaka Vimana
c. Pushya Vimana -
What was the name of the eagle king who fought with Ravana and was given Moksha by Rama
a. Sampati
b. Garuda
c. Jatayu -
What is the name of the vamsha from which Rama came?
a. Manuvamsha
b. Ajaamsha
c. Raghuvamsha -
Who is King Dasharathas father?
a. Manu
b. Aja
c. Ishvaku -
What was the kingdom that Vali and Sugriva ruled over?
a. Vanarasthala
b. Kishkindha
c. Hampi -
What was the name of the raging demon that Vali was fighting and got stuck in a cave?
a. Mantra
b. Mayavi
c. Mantri -
Which god is Hanuman an incarnation of?
a. Vishnu
b. Brahma
c. Shiva -
When Rama and Lakshmana came to Kishkinda what form did Hanuman take to meet them?
a. Ascetic
b. King
c. Farmer -
When Rama and Lakshmana came to Kishkinda what form did Hanuman take to meet them?
a. Ascetic
b. King
c. Farmer -
Identify this place in Karnataka which is closest to Kishkinda?
a. Hasan
b. Belur
c. Hampi -
When the vanaras were searching for Sita who helped them with clue about Ravana?
a. Garuda
b. Aruna
c. Sampatti -
Who encourages Hanuman to jump across the ocean to find Sita?
a. Angada
b. Nala
c. Nila
d. Jambavan -
Who is the mother of Nagas/Serpents who tested Hanuman when he was crossing the ocean by asking him to pass through her mouth?
a. Simhika
b. Surasa
c. Lankini -
Whom does Hanuman mistake to be Sita at first in Lanka?
a. Trijata
b. Taraka
c. Mandodari -
What is the name of the garden where Sita devi is found in Lanka?
a. Ashokavana
b. Pushpavana
c. Lankavana -
What is the name of the tree under which Sita is sitting under and meditating on Rama?
a. Peepal
b. Simshuba
c. Banyan -
When Vibeeshana comes to do Sharanagati to Rama or surrender to Rama who convinces him to accept Vibeeshana?
a. Sugreeva
b. Jambavan
c. Nala
d. Hanuman -
Reason that Hanuman gives to all vanaras as to why Rama should accept Vibeeshana is only his daughter was kind to Sita in Ashokavana. Who is Vibeeshana’s daughter?
a. Taraka
b. Trijata
c. Lankini -
When Vanaras and Rama had to crosss the ocean whom did Vibeeshana suggest Rama pray to get permission to cross the ocean?
a. Samudra Raja
b. Surasa
c. Simhika
d. Lankini -
What is the name of the bridge that extends from Rameshwaram to Danushkodi
a. Pamban Bridge
b. Ramsetu -
Who was the vanara whom Rama sent to broker peace between him and Ravana
a. Angada
b. Nala
c. Neela
d. Hanuman -
First minister that Ravana sends to fight with Rama is Brihastha?
a. False
b. True -
What is the name of the Asthra that Indrajith used on Rama and Lakshmana?
a. Bramasthra
b. Nagasthra
c. Pashupathashtra -
Who helps Rama and Lakshmana come out of the Nagasthra in the war with Ravana
a. Sampati
b. Jatayu
c. Garuda -
Who helps Rama and Lakshmana come out of the Nagasthra in the war with Ravana
a. Sampati
b. Jatayu
c. Garuda -
As Rama defeats Kumbhakarna and grants him Moksha who was he in his previous birth and whom does he go back as?/
a. Jaya
b. Vijaya
c. Nishumba -
Who helps Rama and Lakshmana come out of the Nagasthra in the war with Ravana
a. Sampati
b. Jatayu
c. Garuda -
To get the magical herb Sanjeevani to cure Lakshmana which entire mountain does Hanuman Bring?
a. Himalayagiri
b. Udayagiri
c. Dronagiri -
If Indrajith is disturbed during his penance he will become powerless
a. True
b. False -
During Rama and Ravanas fight ; Ravana loses all his asthras one day. What does Rama tell Ravana
a. Rama won the war
b. Go back for the day and come tomorrow -
When Rama wins over Ravana what does he ask Vibeeshana to do
a. Call himself the king of Lanka
b. Do Ravanas funeral -
Who gives the sloka “Sri Rama Rameti Rame Rame Manorame?” Sahasra nama tattulyam rama nama varanine” to Parvathi Devi?
a. Bhrama
b. Vishnu
c. Shiva
Birthplace of Ravan and Mandodari is Bisrakh in Noida
Bharat Varsh(Ancient India) during Ramayana period, route which was followed by Sri Ram during his 14 years exile.
Some experts claim Rama lived during 7000 BCE(9,000 years ago) and some claim it during 12,000 BCE (14,000 years ago)
Note: Rama travelled many more places during 14 years of exile, only few are shown here.
एक बार अयोध्या के राज भवन में भोजन परोसा जा रहा था।माता कौशल्या बड़े प्रेम से भोजन खिला रही थी।
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी...
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया...
लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा...
लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुँचकर माँ सीता जी को बुलवाया...
फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था...
आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना...
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना...
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं...
तृण धर ओट कहत वैदेही...
सुमिरि अवधपति परम् सनेही...
यही है...उस तिनके का रहस्य...
इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही...
ऐसी विशालहृदया थीं हमारी जानकी माता...
