Varn, Jaati, Caste

Varn and Jaati vyavstha probably started during the time of king Prithu. Slowly Jaatis may have become more important as communities stayed together to safeguard themselves, to keep talent intact, and to pass it to next generation. Jaatis became more prominent to save that specific gene pool.

Jaati is by birth. Ja means birth. Think of words Janam, Janani, Janam Bhoomi, etc. Jaati is a lineage or family vocation. There are many Jaatis. Some examples are Odda, Kumhar, Lohar. Jaati remains the same from birth to death.

Varn is by choice. Var is a choice. Swayamvar-- self-choice.

There are many Jaatis but only four varns. It was called Chathur Varn vyavstha/system.These four varns are not in a hierarchical system. These are not vertical. These are horizontal, which means all varns are equal. None is better and none is worse. Varn may change many times in one life. It may change every moment.

The four varns are-

  • Shudra or growers/producers. Sudras are ones who make others life better and who can be trusted.
  • Vaishya or givers/traders, donations
  • Kshatriya or guards/protectors
  • Brahmin or guides/ lawmakers/advisors

The varn system applies to people in Grahasth ashram only, not in Bhramcharya, Vaanprasth, and Sanyas Aashram. People in Grahstha ashram take care of people in Bhramcharya, Vanaprastha, and Sanyas Aashram.

In Sanatan Dharm the respect, identity, importance, work, virtues, character, etc. are not based on the Jaati. It is karm which is important. Birth in a particular family does not give or deny rights and opportunities.

Krishn was born in the Yadav family. Think- Iswar took birth in the Yadav(OBC) family. He is still Ishwar. He was also Kshatriya as he fought with many bad people, demons, etc. He was also a common man/worker. He used to take cows for grazing. He was also a charioteer.

Baba Ramdev was born in a Yadav family but became a saint and many people give him respect.

Krishn Dwaipyana Ved Vyas was the son of Rishi Parashar whose father was a dog eater and mother Satyavati was a fisherwoman.

Devvrit or Bhishm was the son of Devi Ganga and Kshatriya Satyavrat.

Ved Vyas had four sons--Pandu and Dhrithrastra were Kshatriya, Sukha was Brahmin, and Vidur (son of Ved Vyas and a daasi) was considered a Brahmin.

Maa Amritamai is Dalit by birth but people from all over the world hug her.

Ugrashravas Sauti (Sanskrit: उग्रश्रवस् सौती, also Ugraśravas, Sauti, Sūta, Śri Sūta, Suta Goswami) was the narrator of Mahābhārata and several Puranas including Shiva Purana, Bhagavata Purana,Harivamsa, Brahmavaivarta Purana, and Padma Purana, with the narrations typically taking place before the sages gathered in Naimisha Forest. He was the son of Lomaharshana (or Romaharshana), and a disciple of Vyasa, the author of Mahābhārata. Ugrasrava was a Sutā by caste, as he was born of a Kshatriya father and Brahmin mother.

Sant Tukaram--Born in Vaishya family.

Sant Surdas-- He was blind since birth. Left his family at a very early age.

Haridasa Thakur-- Born in a muslim family. Became a Hindu saint.

Some Brahmins who were not born to a Brahmin mother and father:

  • Atharvan
  • Braghu
  • Valmiki
  • Vashist
  • Vishwamitr
  • Parashar
  • Ved Vyas
  • Kalidas
  • Jivaka
  • Vidur
  • Satyakama Jabala
  • Valmiki
  • Sant Ravidas
  • Kanchipurna
  • King Janak had extensive knowledge and was known for conducting debates between Brahmins.

Parshuram was a born brahmin but he fought like a warrior and became Kshatriya. Dronacharya was a brahmin but he participated in Kurushetra war and fought like a kshatriya.
In the play MrichhaKatikam, Charudatta is shown as Brahmin by birth, but he takes up business/Vaishya dharma as his vocation. He is shown to have extramarital relations with his courtesan Vasantsena. This was considered normal and was even apparantly approved by his wife.
There are some rituals which can be done by only fisherman or barber.
Brahmins can not be priests in large section of temples.

