सिख इतिहास प्रश्नोत्तरी – 2019
आओ अपने बचियाँ नू गुरमत नाल जोड़िये।
- दस गुरु साहिबानों के नाम तरतीब वार लिखें,
▶ गुरु नानक देव जी (1469-1539)
▶ गुरु अंगद देव जी (1504-1552)
▶ गुरु अमर दास जी (1479-1574)
▶ गुरु राम दास जी (1534-1581)
▶ गुरु अरजन देव जी (1563-1606)
▶ गुरु हरगोबिंद जी (1595-1644)
▶ गुरु हरिराय जी (1630-1661)
▶ गुरु हरिकृष्ण जी (1656-1664)
▶ गुरु तेगबहादुर जी (1621-1675)
▶ गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708)
- उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जिन्हें जिन्दा नीवों में चिनवा दिया गया था?
▶ बाबा फ़तेह सिंह जी,
▶ बाबा जोरावर सिंह जी,
- उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जो चमकोर की लड़ाई में शहीद हुए थे?
▶ बाबा अजीत सिंह जी बाबा जुझार सिंह जी,
- सिख पंथ के पहले पंच प्यारों के नाम बताईये?
▶ भाई दया सिंह जी, ▶ भाई धरम सिंह जी, ▶ भाई हिम्मत सिंह जी, ▶ भाई मोहकम सिंह जी, ▶ भाई साहिब सिंह जी,
- सिख धर्म के पाँच ककारों के नाम बताईये?
▶ केस ▶ कंघा ▶ किरपान ▶ कड़ा ▶ कछिहरा
- खालसे के धर्म पिता कौन हैं?
▶ गुरु गोबिंद सिंह जी,
- खालसे की धर्म माता कौन हैं?
▶ माता साहिब कौर जी,
- खालसा पंथ की नींव कहाँ रखी गयी थी?
▶ आनंदपुर साहिब,
- जब सिख आपस में मिलते हैं तो क्या कहकर एक दुसरे को संबोधित करते हैं?
▶ वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह,
- जैकारा क्या है?
▶ जो बोले सो निहाल सति श्री अकाल,
- ‘सिख’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
▶ शिष्य(सीखने वाला)
- पाँच तख्तों के नाम बताईये?
▶ श्री अकाल तख़्त साहिब, ▶ अमृतसर, पंजाब ▶ श्री हरिमंदिर साहिब, पटना, बिहार (पटना साहिब)
▶ श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर, पंजाब (आनंदपुर साहिब)
▶ श्री हजूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र,
▶ श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, बठिंडा, पंजाब ,
- गुरमुखी लिपि पढ़ाना सबसे पहले किसने शुरू किया था?
▶ गुरु अंगद देव जी,
- ‘गुरु का लंगर’ की प्रथा सबसे पहले किस ने शुरू की थी?
▶ गुरु अमरदास जी,
- आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब (पोथी साहिब) सबसे पहले किसने लिखी थी?
▶ गुरु अरजन देव जी,
- श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश सबसे पहले कब हुआ था?
▶ सन 1604 में,
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पहले ग्रंथी कौन थे?
▶ बाबा बुड्डा जी,
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के कितने अंग (पन्ने) हैं?
▶ 1430,
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में कितने गुरुओं की वाणी दर्ज है?
▶ कुल 6 गुरुओं की : पहले पाँच एवं नोवें गुरु जी की,
- किस गुरु को ‘शहीदों के सरताज’ भी कहा जाता है?
▶ गुरु अरजन देव जी,
- किस गुरु को ‘मीरी- पीरी के मालिक’ भी कहा जाता है?
▶ गुरु हरिगोबिंद जी,
- मुगल आतंकी औरंगजेब द्वारा किस गुरु का सिर धड से अलग किया गया था?
▶ गुरु तेगबहादुर जी,
- किस गुरु को ‘हिन्द- दी- चादर’ भी कहा जाता है?