क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे।
जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।
पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"
उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥
अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।
विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-
राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥
विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥
विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥
कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥
विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥
रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥
विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥
यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥
विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥
मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥
विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥
रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥
विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥
सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥
विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥
सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥
विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥
तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥
विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥
वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥
विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥
यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥
विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥
रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥
विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥
यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥
विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥
दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥
विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥
सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥
विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥
सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥
विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥
तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥
विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥
गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥
विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥
हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥
विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥
ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।
हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥
विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥
भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥
विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥
हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥
विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥
भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥
विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥
हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥
विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥
सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥
विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥
वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥
विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥
हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥
विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥
नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥
विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥
साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥
विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥
Diwali letter- healthcare prof-2021.docx.pdf
Deepawali coloring book pages:
जिस तरह पूरे विश्व में बच्चो में ये विश्वास पैदा किया गया कि क्रिसमस पर शांता आएगा और उपहार देगा (भारतीय बच्चे भी अछूते नहीं रहे) उसी तरह
हम सब मिलकर हमारे घरों में ये विश्वास दिलाने का अभियान चलाए कि दिवाली की रात को लक्ष्मी जी हमारे घर आती है, और हमको समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाती है।
अतः इस वर्ष से बच्चो को ये बताया जाए समझाया जाए कि लक्ष्मी जी दिवाली की रात को हमारे घर आएंगी और उसके लिए कुछ धन और खिलौने छोड़कर जायेगी।
और जब वह सुबह उठे, तो उन्हे अपने बिस्तर के निकट लक्ष्मी जी द्वारा छोड़े गए धन और खिलौने मिले. यकीन मानिए उनके उत्साह और प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहेगा.
यदि आप उचित समझे तो लक्ष्मी जी के साथ मैं गणेश जी को भी जोड़ देते है और बच्चो को बताते है कि लक्ष्मी जी उल्लू पे और गणेश जी चूहे पे सवार होकर उसके रूम में आशीर्वाद और उपहार देने आएंगे, तो इससे अधिक रोमांचक घटना किसी बच्चे के लिए हो ही नहीं सकती।
और हाँ, प्रयास कीजिए कि खिलौने भारत में बने (मेड इन इंडिया) हुए होने चाहिए।
हमारे पुराण, हमारी कथाएं, हमारी आस्था पूरे विश्व में अनूठी है, रंगो से भरपूर हमारे विश्वास की डोर से बंधी है। हमारी संस्कृति जैसी किसी की भी नही है।
MaryadaPurushottamShriramKaPrerakSwaroop.pdf
Quiz
1- What was the traditional day of rest in ancient India? (Hint: Not every weekend)
- 1st Sunday
- Full Moon or Poornima
- New Moon or Amaavasya - Correct
- There were no Days off!!
2 - True or false
Deepavali celebrates the autumn harvest
True
3 - The ancient way to celebrate the harvest was to offer the grains in a Yajnya. What was this Yajnya called?
- Deva Yajnya
- Lakshmi Yajnya
- Pitr Yajnya
- Nava Sasyeshti Yajnya--Correct
4 -Meaning of the word Deepavali
- A Deep Valley
- A Mountain of Lights
- A Night of Lights
- A Row of Lights--Correct
5 - What is the meaning of Lakshmi?
- Beauty
- Truth
- Wealth and prosperity gifted by God- Correct
- Strength
6 - Complete the phrase - Tamaso maa --------- gamaya
- Jyotir- Correct
- Amrutam
- Sat
- Deepam
7 -What is not a benefit of Yajnya?
- It helps to clean the environment (air, water, earth, space)
- It teaches us to give and share
- It teaches us how to work together
- It teaches you to time travel- Correct
8 - The most important part of Diwali is
- Buying clothes and gifts
- Food
- Fireworks
- Giving- Correct
9 -A historical event connected with Deepavali is
- The Nirvana of Mahavir (Founder of Jainism)
- The return of Sri Rama to Ayodhya
- Maharshi Dayanand Saraswati's death on October 30, 1883
- All of the above- Correct
10 - What is the most eco-friendly way to celebrate Deepavali?
- Light clay diyas - Correct
- Light candles
- Fireworks
- Send a lantern up in the sky
रामायण के अनुसार राम की रावण-विजय व अयोध्या-वापसी की वास्तविक तिथियां मार्च मास में न कि अक्टूबर में– एक विश्लेषण ।
आज के समय में समाज में अन्धविश्वास व अन्धानुकरण का प्रभाव बढता जा रहा है। लोग बिना सोचे समझे पुरानी विकृत परम्पराओं रुढियों को सही मानकर उन्हें प्राणप्रण से निभाने का यत्न करते हैं यही कारण है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी मानव का वैचारिक पतन होता जा रहा है। इसी का एक उदाहरण हमें दशहरे के त्यौहार के समय देखने को मिलता है जब समाज के अधिकतर लोग दशहरे का त्यौहार के समय राम की रावण पर विजय होने के उपलक्ष्य में रावण का पुतला जलाते हैं व उसके २० दिन बाद आने वाले दीपावली के त्यौहार को राम के अयोध्या आगमन से जोडते हैं। आज हम इस लेख में यही जानने का यत्न करेगें कि राम की रावण पर विजय व उनके अयोध्या पुनरागमन की सही तिथियां क्या हैं?