Varn is not a fixed entity. Varn can be changed by acquiring new knowledge and skills or we can say based on karm. I am a doctor, what is my varn? Am I a sudra as I touch vomitings, dirty secretions, blood, etc. or am I a brahmin as I studied hard for many years and gained the skills to save lives? When a mother cleans her child's excreta, she is a shudra; when she feeds him, she is a vaishya; when she protects him, she is a Kshatriya; when she teaches him, she is a brahmin. जब एक माँ अपने बच्चे का लालन पालन करती है,अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है तो वो शूद्र हो जाती है. वो ही बच्चा जब बड़ा होता है तो माँ नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है तो वो क्षत्रिय हो जाती है. जब बच्चा और बड़ा होता है तो माँ उसे शिक्षित करती है तब वो ब्राह्मण हो जाती है.और अंत में, जब बच्चा और बड़ा होता है तो माँ उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर अपना वैश्य धर्म निभाती है.

Shudras have extensive knowledge of some issues, they are brahmin in that area.

In the western world, you will see a concept similar to Jaati. Do you remember coming across the last name Shoemaker, Taylor, Carpenter, Goldsmith? What are these? These are Jaati names, these are names of their family profession. Person X Shoemaker may be a doctor. The doctor is his varn, the shoemaker is his jaati.

Following is a Whatsapp forward:

एकगोत्रमेंशादीक्योंवर्जितहै??👇👇

पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता। अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होत है और पुरुष में xy होते है। इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही ! और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है।

१. xx गुणसूत्र ;- xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है।

२. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है।

तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है। बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।

वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । Y Chromosome and the Vedic Gotra System अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है।

उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल है । चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारन है की विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है।

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारन यह है की एक ही गोत्र से होने के कारन वह पुरुष व् स्त्री भाई बहिन कहलाये क्यू की उनका पूर्वज एक ही है। परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही? की जिन स्त्री व् पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहिन हो गये??

इसका एक मुख्य कारन एक ही गोत्र होने के कारन गुणसूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी।

ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था। इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके, इसलिये विवाह से पहले #कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है, यही कारण था कि विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था। क्योंकि, कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है।

इसीलिये, कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने से ज्यादा सावधानी बरती जाती है। आत्मज़् या आत्मजा का सन्धिविच्छेद तो कीजिये। आत्म+ज या आत्म+जा। आत्म=मैं, ज या जा =जन्मा या जन्मी। यानी जो मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ। यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है। यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है। फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा, फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा, इस तरह से सातवीं पीढ़ी मेंपुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा।

अर्थात, एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है, और यही है सात जन्मों का साथ। लेकिन, जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है, और यही क्रम अनवरत चलता रहता है, जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं, अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है। इसीलिये, अपने ही अंश को पित्तर जन्मों जन्म तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रधेय भाव रखते हुए आशीर्वाद आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं, और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है, और सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है।

एक बात और, माता पिता यदि कन्यादान करते हैं, तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं, बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये। डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है, गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है। तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी यानी उसके गोत्र और डीएनए को करप्ट नहीं करेगी, वर्णसंकर नहीं करेगी, क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये #रज् का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है। यही कारण है कि हर विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है। यह रजदान भी कन्यादान की तरह उत्तम दान है जो पति को किया जाता है।

यह सुचिता अन्य किसी सभ्यता में दृश्य ही नहीं है।


प्रयाग स्थिति ऋषि भारद्वाज आश्रम
भगवान श्रीराम इस आश्रम में रुके थे
भारद्वाज गोत्र के लोग प्रत्येक वर्ग में हैं

बंदगांव के उपाध्याय- बंदोपाध्याय/ बनर्जी
चटगांव के उपाध्याय- चटोपाध्याय/ चटर्जी
मुखगांव के उपाध्याय- मुखोपाध्याय/ मुखर्जी
गंगासागर के उपाध्याय- गंगोपाध्याय/ गांगुली

Bharti Raizada

A doctor is a Vaidya in Hindu thought. It is itself derived from the base word Vid, Vidya. The Vaidya were practitioners and safekeepers of the knowledgebase called Ayurveda and Atharvaveda from which Ayurveda is derived. As they are teachers and upkeepers of knowledge of the medical practice they are Brahmana by choice of profession, despite their handling of human matter and offering medical service to the ill. Even in present times, doctors straddle the realm of academics and medical services. It is one of the greatest humanitarian services.