▶ गुरु तेगबहादुर जी,
- सिमरन कैसे होता है?
▶ सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक अकालपुरख नूं याद करना,
- सिख धर्म में शादी को क्या कहते हैं?
▶ आनन्द कारज,
- गुरु नानक देव जी की यात्राओं को क्या कहा जाता है?
▶ उदासी,
- गुरु नानक देव जी के साथ रबाब कौन बजाता था?
▶ भाई मरदाना जी,
- उस गुरुद्वारे का नाम बताईये जहाँ वली कंधारी का अहंकार टुटा था?
▶ पंजा साहिब,
- गुरु नानक देव जी कहाँ एवं कब ज्योति- ज्योत समाये थे?
▶ 1539, करतार पुर,
- गुरुअंगद देव जी का पहला नाम क्या था?
▶ भाई लहणा जी,
- गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी की सेवा कितने समय तक की?
▶ 12 वर्ष,
- उस नदी का नाम बताईये जहाँ से गुरु अमरदास जी रोज पैदल जाकर गुरु अंगद देव जी के लिए पानी भर के लाया करते थे?
▶ ब्यास नदी,
- ‘मसंद’ प्रचारक किसने शुरू किये थे?
▶ गुरु अमरदास जी,
- गुरु अरजन देव जी के पुत्र का नाम बताईये?
▶ हरगोबिंद जी,
- गुरु रामदास जी का पहला नाम क्या था?
▶ भाई जेठा जी,
- वहाँ कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ गुरु अरजन देव जी को शहीद किया गया था?
▶ डेरा साहिब,
- आतंकी मुगलों ने गुरु हरिगोबिंद जी को कैदी की तरह कहाँ रखा था?
▶ ग्वालियर का किला,
- गुरु हरिगोबिंद जी को जब रिहा किया गया तब उनके साथ उनका चोला पकड़कर और कितने राजाओं को रिहा किया गया था?
▶ 52 राजा,
- गुरु हरगोबिंद जी ने दो तलवारें धारण की थी, उनके नाम बताओ?
▶ मीरी- पीरी,
- अकाल- तख़्त की स्थापना किसने की थी?
▶ गुरु हरिगोबिंद जी,
- गुरु हरिगोबिंद जी को जपुजी साहिब के पाठ का शुद्ध उच्चारण किसने सुनाया था?
▶ भाई गोपाला जी,
- बाबा बुड्डा जी ने कितने गुरुओं की सेवा की?
▶ 6 गुरुओं की,
- आतंकी ओरंगजेब को गुरबाणी गलत पढ़कर सुनाने के लिये किसे सजा मिली थी?
▶ राम राय, गुरु हरि राय जी के पुत्र,
- गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब उनको गुरुगद्दी मिली थी?
▶ 5 साल,
- मिर्जा राजा जय सिंह के बंगले पर अब कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी ठहरे थे जब वह दिल्ली आये थे?
▶ गुरुद्वारा बंगला साहिब,
- गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब वह ज्योति ज्योत समाये थे?
▶ 8 साल,
- जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी का अंतिम संस्कार हुआ वहाँ अब कौन सा गुरुद्वारा है?
▶ गुरुद्वारा बाला साहिब,
- गुरु हरि कृष्ण जी के अंतिम शब्द क्या थे जब वह अगले गुरु जी के बारे में बता रहे थे?
▶ ‘बाबा बकाले’ इसका मतलब है कि अगले गुरु बकाला नाम के गाँव में मिलेंगे,
- सोढ़ी परिवार के कितने लोग अपने आप को गुरु कहते हुए बकाला में मिले?
▶ 22
- बकाला में गुरु तेगबहादुर जी को ढूंढ़कर दुनिया के सामने लाने वाले व्यक्ति कौन थे?
▶ भाई मक्खन शाह लुबाना,
- गुरु तेगबहादुर जी की पत्नी का क्या नाम था?
▶ माता गुजरी जी,
- गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिख कौन थे?