इस विषय की वास्तविकता जानने के लिए रामायण ग्रन्थ के अवलोकन से बेहतर अन्य कोई माध्यम नहीं हो सकता कि राम ने रावण पर कब विजय पाई व वे कब अयोध्या लौटे? अतः इसके लिए हम रामायण में घटित घटनाओं की तिथियों का क्रम से अवलोकन करते हैं।
राम का राज्याभिषेक किस दिन होना निश्चित हुआ?
राजा दशरथ अयोध्या नगरी में उपस्थित सभी प्रमुख लोगों के मध्य राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हुए कहते हैं कि
चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितकाननः।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यताम् ॥ (अयोध्या काण्ड,तृतीय सर्ग)
अर्थात् इस श्रेष्ठ और पवित्र चैत्र-मास में जिसमें वन पुष्पों से सुशोभित हो रहे हैं,श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए तैयारियां कीजिए।
यहां स्पष्टरुप से राज्याभिषेक का होना चैत्र-मास में कहा गया है व यही वह समय था जब राम ने चौदह वर्ष के लिए वन-गमन किया अतः यहीं से स्पष्ट है कि वापिस आने की तिथि में भी चौदह वर्ष बाद चैत्रमास में ही होनी चाहिए।
हनुमान् द्वारा लंका में सीता के होने का पता चलने के बाद राम सुग्रीव को युद्ध के लिए प्रस्थान करने का आदेश देते हुए कहते हैं
उत्तराफाल्गुनी ह्यद्य श्वस्तु हस्तेन योक्ष्यते ।
अभिप्रयाम सुग्रीव सर्वानीकसमावृताः॥(युद्ध-काण्डम् चतुर्थ सर्ग)
अर्थात् आज उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है। कल चन्द्रम हस्तनक्षत्र से योग करेगा अतः हे सुग्रीव ! हम समस्त सेना को लेकर आज ही प्रस्थान करें।
यहां से यह स्पष्ट है कि राम ने फाल्गुन मास के उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में युद्ध के लिए लंका प्रस्थान किया था।
रावण के सभी प्रमुख योद्धाओं के मारे जाने पर मंत्री सुपार्श्व रावण को युद्धगमन के लिए प्रेरित करता हुआ कहता है
अभ्युत्थानं त्वमद्यैव कृष्णपक्ष चतुर्दशीम्।
कृत्वा निर्याह्यमावास्यां विजयाय बलैर्वृतः॥(युद्धकाण्डम्-पचासवां सर्ग)
अर्थात् आज कृष्णपक्ष की चतुर्दशी है। आज आप युद्ध की तैयारी पूर्ण कीजिए और कल अमावस्या को सेना को साथ ले विजय के लिए दुर्ग से बाहर निकलिए।
रामायण के इस भाग से स्पष्ट है कि रावण ने युद्ध के लिए अमावस्या को प्रस्थान किया।
रावण को मारकर अयोध्या वापिस आते समय भरद्वाज मुनि के आश्रम में रुकने के सम्बन्ध में रामायण में लिखा है
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः।
भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम्॥(युद्धकाण्डम्-सत्तरवां सर्ग)
अर्थात् वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो जाने पर चैत्रशुक्लपञ्चमी के दिन राम भरद्वाज के आश्रम में पहुंचे और उन्हें यथाविधि प्रणाम किया।
यहां से यह स्पष्ट है कि राम चैत्रशुक्लपञ्चमी के दिन भरद्वाज के आश्रम में पहुंचे।
राम के आगमन की सूचना देने के लिए हनुमान् भरत के पास जाकर कहते हैं
पञ्चमीमद्य रजनीमुषित्वा वचनान्मुनेः।
भरद्वाजाभ्यनुज्ञातं द्रक्ष्यस्यद्यैव राघवम्॥(युद्धकाण्डम्-इकहतरवां सर्ग)
भरद्वाज मुनि के आदेशानुसार आज पञ्चमी की रात वे उसके आश्रम में निवासकर फिर उनकी आज्ञा से वहां से प्रस्थान कर कल यहीं आपसे भेंट करेगें।
इस प्रकरण से यह स्पष्ट है कि राम चैत्रमास की षष्ठी तिथि को चौदह वर्षों का वनवास पूरा करके अयोध्या वापिस आये व यहां यह भी ध्यातव्य है कि राम के राज्याभिषेक से लेकर वनवास समाप्ति का चौदह वर्ष का समय चैत्रमास की पञ्चमी को ही पूर्ण होता है जैसी कि उन्होने भरत को चौदह वर्ष पूर्व भरत से प्रतिज्ञा भी की थी जब वनगमन किए श्रीराम को अयोध्या वापिस लाने गए भरत ने उनसे ये वाक्य कहे
चतुर्दशे हि सम्पूर्णे वर्षेSहनि रघूत्तम ।
न द्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशनम्॥(अयोध्याकाण्डम्-उनासीवां सर्ग)
अर्थात् हे रघुकुल श्रेष्ठ ! यदि चौदहवां वर्ष पूर्ण हो जाने पर पहले ही दिन मैनें आपके दर्शन नहीं किए तो मैं अग्नि में कूदकर भस्म हो जाऊंगा।
भरत की इस प्रतिज्ञा का राम उत्तर देते हुए कहते हैं
तथेति च प्रतिज्ञाय तं परिष्वज्य सादरम् ।
शत्रुघ्नं च परिष्वज्य भरतं चेदमब्रवीत् ॥(अयोध्याकाण्डम्-उनासीवां सर्ग)
“बहुत अच्छा” ऐसा कहकर राम ने भरत और शत्रुघ्न को हृदय से लगाया फिर भरत से बोले।