Truth is a blend of Science and Spritiuality? Neither one alone is complete knowledge.
Even a Shudra is not one who is to be identified with what he/she handles or works with? It is based on what is the objective of your efforts

  • preservation and sustenance of Knowledge and Spirituality- Brahmin
  • preservation and sustenance of Society / Kingdom / Subjects- Kshatriya
  • preservation and sustenance of All Forms of Material Wealth- Vaishya
  • preservation and sustenance of Nature and those dependent on it - Shudra

Association of Sudra with menial labour and filth is a left over of colonial history.

Everyone is made up of three Gunas(guns) in different proportions. These three gunas are Satvik, Rajsik, and Tamsik. These gunas effect six dimensions of mind which are Jananam, Karm, Karta, Buddhi, Dhrithi, and Sukham. Effect of guns on six dimensions of mind makes Swabhav which in turn decides Varn. There is a primary varn and then there are secondary varns. We are in a constant mode of change of varn.

Satvik gun knows that there is one reality in all and that all are interrelated. He has non egoistic enthusiasm, knows what is wrong and what is right, has the ability to keep one bigger goal in mind, and then work on it towards a logical end. He has the unmoved determination and balanced and disciplined life.

A person with Rajsik gun believes that all entities are different. He is desirous of fruits of action. He has a wrong understanding of dharm and adharm. He gives priority to pleasure from external sense organs.

A person with Tamsik guns thinks that the reality is only him. He has no knowledge of the truth. He does not shy away from vulgarness, cheating, and malicious actions. He is confused and in illusion, delusion. He is lazy and blind to realization.

  • Brahmin has long term vision and understanding. His characteristics are tap, shama, shauch, shanti, jananam, vijnanam, etc.
  • Kshatriya has leadership quality and his characteristics are shaurya, tej, dhriti, apalayanam, daan, reverence to Ishwar, etc.
  • Vaishya has good relationships and his characteristics are vanijayam, gau raksha, and krishi.
  • Shudra is good in execution and his characteristics are seva or paricharya.

Important is to do swadhyay of our own gunas, do tap and follow swadharm. This is the path to Moksha.


Interesting

  • Divergent series, a Hollywood franchise is based on varn system.
  • Star wars was an inspiration from Ramayan.
  • Matrix movie series is based on hindu dharm.

Question

If a brahmin, Kshatriya, vaishya, or shudra is employed, means if he is working on a salary, what is his varn?

One answer- It depends on the swabhav with which he is doing that work.

  1. Let's take the previous example of mother cleaning, feeding, protecting, and teaching her child.

She can do exactly the same tasks with different swabhav. She can do these with characteristics of a brahmin, Kshatriya, vaishya, or shudra. e.g. she may love him unconditionally, do all needed work with no attachment and desires of fruit, or she may do these tasks as a liability and thinking that she is being forced to do it as there is no other choice, or she may neglect the child or may abuse him.

  1. Take an example of brahmin. He may pass knowledge to the next generation selflessly or may prefer to charge monetary value or may prefer to go on TV for fame. These characteristics are based on his guna combination and inturn decide his varn.

Caste:

Casta is root word in Spanish-Portuguese.
Europeans started caste system in Mexico. Britishers started caste system in India. SriLankan caste system was started by Dutch. Spain started caste system in Philippines.
Four castes in England were Noble, King, Knights, and Peasants. The three castes in France were Nobility, Clergy, and Peasant.
Gongfermours were outcast in England. Romanis were outcastes.Unehrliche Leute were outcasts of Germany. Cagots were considered untouchables.

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शूद्रदलितअछूतऔरमंदिर

हजारों साल से #शूद्र_दलित मंदिरों मे पूजा करते आ रहे थे पर अचानक 19वी शताब्दी में ऐसा क्या हुआ कि दलितों को 5 साल मंदिरों मे प्रवेश नकार दिया गया? क्या आप सबको इसका सही कारण मालूम है? या सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली दे देते हैं ?

पढिये सबूत के साथ क्या हुआ था उस समय ? अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है? ये काम पुजारी करते थे कि मक्कार अंग्रेजो के लूटपाट का षडयंत्र था?