▶ भाई मती दास जी,
▶ भाई सती दास जी,
▶ भाई दयाला जी
- गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिखों को आतंकी मुगलों ने कैसे शहीद किया था?
▶ भाई मती दास जी (आरी से काट के शहीद किया गया)
▶ भाई सती दास जी (रुई में लपेट कर आग लगा दी गई थी)
▶ भाई दयाला जी (गर्म पानी में उबाला गया)
- किसके नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास मदद माँगने के लिये आये थे?
▶ पंडित कृपा राम (जो की बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के संस्कृत के गुरु भी बने एवं फिर खालसा सजे एवं अंत में चमकोर की लड़ाई में शहीद हो गए)
- गोबिंद राय (गुरु गोबिंद सिंह जी की उस वक्त कितनी उम्र थी)
▶ 9 साल,
- जहाँ आतंकी मुगलों ने श्री गुरु तेगबहादुर जी को शहीद किया था वहाँ आज कौन सा गुरुद्वारा है?
▶ गुरुद्वारा सीस गंज,चाँदनी चौक दिल्ली,
- गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार किसने किया?
▶ भाई लक्खी शाह वणजारा,
- जहाँ गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार हुआ वहाँ कौन सा गुरुद्वारा है?
▶ गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली,
- गुरु तेगबहादुर जी के सीस को आनंदपुर साहिब कौन लेकर गया था?
▶ भाई जैता जी (भाई जीवन सिंह जी)
- वहाँ कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ श्री गुरु तेगबहादुर जी के सीस का संस्कार हुआ था?
▶ गुरुद्वारा सीस गंज साहिब, आनंदपुर,
- पीर बुद्धू शाह जी के कितने पुत्र थे और भंगानी के युद्ध में कितने शहीद हुए थे?
▶ 4 पुत्र, भंगानी के युद्ध में 2 शहीद हुए,
- भंगानी के युद्ध में पीर बुद्धू शाह जी की सेवाओं के बदले में गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें क्या उपहार दिये थे?
▶ कंघा (कुछ टूटे हुए बालों सहित) किरपान एवं दस्तार,
- आनंदपुर की लड़ाई में शराब पिलाकर मस्त किये हुए हाथी के साथ कौन से सिख ने युद्ध किया था?
▶ भाई बच्चितर सिंह,
- आनंदपुर की लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल सिपाहियों को कौन पानी पिलाता था (इस बात की परवाह किये बिना कि वो सिख हैं या मुस्लिम)
▶ भाई कन्हैया जी,
- माता गुजरी जी और दो छोटे साहिबजादों की खबर सिरहंद के नवाब को किसने दी थी?
▶ गंगू ब्राह्मण,
- चमकोर की लड़ाई के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी नंगे पैर कौन से जंगलों में रहे?
▶ माछीवाड़ा,
- उन दो पठानों के नाम बताईये जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को आतंकी मुगलों से बचाया था?
▶ नबी खान और गनी खान,
- मुक्तसर की लड़ाई में शहीद होने वाले चालीस मुक्तों का नेतृत्व किसने किया था?
▶ भाई महा सिंह,
- अमृतसर शहर के पाँच सरोवरों के नाम बताईये?
▶ अमृतसर,
▶ कौलसर,
▶ संतोखसर,
▶ बिबेकसर,
▶ रामसर,
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को अमृत पान के बाद क्या नाम दिया?
▶ बंदा सिंह,
- बंदा सिंह ने पंजाब छोड़ने से पहले सिखों को क्या दिया?
▶ निशान साहिब एवं नगाड़ा,
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का पहला जत्थेदार किसे बनाया था?
▶ बंदा सिंह,
- मिसल के समूह को क्या कहते थे?
▶ दल- खालसा,
-
पहले दल खालसा की स्थापना किसने की थी?
▶ नवाब कपूर सिंह,
-
उस सिख सिपाही का नाम बताईये जिसे सुल्तान उल कौम का ख़िताब मिला?