रामायण के उपरोक्त प्रसङ्गों से यह स्पष्ट है कि राम ने रावण का वध आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी(जैसी कि आधुनिक समय में लोक में मान्यता है) को नहीं बल्कि चैत्रमास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को किया था व राम की अयोध्या वापसी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को नहीं बल्कि चैत्रमास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को हुई थी।
अतः इस विषय में अन्त में मेरा यही कहना है कि यह समाज को दिशा दिखाने वाले विद्वद् समुदाय का कर्तव्य है कि वे विजयदशमी अर्थात् दशहरे के पर्व को राम की रावण पर विजय व राम अयोध्या वापसी को दीपावली के पर्व से न जोडकर इनकी तिथियों का रामायण के आधार पर पुनः निर्धारण कर इसे समाज में प्रचलित करें ताकि समाज में शुद्ध मान्यताओं व परम्पराओं का विकास हो सके।
CoHNA-Diwali-Presentation_Final (2).pdf
https://www.valmikiramayan.net/
https://www.valmiki.iitk.ac.in/
"सुपर एस्ट्रोनोमिकल घटना और सनातन संस्कृति की भावनाओं का जीवंत उत्सव "
सूर्य और चंद्रमा अमावस्या की सबसे गाढी रात्री के दिन "तुला राशि" मे एक ही अक्षांश पर ।
भगवान श्रीराम और माता लक्ष्मी जी दोनो मे ही सूर्य और चंद्रमा का संबंध है ।
राम = र- आ -म तीनो क्रमशः अग्नि(कृषानु), सूर्य(भानु),और चंद्रमा(हिमकर) के ही बीजाक्षर है
माता लक्ष्मी सूर्य और चंद्रमा से ही सुसज्जित रहती है ।
तुला राशि का बोधक तराजू है अतः व्यापारी गण बहीखातों की पूजा से नये वित्तीय वर्ष का प्रारम्भ करते है ।
सूर्य- आत्मा और तप(श्रम) तथा
चंद्रमा- मन,लाभ,सुख के परिचायक है । दीपावली के समय आत्मा, श्रम, मन, लाभ, सुख के परिचायक सूर्य और चंद्रमा एक ही अक्षांश पर होने से संतुलन मे होते है ।
अग्नि सूर्य की शक्ति स्वरूप है अतः अग्नि के द्वारा खुशहाली की कामना मे माता लक्ष्मी जी का आह्वान किया जाता है ।
खुशहाली = सम्पत्ति, वैभव, कृषि, पशुधन, आयु-आरोग्य, लौकिक समृद्धि ।
और दीपावली का दीपोत्सव बदलते मौसम मे विभिन्न प्रकार से वातावरण की शुद्धि करता है-जैसे कीट, पतंगो, वाईरस, बैक्टीरिया का विनाश और गाय के घी के दीपक /यज्ञों से आक्सीजन की बढोतरी ।।
आज दीपावाली का पावन महोत्सव है। और हम सबके प्यारे महर्षि स्वामी दयानन्द जी का निर्वाण दिवस भी है। संसार से विदा होते समय भी, उनकी वाणी में अमृत सी मिठास थी, विषदाता सेवक से भी प्रेम पूर्वक व्यवहार किया, ना कि प्राणंदण्ड दिलवाया। प्यार से समझाया, कि उन्हें जगत के लिए कितना कार्य करना शेष रह गया था, लेकिन फिर भी ₹500 का दान देकर प्रेम पूर्वक उसे भाग जाने को कहा।
दीपावली के इस महोत्सव में भी हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के भी प्रेम के व्यवहार को समझते हुए हम इन दिनों अपनी वाणी के द्वारा एक दूसरे के साथ प्रेम और आदर का व्यवहार व्यक्त करते हैं। और कुछ काल तक आनन्दित रहते हैं।
त्योहार और उत्सव के समाप्त होते ही, क्या यही वातावरण हम भावी जीवन में जारी रखते हैं। हममें से अधिकांश लोग नहीं रखते। दिल बदल जाते हैं, वाणी की मिठास का प्रभाव या तो कम हो जाता है, या मधुरता गायब हो जाती है। इसका विशेष कारण है स्वार्थपरता
लेकिन, यदि भावना निष्काम हो, याज्ञिक हो, पूजनीय हो, तो जीवन पर्यंत वाणी की मिठास को और हृदय के भावों को संजोए रख सकते हैं।
क्या जीवन पर्यंत हमें आनन्द की उपलब्धि का आभास नहीं होना चाहिए?
जी हां!अवश्य होना चाहिए।
इसलिए आनन्द के विपरीत जितनी भी बातें हैं, जैसे ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, स्वार्थपन, अहंकार, वैमनस्य, बदले की भावना इत्यादि पूर्ण रूप से परित्याग करके आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। शुद्ध भावनाओं को व्यक्त करने में वाणी का विशेष रूप से महत्व है। इसका सही उपयोग हो तो शत्रुजन भी मित्र बन जाते हैं। और दुरुपयोग हो तो अलगाव से बड़े-बड़े महायुद्धों में परिवर्तित हो जाती है।
वाणी का वास्तविक स्वरूप क्या होना चाहिए, वेद के अनेक मन्त्रों ने हमारा मार्गदर्शन किया है।
दीपावली पर्व के दस नाम:
१) दीपावलि/दीपावली
२) दीपाली
३) दीपोत्सव
४) दीपालिका/दीपालिकोत्सव
५) दीपमालिका
६) यक्षरात्रि
७) कौमुदी
८) सुखरात्रि/सुखरात्रिका
९) सुखसुप्तिका
१०) लक्ष्मीपूजन
Other names of Deepawali are:
Laxmi Pujan, Chopda Pujan, Deva Divali, Sukhsuptika, Kaumudi Mahostavam, Badhausar, Balindra Pooja, Karthigai Deepam, Thalai Deepavali, Sharda Pujan, Bandi Chhor Diwas, and Diyari.
