Seasons

Posted by on January 13, 2017

They are four seasons in a year. Each season is 3 months long and the four seasons are called...

Summer Spring Autumn/Fall Winter

My favorite season is Summer. I like Summer since it is warm/hot outside and I like hot weather more than cold weather, like in Winter. You can do lots of fun things in the Summer. You could play outside, or ride your bike, or go to the park. I would normally not do these things in the winter. I don't like snow that much. Schools are closed because of Summer vacation so you can do whatever you want. Camps are also really awesome since you can do super fun stuff outside.

I also like Fall. It is the season which I was born in. It is not too cold nor too hot. The leaves on the trees look cool. They are so many colors. The first quarter of school is in this season and I think the first quarter of school is the most fun.

Spring is my third favorite season. It is the season where plants like trees and flowers start growing again. The birds come back from their migration. It is beautiful. I also like that there is Spring break.

I don't like winter that much. It is freezing cold and temperatures in Chicago drop below 0 degrees often. It is annoying to always have to wear lots of layers and coats and to wear snow boots. But I like sledding and having snowball fights.

THE END
Om Raizada

Ritus in Atharv Ved:
मुखपृष्ठ अथर्ववेद 12-1-36
ऋषि: - अथर्वा
देवता - भूमिः
छन्दः - विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्तिः
सूक्तम् - भूमि सूक्त

ग्री॒ष्मस्ते॑ भूमे व॒र्षाणि॑ श॒रद्धे॑म॒न्तः शिशि॑रो वस॒न्तः। ऋ॒तव॑स्ते॒ विहि॑ता हाय॒नीर॑होरा॒त्रे पृ॑थिवि नो दुहाताम् ॥

स्वर सहित पद पाठ
ग्री॒ष्म: । ते॒ । भू॒मे॒ । व॒र्षाणि॑ । श॒रत् । हे॒म॒न्त: । शिशि॑र: । व॒स॒न्त: । ऋ॒तव॑: । ते॒ । विऽहि॑ता: । हा॒य॒नी: । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । पृ॒थि॒वि॒ । न॒: । दु॒हा॒ता॒म् ॥१.३६॥

स्वर रहित मन्त्र
ग्रीष्मस्ते भूमे वर्षाणि शरद्धेमन्तः शिशिरो वसन्तः। ऋतवस्ते विहिता हायनीरहोरात्रे पृथिवि नो दुहाताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
ग्रीष्म: । ते । भूमे । वर्षाणि । शरत् । हेमन्त: । शिशिर: । वसन्त: । ऋतव: । ते । विऽहिता: । हायनी: । अहोरात्रे इति । पृथिवि । न: । दुहाताम् ॥१.३६॥

अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 36
Acknowledgment
अथर्ववेद भाष्य (पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी) - हिन्दी - Pandit Kshemkarandas Trivedi
विषय - राज्य की रक्षा का उपदेश।

पदार्थ -
(भूमे) हे भूमि ! (ते) तेरे (ग्रीष्मः) घाम ऋतु [ज्येष्ठ-आषाढ़], (वर्षाणि) बरसा [श्रावण-भाद्र], (शरत्) शरद् ऋतु [आश्विन-कार्तिक], (हेमन्तः) शीतकाल [अग्रहायण-पौष], (शिशिरः) उतरता हुआ शीतकाल [माघ-फाल्गुन] और (वसन्तः) वसन्त काल [चैत्र-वैशाख] (ऋतवः) ऋतु हैं, [उनको] (पृथिवि) हे पृथिवी ! (विहिताः) विहित [स्थापित] (हायनीः) वर्षों, तक (ते) तेरे (अहोरात्रे) दिन-राति [दोनों] (नः) हमारे लिये (दुहाताम्) पूर्ण करें ॥३६॥

भावार्थ - मनुष्यों को उचित है कि पृथिवी पर सब ऋतुओं में उचित कर्म करके पूर्ण आयु भागें ॥३६॥ इस मन्त्र का मिलान करो−अ० ६।५५।२ ॥

टिप्पणी -
३६−ग्रीष्मादयः शब्दा व्याख्याताः अ० ६।५५।२। (ग्रीष्मः) निदाघः। ज्येष्ठाषाढात्मकः कालः (ते) तव (भूमे) (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (शरत्) आश्विनकार्तिकात्मकः कालः (हेमन्तः) अग्रहायणपौषात्मकः शीतकालः (शिशिरः) माघफाल्गुनात्मकः शीतान्तः कालः (वसन्तः) चैत्रवैशाखात्मकः पुष्पकालः (ऋतवः) कालभेदाः (ते) तव (विहिताः) विधृताः। विधिना बोधिताः (हायनीः) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। संवत्सरान् (अहोरात्रे) रात्रिदिने (पृथिवि) (नः) अस्मभ्यम् (दुहाताम्) पूरयताम् ॥