▶ जस्सा सिंह आहलूवालिया,
- दिल्ली की उस जगह का क्या नाम है जहाँ सरदार बघेल सिंह अपने 30,000 साथियों के साथ ठहरे थे?
▶ तीस- हजारी,
- शेरे- ए- पंजाब का ख़िताब किसे प्राप्त है?
▶ महाराजा रणजीत सिंह,
- सरदार हरी सिंह नलवा ने कौन से प्रसिद्ध गुरुद्वारे की स्थापना की थी?
▶ गुरुद्वारा पंजा साहिब,
- मोदीखाना साखी कौन से गुरु जी से सम्बंधित है?
▶ गुरु नानक देव जी,
- सुखमनी साहिब के रचेता कौन है?
▶ गुरु अरजन देव जी,
- होला- मोहल्ला का त्यौहार कौन से गुरु जी ने शुरू किया था?
▶ गुरु गोबिंद सिंह जी,
- गुरु गोबिंद सिंह जी के कौन से सिख ने भंगानी की लड़ाई में अपना साथ दिया और अपने दो पुत्र भी शहीद करवाए?
▶ पीर बुद्धू शाह,
- सिखों के कैलेन्डर का क्या नाम है?
▶ नानकशाही कैलेन्डर,
- नानकशाही कैलेन्डर सूर्य या चन्द्र किसकी गति के हिसाब से चलता है?
▶ सूर्य,
- नानकशाही कैलेन्डर का पहला वर्ष कौन सा है?
▶ 1469 (जब श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था)
- भाई लालो जी के घर गुरु नानक देव जी ने किस का भिजवाया हुआ लंगर वापिस कर दिया था?
▶ मालिक भागो,
- गुरु नानक देव जी और सिद्धों के बीच मुलाकात (सिद्ध गोस्ट) कहाँ पर हुआ था?
▶ कैलाश पर्वत (सुमेर पर्वत)
- माता खीवी जी कौन थी?
▶ माता खीवी जी गुरु अंगद देव जी की पत्नी थीं और वह सिख इतिहास में केवल एक स्त्री हैं जिनका नाम गुरु ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है,
- अकाल तख़्त का क्या मतलब होता है?
▶ सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, अकाल पुरख का सिंहासन,
- गुरु तेग बहादुर जी को गुरु नानक देव जी की याद में एक बड़ा टीला कहाँ स्थापित मिला?
▶ डुबरी, आसाम,
- किस मुग़ल आतंकी ने गुरु तेगबहादुर जी का सिर धड से अलग करने का हुक्म दिया था?
▶ आतंकी औरंगजेब,
- गुरु गोबिंद सिंह जी को अपनी रक्षा के लिये पंज- प्यारों ने किस किले को छोड़ने का आदेश दिया था?
▶ चमकोर का किला,
- सुखमनी साहिब में कितनी अष्टपदीयां हैं?
▶ 24,
- ‘सिंह’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
▶ शेर,
- कौर शब्द से आप क्या समझते हैं?
▶ राजकुमारी,
- गुरु नानक देव जी संगल दीप विच किसनू मिले सी?
▶ राजा शिव नाथ,
- गुरु अमरदास जी ने कौन सा शहर बसाया था जहाँ वह गुरु बनने के बाद रुक गये थे?
▶ गोइंदवाल,
- गुरु अरजन देव जी की पत्नी का क्या नाम था?
▶ माता गंगा जी,
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरबाणी कितने रागों में लिखी गयी है?
▶ 31,
- श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में मूल कितनी बार आया है?