Animated Ramayan
Deepawali is called as Yampanchak or Swanti स्वन्ती: in Nepal.
In Tamilnadu, Deepawali is known as Thalai
Deepawali is a public holiday in Fiji, Singapur, and Trinidad.
Deepawali commemorates the spiritual enlightenment of Mahavir Ji and Dayanand Saraswati Ji.
Yama gave enlightenment to Nachiketa on Deepawali Amavasya.
Deepawali commemorates killing of evil king Ravana and Narakasura by Ram and Krishn respectively
Kartigai Deepam festival is celebrated in Tamilnadu. It comes after Deepawali and is a ten day festival. Karthigai Deepam, Thrikarthika, or Karthikai Vilakkidu is a festival of lights that is observed by Hindus of Tamil Nadu, Kerala, Andhra Pradesh, Telangana, Karnataka and Sri Lanka. Tamil Nadu celebrates Karthigai Deepam as a traditional festival. Like Diwali, Karthigai Deepam is a festival of lights. Oil lamps are lit in the evening at homes and in temples.
Following is by Acharya Kamlakant Bahuguna:
दीपावली हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। शास्त्रों व कहावतों में दीपावली मनाने के अलग-अलग कारणों के बारे में बताया गया है। साधारणत: हम लोग दीपावली मनाने का कारण राम के 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने व समुद्र मंथन द्वारा लक्ष्मी के प्राकट्य को मानते हैं। लेकिन इनके अलावा शास्त्रों के अनुसार दीपावली का यह त्योहार युगों की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का भी साक्षी रहा है। जानिए दीपावली से जुड़ी 10 प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं -
- लक्ष्मी अवतरण - कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मां लक्ष्मी समुद्र मंथन द्वारा धरती पर प्रकट हुई थीं। दीपावली के त्योहार को मनाने का सबसे खास कारण यही है। इस पर्व को मां लक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाते हैं और हर घर को सजाया संवारा जाता है ताकि मां का आगमन हो।
- भगवान विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना - इस घटना का उल्लेख हमारे शास्त्रों में मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से माता लक्ष्मी को मुक्त करवाया था।
- भगवान राम की विजय - रामायण के अनुसार इस दिन जब भगवान राम, सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापिस लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या को दीप जलाकर रौशन किया गया था।
4 नरकासुर वध - भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16000 स्त्रियों को इसी दिन मुक्त करवाया था। इसी खुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया और इसे विजय पर्व के नाम से जाना गया।
5 पांडवोंं की वापसी - महाभारत के अनुसार जब कौरव और पांडव के बीच होने वाले चौसर के खेल में पांडव हार गए, तो उन्हें 12 वर्ष का अज्ञात वास दिया गया था। पांचों पांडव अपना 12 साल का वनवास समाप्त कर इसी दिन वापस लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशी के साथ दीपावली मनाई गई थी। - विक्रमादित्य का राजतिलक - राजा विक्रमादित्य के राजतिलक का प्रसंग भी इसी दिन से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि राजा विक्रमादित्य का राजतिलक इस दिन किया गया था, जिससे दिवाली का महत्व और खुशियों दुगुनी हो गईं।
- आर्य समाज - स्वामी दयानंद सरस्वती जी का निर्वाणदिवस
- जैन धर्म - दीपावली का दिन जैन संप्रदाय के लोगों के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जैन धर्म इस पर्व को भगवान महावीर जी के मोक्षदिवस के रूप में मनाता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
- सिक्खों धर्म - सिख धर्म के लिए भी दीपावली बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन को सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था।
10 सन् 1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओं के साथ मुक्त किया जाना भी इस दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटना रही है। इसलिए इस पर्व को सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाता हैं। इन राजाओं व हरगोबिंद सिंह जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंंद किया हुआ था।
युगों के अनुसार:
सतयुग की दीपावली - सर्वप्रथम तो यह दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकटे। इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आरंभ होता है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को। तत्पश्चात इसी महामंथन से देवी महालक्ष्मी जन्मीं और सारे देवताओं द्वारा उनके स्वागत में प्रथम दीपावली मनाई गई।
त्रेतायुग की दीपावली - त्रेतायुग भगवान श्रीराम के नाम से अधिक पहचाना जाता है। महाबलशाली राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 वर्ष वनवास में बिताकर राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपमालिकाओं से सजाई गई और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।
द्वापर युग की दीपावली - द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा और दीपावली में दो महत्वपूर्ण आयाम जुड़ गए। पहली घटना कृष्ण के बचपन की है। इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियान्वित कर श्रीकृष्ण ने स्थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता। (Indra became egoistic. अभिमान तो किसी को भी हो सकता है. इसे यूं भी कह सकते हैं कि देवत्व भी नित्य नहीं है। उसमें भी वृध्दि और क्षय हो सकता है।देवता गुण वाचक भी मान सकते हैं)
वैसे भी कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं। उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है।
द्वापर युग की दीपावली 2 - दूसरी घटना कृष्ण के विवाहोपरांत की है। नरकासुर नामक राक्षस का वध एवं अपनी प्रिया सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने की घटना दीपोत्सव के एक दिन पूर्व अर्थात रूप चतुर्दशी से जुड़ी है। इसी से इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