1932 में #लोथियन_कॉमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ आंबेडकर ने अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उदाहरण पेश किया है वह वही लिस्ट है जो अंग्रेजो ने कंगाल यानि गरीब लोगों की लिस्ट बनाई थी जो मन्दिर में घुसने देने के लिए अंग्रेजों द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे जिसे वर्तमान समय के लेखक और इतिहासकार समाज को दूषित और विभाजित-विखंडित करने में प्रयोग कर रहे हैं...

षडयंत्र : -- मित्रों 1808ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी के जगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में लेती है और फिर लोगो से कर बसूला जाता है तीर्थ यात्रा के नाम पर । चार ग्रुप बनाए जाते हैं और चौथा ग्रुप जो कंगाल है उनकी एक लिस्ट जारी की जाती हैं।

1932 ई० में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं तो वे ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं जिसे वर्तमान समय के लेखक और इतिहासकार जानकर भी आपके समक्ष बताना नहीं चाहते..

भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला।जिससे अरबो रूपये सीधे अंग्रेजो के खजाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे। श्रद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था : - ▪️प्रथम श्रेणी = लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री )
▪️द्वितीय श्रेणी = निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री )
▪️तृतीय श्रेणी = भुरंग ( यात्री जो दो रुपया दे सके )
▪️चतुर्थ श्रेणी = पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही ,तलासी लेने के बाद )
चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं : --

  1. लोली या कुस्बी!
  2. कुलाल या सोनारी!
    3.मछुवा!
    4.नामसुंदर या चंडाल
    5.घोस्की
    6.गजुर
    7.बागड़ी
    8.जोगी
    9.कहार
  3. राजबंशी
    11.पीरैली
  4. चमार
    13.डोम
    14.पौन
    15.टोर
    16.बनमाली
    17.हड्डी
    प्रथम श्रेणी से 10 रूपये!
    द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये!
    तृतीय श्रेणी से 2 रूपये और चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही!
    अब जो कंगाल की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था ।
    आप यदि उस समय 10 रूपये भर सकते तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जायेंगे ।

डॉ_आंबेडकर ने अपनी #Lothian_Commtee_Report में इसी लिस्ट का जिक्र किया है और कहा की कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे।

पढिये : -
"In regard to the depressed classes of Bengal there is an important piece of evidence to which I should like to call attention and which goes to show that the list given in the Bengal Census of 1911 is a correct enumeration of caste which have been traditionally treated as untouchable castes in Bengal. I refer to Section 7 of Regulation IV of 1809 (A regulation for rescinding Regulations IV and V of 1806 ; and for substituting rules in lieu of those enacted in the said regulations for levying duties from the pilgrims resorting to Jagannath, and for the superintendence and management of the affairs of the temple; passed by the Governor-General in Council, on the 28th of April 1809) which gives the following list of castes which were debarred from entering the temple of Jagannath at Puri : (1) Loli or Kashi, (2) Kalal or Sunri, (3) Machhua, (4) Namasudra or Chandal, (5) Ghuski, (6) Gazur, (7) Bagdi, (8) Jogi or Nurbaf, (9) Kahar-Bauri and Dulia, (10) Rajbansi, (II) Pirali, (12) Chamar, (13) Dom, (14) Pan, (15) Tiyar, (16) Bhuinnali, and (17) Hari.
The enumeration agrees with the list of 1911 Census and thus lends support to its correctness. Incidentally it shows that a period of 100 years made no change in the social status of the untouchables of Bengal.