▶ 33 बार,
"गुरुद्वारा पत्थर साहिब-लेह"
दिनांक 23 सितम्बर 2021 को लेह यात्रा से बापसी के समय लेह से 25 किमी दूर लेह कारगिल मार्ग मे चारों तरफ बंजर-भूमि मे एक छोटा सा हरा-भरा आसमानी रंग मे रंगा गुरुद्वारा पत्थर साहिब रेगिस्तान मे नखलिस्तान की तरह आँखों को सुख और सुकून देने वाला था। मार्ग से आती जाती सभी गाडियाँ चाहे असैनिक हो या सैनिक कुछ देर के लिए गुरुद्वारे के समीप अवश्य रुकती है। गुरुद्वारे का संचालन एवं सेवा भी लेह मे पदस्थ सैनिकों द्वारा की जा रही थी। हर आगंतुक का स्वागत प्रवेश द्वार पर ही गरमा-गर्म चाय एवं टोस्ट से किया जा रहा था। सर्दी के मौसम मे गर्म चाय अमृत के तुल्य प्रसाद की तरह था। ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर गुरु नानक देव जी सन 1517-1518 के बीच नेपाल, तिब्बत, सिक्किम, लेह का भ्रमण करते हुए सन 1517 ई॰ मे कुछ दिनों के प्रवास पर यहाँ पहुंचे थे। बड़ा आश्चर्य और विस्मय का विषय है कि इतने सीमित साधनों और अविकसित माध्यमों के चलते इतनी लंबी यात्रा की कल्पना ही असंभव सी प्रतीत होती है। गुरु नानक देव जी जैसे अलौकिक महापुरुष के बसकी ही बात थी जो लगभग सत्तर वर्ष के जीवन काल मे अपने पारवारिक दायित्वों, जिम्मेद्वारियों से निवृत हो जीवन का अधिकांश समय देश विदेश की यात्राओं मे भक्तिवाद, सर्वीश्वरवाद एवं मानव सेवा की अलख जगाने का संदेश दिया। ऐसे भागीरथी प्रयास आध्यात्मिक चिंतन, सत्संग से परिपूर्ण श्री गुरुनानक देव जी जैसे दिव्य अलौकिक महापुरुष के द्वारा ही संभव थे।
ऐसी किवदंती है कि इस स्थान के सामने पहाड़ी पर एक घोर पापी राक्षस रहता था। जिसे लोगो को सताने और मारने और कभी कभी मारकर खाने मे बड़ा आनंद आता था। स्थानीय लोगो के कहने पर गुरु नानक देव जी ने इस स्थान पर प्रवास करने का निश्चय किया जिससे स्थानीय लोगो को राहत की सांस ली। नदी किनारे श्री नानक देव जी को समाधि मे लीन देख क्रोधित राक्षस ने एक बड़ा सा पत्थर उनके उपर फेंक, जान से मारने की कोशिश की। पर "हरि बिनु तेरो, को न सहाई...... के मूल मंत्र पर अडिग नानक देव जी का बाल भी बांका न हुआ। पत्थर उनके शरीर से स्पर्श होते ही मोम की तरह मुलायम होकर उनके शरीर के पिछले हिस्से पर गिरने से शरीर पत्थर मे धंस गया। नानक देव जी पूर्व की तरह अपनी भक्ति मे लीन रहे। अपनी कुत्सित सोच के वशीभूत जब राक्षस ने पत्थर के नीचे देखा तो हैरान रह गया कि नानक देव जी को कुछ नहीं हुआ, वे एकदम ठीक थे। क्रोध मे उसने जैसे ही अपना पैर पत्थर मे मारा वह भी उस पत्थर मे धंस गया। इस चमत्कार को देख उस मूढ्मती को अहसास हुआ कि ये कोई दिव्य संत, महात्मा है! इस तरह नानक जी के चरणों मे गिर माफी मांगी। नानक देव जी ने अपने आंखे खोली और राक्षस को उपदेश दिया। राक्षस को शेष जीवन लोगो की सेवा करने मे ही जीवन का सार्थक संदेश और कल्याण का मार्ग बताया।
पत्थर की उक्त सिला को गुरुद्वारे मे आज भी देखा जा सकता है। पत्थर की सिला मे नानक देव जी के शरीर के पिछले हिस्से की प्रतिकृति एवं राक्षस के पैर के निशान स्पष्ट देखे जा सकते है। दिव्य वातावरण मे ध्यान और सुमरिन की दृष्टि से गुरद्वारे मे चारों तरफ कालीन बिच्छाया गया है ताकि दर्शनार्थी दिव्य आध्यात्मिक, मौसमानुकूल वातावरण मे कुछ समय ध्यान लगा नानक देव जी का स्मरण कर सके। सिला के पास ही गुरुग्रंथ साहिब की स्थापना की गयी जहां पर हम लोगो ने मत्था टेक कर गुरुओं के समक्ष अपनी अरदाश की और सिर झुका अपना सम्मान प्रकट किया।
बापसी पर कढ़ा प्रसाद ग्रहण कर गरम पानी के सरोवर से निकल कर ऐतिहासिक गुरुद्वारे श्री पत्थर साहब के दर्शन अपनी आँखों मे सँजोये, बस मे आकर बैठ, आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किया।
ऐसे गुरु को बल बल जाइए,
आप मुक्त मोहे तारे......