अमावस्या के तीसरे दिन भाईदूज को इन्हीं श्रीकृष्ण ने अपनी बहिन द्रौपदी के आमंत्रण पर भोजन करना स्वीकार किया और बहन ने भाई से पूछा- क्या बनाऊं? क्या जीमोगे? तो जानते हो, कृष्ण ने मुस्कराकर कहा- बहन कल ही अन्नकूट में ढेरों पकवान खा-खाकर पेट भारी हो चला है इसलिए आज तो मैं खाऊंगा केवल खिचड़ी। हां, क्यों न हो, सारे संसार के स्वामी ने यही तो संदेश दिया था कि- तृप्ति भोजन से नहीं, भावों से होती है। प्रेम पकवान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
कलियुग की दीपावली - वर्तमान कलियुग दीपावली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद के निर्वाण के साथ भी जोड़ता है। भारतीय ज्ञान और मनीषा के दैदीप्यमान अमरदीपों के रूप में स्मरण कर इनके पूर्व त्रिशलानंदन महावीर ने भी तो इसी पर्व को चुना था अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए। जिनकी दिव्य आभा आज भी संसार को आलोकित किए है प्रेम, अहिंसा और संयम के अद्भुत प्रतिमान के रूप में।
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तुलसीदास जी ने भी बाबरी मस्जिद का उल्लेख किया
सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी की सभी रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं l वस्तुतः रामचरित मानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है . तुलसीदास जी ने #तुलसी_शतक में इस घंटना का विस्तार से विवरण भी दिया है .
हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उत्पन्न की , कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है . श्री नित्यानंद मिश्रा ने जिज्ञाशु के एक पत्र व्यवहार में "तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है | हमनें भी उस अर्थो को आप तक पहुंचने का प्रयास किया है | प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है , ध्यान से पढ़ें |
(1) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।
(2) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवीत से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
(3) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(4) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
(5) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी कीन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।
(6) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति त्राहि त्राहि रघुराज॥
मीर बाकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदीर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।
(7) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीर बाकी ने मस्जिद बनाई ।
(8)रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है!
राम रामेति रामेति
रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं
रामनाम वरानने ।।
राम का घर छोड़ना एक षड्यंत्रों में घिरे राजकुमार की करुण कथा हैऔर कृष्ण का घर छोड़ना गूढ़ कूटनीति। राम जो आदर्शों को निभाते हुए कष्ट सहते हैं, कृष्ण षड्यंत्रों के हाथ नहीं आते, बल्कि स्थापित आदर्शों को चुनौती देते हुए एक नई परिपाटी को जन्म देते हैं।
श्री राम से श्री कृष्ण हो जाना एक सतत प्रक्रिया है....
राम को मारिचि भ्रमित कर सकता है, लेकिन कृष्ण को पूतना की ममता भी नहीं उलझा सकती।
राम अपने भाई को मूर्छित देखकर ही बेसुध बिलख पड़ते हैं, लेकिन कृष्ण अभिमन्यु को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकते।
राम राजा हैं, कृष्ण राजनीति...राम रण हैं, कृष्ण रणनीति...
राम मानवीय मूल्यों के लिए लड़ते हैं, कृष्ण मानवता के लिए...
हर मनुष्य की यात्रा राम से ही शुरू होती है और समय उसे कृष्ण बनाता है। व्यक्ति का कृष्ण होना भी उतना ही जरूरी है, जितना राम होना..
लेकिन राम से प्रारंभ हुई यह यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक इस यात्रा का समापन कृष्ण पर न हो।
हरि अनंत हरि कथा अनंता
हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका के खोयी चीज़ वापस पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
..... चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं
चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
........ चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं
....... चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते हैं
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते हैं
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते हैं
...... चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
धनतेरस के दिन कटोरदान लाते हैं
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की थाली पड़ोस में देने जाते हैं
....... चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते हैं
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
........ चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....
सामान से नहीं, समय देकर सम्मान जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं
राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
छेद न करना थाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में..
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दिये बिकें बाज़ारों में...
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
सभी तीज़-त्यौहारों में...
चायनिज़ झालर से आकर्षित,
कीट-पतंगे आते हैं...
जबकि दीये में जलकर,
बरसाती कीड़े मर जाते हैं...
कार्तिक दीप-दान से बदले,
पितृ-दोष खुशहाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अब की बार दिवाली मे ...
कार्तिक की अमावस वाली,
रात न अबकी काली हो...
दीये बनाने वालों की भी,
खुशियों भरी दीवाली हो...
अपने देश का पैसा जाये,
अपने भाई की झोली में...
गया जो दुश्मन देश में पैसा,
लगेगा रायफ़ल गोली में...
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
चूक न हो रखवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना..