बाद में वही कंगाल षडयंत्र के तहत अछूत बनाये गए ।
सनातन धर्म में छुआछुत किसी जाति विशेष के लिए कभी था ही नहीं।यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओ के श्मशानघाट और चिता अलग अलग होती।

और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता।

ये जातिवाद अन्य धर्मों में है इन में जातियों और फिरको के हिसाब से अलग अलग प्रार्थना स्थल और अलग अलग इबादतगाह और अलग अलग कब्रिस्तान बने हैं।

हिन्दूऔ में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद,धर्मनिपेक्षवाद, जड़वाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 1000 वर्षों से अरब आक्रमणकारियों और अग्रेजी शासको ने षडयंत्र से डाला है ।

भारतीय इतिहास और Lothian Commtee Report


PUNJABI ARORAअरोड़ा/ਅਰੋੜਾ community has lineage links to SURYAVANSHA group of Lord Rama......and predominantly they inhabited the areas of West Punjab in modern Pakistan along the banks of the Indus River and its tributaries........and many of them were relocated after the partition of 1947.....!
The famous ARORAS.....Noble laureate Hargobind Khorana, Astronaut Kalpana Chawla, General Harbaksh Singh, Lt. General Jagjit Singh Aurora, and Commonwealth Games gold medalist Gagan Narang and the Haryana Chief Minister Manohar Lal Khatter and ALL OTHER stalwarts who built AIIMS, PGI, IITS and many institutions-of-repute....... have their roots in that INDUS RIVER BELT.....Multan, Bahawalpur, Dera Ghazi Khan, Muzaffargarh, Dera Ismail Khan, Kot Sultan and Khanewal......and surrounding Sindh province......!
Many prominent historical figures and sikh gurus have been Khatris. All ten Sikh Gurus were Khatri, belonging to the Bedi, Trehan, Bhalla and Sodhi subcastes. Raja Todar Mal was a Khatri (Tandon) too.
The KHATRIखत्री community are closely related genetically and.....tests have shown that Aroras,and Khatris are strongly clustered together genetically, and also they are closer to Brahmin than to Vaish and Scheduled Castes....!
ARORAS and KHATRIS resemble each other in almost all the traits, physical attributes, energy, vibrancy and zeal...... so much so that .
an All-India meeting in 1936, held by the Khatris at Lahore (Pakistan)....decided that the Aroras, Soods and Bhatias were Khatri for all intents and purposes....!
BUT THEY DIFFER subtly.....
THOUGH sibling kind......In certain respects...ARORAS are even superior to KHATRIS.....God-fearing, timid-law-abiding, never-hurting and ever trusting naive kind......believing in goodness of all probably because they lived more near to the LAND of SUFISसूफी, DERVESHESदरवेश and Kalandarsकलंदर...... that MULTAN and interior INDUS belt has been.......and KHATRI being on the trade route became more worldly-wise and pragmatic kind.......!
The Aroras and Khatris were both engaged in trade in Central Asia...but KHATRIS were more concentrated on administrative and military routes of MUGHALS and they played an important role in India's trans regional trade during the Mughal Empire......and ARORAS concentrated in interiors of west-Punjab developed agriculture and related skills....!
THE self-respecting community of ARORA and KHATRI are currently settled mainly in Punjab, Haryana, Himachal Pradesh, Delhi, Jammu, Rajasthan, Uttar Pradesh, Uttarakhand and Gujarat......!
PENNILESS after partition, they never asked for any reservation, freebies or the alms.....and by sheer hard-work, integrity, intelligence, skills and entrepreneurship....! THEY lived with character.....!

Khatri%20and%20Aurora

The surnames Malhotra, Arora, Kapoor, Khanna, Chopra, Nanda, Khullar, Sodhi, Bedi, Sehgal, Thapar and Mehra belong to only one broader caste “khatri“.

As per the Government of India records, "Khatri” is a popular variant of the Sanskrit word Kshatriya, which was used to describe the warrior caste among the Hindus according to the Varanashram propounded by the Shastras".

According to the Britishers The Khatris were the backbone of Indian trade with central Asia. Due to the high values and good education they survived even in the hardest times of Aurangjeb and Shahjahan.

All the Sikh gurus were Khatri. Real names of gurus are

  • Guru Nanak Dev Bedi
  • Guru Angad Dev Trehan
  • Guru Amar Das Bhalla
  • Guru Ram Das Sodhi
  • Guru Arjan Dev Sodhi
  • Guru Har Gobind Sodhi
  • Guru Har Rai Sodhi
  • Guru Har Krishan Sodhi
  • Guru Tegh Bahadur Sodhi
  • Guru Gobind Singh Sodhi

Some of the Khatris have good history with their name and place as given below.

Arora: They belong to the Aror town (near Sukkur ) situated in the Sind province of Pakistan on the banks of Indus river hence called Arora. After the partition in 1947, maximum proportion of Aroras came to India.