"बोले सो निहाल", "सत श्री अकाल"!
The Guru who only knew how to give
When we read about the life of Guru Govind Singh, the "Warrior-Saint", we may not find another such example in history.
His entire life a saga of selfless sacrifice, nobleness of thoughts and actions, and supreme belief in justice and dharma, Guru Gobind Singh was a guru and apostle. In his life span of merely forty-odd years, the Guru left behind a priceless legacy of beliefs and principles that have shaped Sikh thinking and behaviour and are of great relevance today. Guru Gobind Singh’s life was one big struggle. His father, Guru Tegh Bahadur, was martyred in Delhi to save Kashmiri pandits, and he had the mortification of seeing all four of his sons killed, the elder two in battle, and the younger two bricked alive. Almost his entire life was spent fighting off the intrigues of the hill chiefs of north India and the ruling sultans. He lived on the edge yet continued undaunted in his quest for dharma.
With martial considerations in mind, and to promote the cause of dharma, the Guru created the Khalsa, pure, on Baisakhi day in 1699. This was a new order of followers, a spiritual and social entity rather than a politically dynamic force. Calling the Khalsa pure and his very own, he thus gave a form to the concept of the ‘warrior saint’, which he had championed all his life. The Khalsa were ordained to believe in one God, shun rituals and superstitions, seek respect for women, and consider everyone equal. The Guru’s overall message was that one should look upon all persons as deserving of kind treatment, having a license to lead a peaceful and dignified existence.
These virtues propagated by the Guru are precisely the beliefs the world needs today. Despite his turbulent life, the Guru was a great patron of the arts. At Paonta Sahib, he meditated, composed poetry and wrote much of the ‘Dasam Granth’. At Anandpur Sahib, he created the Khalsa.
The Guru has inspired millions to look beyond their own, limited vision. As human beings, we tend to ‘take’. The Guru taught us to ‘give’ rather than ‘take’. Because that is precisely what he always did. His presence keeps us going. Whenever one feels lonely, one only has to think of how he might have felt losing his entire family, and all loneliness tends to disappear. When tense or depressed, just think of all the problems he faced. Yearning for homely comforts, you just have to recall how he managed in his harsh surroundings, and suddenly your home starts to appear more comfortable. Guru Gobind Singh left us with a great gift – the ‘Guru Granth Sahib’ – which he designated our ‘eternal Guru’. This ensures blessings for humanity at any Gurdwara in the world. He wasn’t just a Guru for the Sikhs but also a saviour of other communities, instilling in them a sense of pride and dignity. His new order was a mission to ‘do right’. He did it right till the end and paid for his beliefs and ideals with his life, and that of his family. Four of the five Sikh ‘Takhts’, thrones, commemorate Guru Gobind Singh, for if ever anyone deserved a throne, it is him.
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Guru Teg Bahadur ji and Kashmiri Pandits
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