अबकी बार दीवाली में
एकादशी पुण्यकाले,
रमामाधव पूजनम्||
द्वादश्यां सद्गुरोश्चैव,
गोवत्सानां सुपूजनम्।
धन्वंतरीं त्रयोदश्यां,
पूजनारोग्य प्राप्तये।।
चतुर्दशी महास्नानं,
नरकोत्तार हेतवे।।
अमावास्या महापर्वम्,
महालक्ष्मीं सुपूजयेत्।।
बलिप्रतिपदा महापर्वं,
बलीराजां प्रपूजनम्।।
कन्यां कुलवधूंश्चैव स्वपत्नीं मातरान् तथा सप्रेमउपहारांश्च दत्वा सर्वांन् च तोषयेत।।
यमदीपदानं यमतर्पणं च।
द्वाराभगिन्या भ्रातृनीरांजनंच।।
तदाभ्रातृवर्गै ददातोपहारं।
भ्रातृभगिन्यामिदं प्रेमभावं।।
दीपावली शुभां रम्या,
सकलानंद प्रदायिनी।
भगवत्या प्रसादेन,
सर्वदा मंगलम् भवेत्।।
दीपावली महापर्वम्।
सर्व संतोष कारकम्।।
देवादि सर्वजीवानां।
आयुरारोग्य दायकम्।।
।। महालक्ष्मीध्यानम् ।।
अक्षस्त्रपरशु गदेषुकुलिशं पद्मम धनु: कुंडीकां
दंडं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घंटाम सुरभाजनम्।
शुलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्ते: प्रवालप्रभां
सेवेसैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मी सुरौजोभवाम्।।
दीपावल्याः सहस्रदीपाः भवतः जीवनं सुखेन, सन्तोषेण, शान्त्या आरोग्येण च प्रकाशयन्तु।
बहुत ही जरूरी जानकारी --- बात उन दिनों की है जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्र थे. उसवक्त युवाओं में धर्म के प्रति इतना जोर नही था ना ही कोई ज्ञान. दशहरा बीत चुका था दीपावली समीप थी तभी एक दिन कुछ युवक युवतियों की ngo टाइप टोली हमारे कॉलेज में आई.
उन्होंने स्टूडेंट्स से कुछ प्रश्न पूछे किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया.
उन्होंने पूछा जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नही ?
प्रश्न पर सन्नाटा छा गया क्योंकि उसवक्त कोई सोशलमीडिया तो था नही, स्मार्टफोन भी नही थे किसी को कुछ नही पता. तब सन्नाटा चीरते हुए एक हाथ प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा वो हमारा था.
हमनें बताया क्योंकि दीपावली उत्सव दो युग सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उसदिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मी पूजन होता है. भगवान राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है. इसलिए इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपो से जुड़ा है.
हमारे उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा क्योंकि किसी को भी उत्तर नही पता था यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नही. खैर सबने खूब तालियां बजाई. उसके बाद एक अखबार ने हमारा इंटरव्यू भी लिया. उस समय अखबार का इंटरव्यू लेना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.
बाद में पता चला कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार लिबर्ल्स की थी जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह डाल रही थी कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या जब दीपावली राम से जुड़ी है. कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी. लेकिन हमारे उत्तर के बाद वह टोली गायब हो गई.
प्रश्न है
लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है
और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है
सही उत्तर है
लक्ष्मी जी जब सागरमन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए।
माता लक्ष्मी परेशान हो गई, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी।
माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को धन का डिस्ट्रीब्यूटर बनने को कहा, गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान, वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी !
अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/ रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।
कुबेर भंडारी रह गए, गणेश पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए।
गणेश जी की दरियादिली देख माँ लक्ष्मी ने अपने भतीजे/ भांजे/ मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।
दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे सँग ले आती हैं गणेश जी को, इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।
लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं
पर इसका असली नाम शायद नहीं पता होगा ।
लक्ष्मण रेखा का नाम (सोमतिती विद्या है) !
यह भारत की प्राचीन विद्याओं में से एक है !
जिसका अन्तिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था !
चलिए जानते हैं अपने प्राचीन भारतीय विद्या को :
सोमतिती_विद्या--लक्ष्मण रेखा.
महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है
सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे
वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति !!
यह वेदमन्त्र कोड है उस सोमना कृतिक यन्त्र का !
पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अन्तरिक्ष में वह केन्द्र है
जहाँ यन्त्र को स्थित किया जाता है !
वह यन्त्र जल,वायु और अग्नि के परमाणुओं को
अपने अन्दर सोखता है !
कोड को उल्टा कर देने पर
एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को
वापस बाहर की तरफ धकेलता है !
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ
भ्रमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुँचे तो
उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा --
राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुँची है ??
महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि
यह जो ब्रह्मचारी राम है -
इसने आग्नेयास्त्र वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का
सँधान करना सीख लिया है !
यह धनुर्वेद में पारँगत हुआ है महर्षि विश्वामित्र के द्वारा !
यह जो ब्रह्मचारी लक्ष्मण है -
यह एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है !
उस समय पृथ्वी पर
चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखायी जाती थी !
महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल में,,
महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में,,
महर्षि भारद्वाज के यहाँ,,
और उदालक गोत्र के आचार्य
शिकामकेतु के गुरुकुल में,,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि
लक्ष्मण उस विद्या में पारँगत था,,
एक अन्य ब्रह्मचारी वर्णित भी
उस विद्या का अच्छा जानकार था !
सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे
वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति --
इस मन्त्र को सिद्ध करने से
उस सोमना कृतिक यन्त्र में
जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिये हैं
उन परमाणुओं में फोरमैन
आकाशीय विद्युत मिला कर उसका पात बनाया जाता है !
फिर उस यन्त्र को एक्टिवेट करें और
उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से
उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें !
उसके अन्दर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा !
लेकिन बाहर से अन्दर
अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश करना चाहे
तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि
वहीं राख बन कर उड़ जायेगा !
