Rituals
Rituals are supposed to invoke Bhav. Many defend the ritual practices by saying that these are to invoke Bhav.
Now the question is --Are there other ways to invoke Bhav? How do we justify the wastage of resources during elaborate rituals? Is wasting money on the rituals better than giving it to poor and hungry?
People confuse rituals with many other things. They think that proposing someone is a ritual, sleeping is a ritual, etc.
There is a difference between rituals and doing routine chores, survival, fulfilling basic needs, etc. Sleeping is a need, not a ritual. Some actions done before sleeping may count as a ritual. Eating every day is not a ritual, it is a survival mechanism.
The same ritual may invoke different types of Bhav in different people and vice versa same Bhav may come from different rituals.
When asked about wasting natural resources, people become defensive and start comparing rituals in different religions, states, countries, etc. e.g. oh Hindus waste milk on Shivratri, water on Holi, and pollute the environment on Deepawali. Christians waste trees on Christmas. Muslims kill Goats on Eid. People kill turkeys on Thanks Giving. Independence day fireworks contribute to pollution and so on.
Now it is time to pause and think. Should we keep doing the wrong things because others are doing similar wrong things? Are we following others or doing our part to think rationally and then take the decision.
Some argue that it is okay to perform rituals but waste fewer resources and still invoke Bhav. Again think about why to choose wastage of little resources. Why not completely stop it?
Some argue that we use resources for everything e.g. to make a ladder we use wood, we waste money on vacations, etc.. Now making a ladder is not a ritual, it is a necessity to do work. The vacations are not a ritual. Vacations increases perspective, may relieve stress, may increase social bonding, relations, bring humbleness, etc.
Also, remember that rituals existed before language, agriculture, community living, etc. However, those rituals were not associated with resource wasting. We can invoke the same Bhav by praying with eyes closed then wasting milk on Shivratri with eyes open. Similarly, we can thank Native Indians by giving them their rights instead of killing Turkeys. Christmas can be celebrated by sharing stories of Jesus and invoking the same Bhav instead of cutting trees.
Important is to understand that there is difference in rituals done by a person himself or herself, wasting no natural resources and rituals done on a grand scale, involving many people, making it a festival or ceremony and using many natural resources which may or may not invoke Bhav.
Bharti Raizada
Following is from whatsapp discussion and forwarded message.
भारतीय परम्पराओ मे विवाह दिन के समय होता आया है , परंतु गुलामी के काल खण्ड मे स्वयं के बचाव मे विवाह रात्रि मे करे जाने लगे और आज इस कार्यक्रम मे बढाचढाकर कयी प्रकार की नयी परम्पराए जोड़ दी गयी
सभी देवी देवताओं के जो वस्तुएं चढाई जाती है इसका मतलब है ये सभी वस्तुएं मानव के लिये लाभकारी है , सावन के महिने मे पाचन शक्ति कम हो जाती है इस हेतु सावन मे शिवजी पर दूध ज्यादा मात्रा मे चढा कर उसे वापस प्रकृति मे ही भेज दिया जाता है ।।
वैदिक / सनातन का ज्ञान , परम्परांये सभी प्रकति और इसके व्यवहार से जोडृकर मानव को उच्च सूसंस्कारित बनाने के लिये है ।।
पेडो पर या धर्मस्थान पर धन चढाना - - दान देने की प्रवृत्ति को बढाने के लिये , और धर्म स्थान उस धन से जरूरत मंदो की सहायता व सामाजिक कार्य करने के स्थान होते है। विशेष दिशा मे प्रार्थना , आसन का उपयोग इत्यादि का अर्थ सिर्फ इतना है कि पृथ्वी के(Forces) विभिन्न बलों से मानव शरीर सामंजस्य मे रहे । (इलेक्ट्रो मेग्नेटिक फोर्स, ग्रेविटेशनल फोर्स- - इन्हे विभिन्न रश्मियों के रूप मे ऋग्वेद के ब्राहम्ण ऐतरेय मे समझाया गया है ।
रिचुअल्स को बढा चढाकर करने से हमारे ही आर्थिक कमजोर भाई मे ईर्ष्या जाग्रत होती है जो विनाश का रास्ता है ।।
और जो रिचुअल्स बडे स्थानो पर जैसे - पुरी रथ यात्रा, अमरनाथ यात्रा , कुम्भ मेला आदि , मैं इनके भी समर्थन मे हुँ , इनसे देश मे एकता का संचार होता है और मानव को विभिन्न स्थान देखने को मिलते है ।।
रिचुअल्स को आस्था से जोड़ने का उद्देश्य सिर्फ लोगो को आसानी से समझाने के लिये है आस्था से आदमी मान जाता है चाहे उसका एक्सपलेनेशन नही समझे ।।
भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के नुक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।
शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।
भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।
तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।
ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।
जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है।विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..
The_Vedic_Tradition_Cosmos_Connections_a.pdf
Does Diya bati lead to pollution: Ancient diya batis, agarbatis, dhoop, etc. were made of naturally occuring materials. These were not lab made chemicals. So, most likely environmental pollution was not an issue.
Mantras and prayers were chanted during this ritual which used to bring positive and pure energy.