जो भी व्यक्ति या वस्तु प्रवेश कर रहा हो,,
ब्रह्मचारी लक्ष्मण इस विद्या के इतने
जान कर हो गये थे कि
कालान्तर में यह विद्या सोमतिती न कह कर
लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी !
महर्षि दधीचि,,
महर्षि शाण्डिल्य भी इस विद्या को जानते थे,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि
योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण
इस विद्या को जानने वाले अन्तिम थे !
उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में
मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी थी !
ताकि युद्ध में जितने भी भयङ्कर अस्त्र शस्त्र चलें
उनकी अग्नि उनका ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जा कर
दूसरे प्राणियों को सन्तप्त न करे !
मुगलों द्वारा करोड़ों करोड़ो ग्रन्थों के जलाये जाने पर
और अँग्रेज़ों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूट लूट कर
देश के बाहर ले जाने के कारण कितनी ही अद्भुत विधाएँ
जो हमारे यशस्वी पूर्वजों ने खोजी थीं लुप्त हो गयीं !
जो बचा है उसे सम्भालने में
प्रखर बुद्धि के युवाओं को जुट जाना चाहिए,
परमेश्वर सद्बुद्धि दे हम सब को.....
सँकलित तथ्य
Laxman Rekha you all know
But may not know its real name.
Name of Laxman Rekha (Somtiti Vidya) !
This is one of India's ancient schools!
Whose last used in the Mahabharata war!
Let's know our ancient Indian education:
Somiti_Vidya - Laxman Rekha
Maharishi Shrungi says that is a Vedmantra
Somambrahi news rat: Swaha vetu possible brahe
Vacham Pravanam Fire Brahe Sand: Awasti !!
This is the code of Vedmantra of that Somna Kriti Yantra!
Somewhere between Earth and Jupiter he is the center in space
Where the machine is located!
That device to water, air and fire atoms
Sucks inside of himself !
On turning the code upside down
A special kind of fire and electrical atoms
Pushes back to the outside !
When Maharishi Bhardwaj with the sages
When reached Vashishtha Ashram while visiting
He asked Maharshi Vasishtha
Where has the education initiation of princes reached?
Maharshi Vashishtha said that
This celibate Ram is -
He is the fire weapon of Varunastra Brahmastra
I have learned to search!
This has been translated in Dhanurveda by Maharishi Vishwamitra!
This is the Brahmachari Laxman -
This is a rare Somtiti Vidya learning!
That time on earth
That knowledge was taught in four Gurukulas!
In Gurukul of Maharshi Vishwamitra,
In Gurukul of Maharshi Vashishtha,
At Maharshi Bhardwaj's place,
And the Acharya of the Udalak clan
In Gurukul of Shikamketu,
Shringi Rishi says that
Laxman was master in that school,
Another celibate described as well
That knowledge was well knowledgeable!
Somambrahi News Rat: Swaha Vetu Sambhav Brahe
Vacham Pravanam Fire Brahe Sand: Asti
By proving this mantra
In that somna artificial instrument
Who has absorbed the nuclear of fire air water
The foreman in those atoms
Her leaf is made by mixing celestial electricity!
Then activate that device and
With her help from rays like a laser beam
Draw that line round the earth!
Whatever stays inside him will be safe!
But from outside in
If anyone wants to enter forcefully
So he'll be so shocked by fire and electricity
It will fly like ashes there!
Whoever person or object is entering,
Brahmachari Laxman so much of this knowledge
Had become known that
This Vidya in Kalantar by not saying Somtiti
About to be called Laxman Rekha!
Maharshi Dadhi's,
Maharishi Shandilya also knew this knowledge,
Shringi Rishi says that
Yogeshwar Lord Shri Krishna
They were the last ones to know this Vidya!
He in the religious war of Kurukshetra
Drew this line around the field!
Ram Ram Ram Ram
Ram Ram Ram Ram
Ramayana Ramayana
Ramayana Ram
A is for Ayodhya, the kingdom which he ruled
B is for Bharata, who ruled in Rama's stead
C is for Chitrakoot, where Rama made his home
D is for Dasharatha, Rama's father
Ram Ram
E is for Envy, Manthara poisoned Kaikeyi
F is for Fire, Sita proved her dharma
G is for Guha, receiving Rama in the forest
H is for Hanuman, discovering where Sita stayed
Ram Ram
I is for Indrajit, who captured Hanuman
J is for Janaka, Sita's father
K is for Kaikeyi, whose plot banished Rama
L is for Lakshmana, who stood by Rama's side
Ram Ram
M is for Manthara, who devised the wicked plot
N is for Nala, who built the bridge to Lanka
O is for Obedience, which makes this story work
P is for Pushpaka, the chariot of the Gods
Ram Ram
Q is for Queen Kausalya, mother of Lord Rama
R is for Rama, avataar of Vishnu
S is for Sita, the ideal woman
T is for Tataka, the demon Rama killed
Ram Ram
U is for Urmila, wife of Lakshman
V is for Valmiki, who wrote this Ramayan
W is for War, Ravana was killed
X is for example, which Rama set for us
Ram Ram
Y is for Yama, the God of Death
Z is for Zzzzz, Kumbakarna's 6 month nap
Ram Ram Ram Ram
Ram Ram Ram Ram
Ramayana Ramayana
Ramayana Ram
Ayodhya Street Wall Decoration - Sree Ram Charitra_230926_162859.pdf
![Deepawali%20significance](Deepawali%20significance.jpg "Deepawali%20significance")