Khanna: They belong to a small town Khanna in Ludhiana district of Indian Punjab. Khanna is a Punjabi word, which means one quarter (1/4 or 0.25). The city was named thus because it used to be very small, just a quarter of what a normal city should be. Khanna and Arora both are closely related to Khatri caste.

Kapoor: Kapoors are termed as descendents of Moon i.e. as white as moon. Camphor “ Hindi Kapur” is as white as full moon so termed as Kapoor. They belong to Kapurthala state of Punjab. Kapoor or Kapur is a surname in the Kaushal Gotra of the Punjabi Khatri community of India. Kapoors are Hindus in terms of religion and tradition, and belong to the Bahari Baradari, a sub-caste of Khatri .

Malhotra: Malhotra is a surname based on the name of a clan in the Khatri community. It is a modified form of Mehrotra, which is itself an extended form of Mehra (Panjabi mehra or Mera means 'chief' or 'master'). Founder of the Malhotra clan is said to have been called Mehr Chand.

The origin of other non-khatri Indian surnames. Answer is a little lengthy yet enjoyable.

Deshpande, Deshmukh, Kulkarni & Patil : All these surnames are found predominately in Maharashtra.

Deshpande is a surname having origins in Maharashtra. The surname is also used in Karnataka. It was a title conferred on officers responsible for record keeping at Pargana level (modern equivalent of district) .
The chief of the pargana were called Deshmukh.
Their equivalent at village level were Kulkarni (mainly accountants) .
The persons responsible for the development and security of village were known as Patil (Village chief).
Godbole : Godbole (Marathi : गोडबोले) is a surname from Kokanastha Brahmins or Chitpavan Brahmins from Western Maharashtra (Western Coast of India), and also used by Rajapur Saraswat Brahmins. Godbole actually means “meethi zuban bolne wale translation : sweet tongued” in Marathi.

Jain: This surname is the modified name of word jaina which was derived from Sanskrit word Jina or 'follower of Jina'. Jina, meaning 'triumphant', is an epithet for a saint of the Jain religion. They are mainly distributed in the Gujarat, Rajasthan, Western MP and North west Maharashtra.

Agrawal and Agarwal : Members of the Agrawal community are known for their business acumen and have for many years been influential and prosperous in India.

Agrawal means the "children of Agrasena" or the "people of Agroha ", a city in ancient Kuru Kingdom. Now it is near to the city of Hisar in Haryana said to be founded by legendery King Agrasena. He was among one of the greatest Kings of India. He was the descendant of Solar Dynasty who later adopted Vanik Dharm.

Where as Agarwals are slightly different from agrawals. According to a legend , earlier they were called as Agarwale means the inhabitants of the ancient city “Agar”. Agar is a small city located 65 kms from Ujjain. Agar was the most important city to the Parmar dynasty after Dhar and Avantika (Ujjain).

Sindhi: Unlike Hindus of India, who have a 'gotra', Sindhis often have a 'nukh', which means roots. Almost 90% surnames have been followed by “Ani” or “Ja” in Sindhis like Moolchandani, Bhavnani, Ramchandani, Advani, Raheja, Makhija etc. Ramchandani means the descendents of Ramchand, here Ramchand could be name of an ancestor or village. Same thing applies on the Juneja, Tuteja etc.

Khan: The ancient surname Khan is a contracted form of Khagan, from the Turkish language meaning "chief or ruler." It was originally a hereditary title born by early Mongol leaders, such as the legendary Genghis Khan, but is now widely used as a surname throughout the Muslim world.

There is much more to Indian Muslim surnames as caste played an important role as did vocation of the original families in surnames they were allowed to take. Khans were often Rajputs/ Kshatriyas while Darvesh were priests.

Shetty: They are Hindus and Jains from the coastal areas of Karnataka and Cauvery belt. Primarily they are farmers and pastorals but now spread in all the business domains. They are different from cognate Seth or Sethi which were basically land lords.

Brahmins: Most of the Brahmins were given their last names on the basis of knowledge they possessed.

Dwivedi/Trivedi/Chaturvedi were known for the number of Vedas they expertise. Same is true for Tripathi also.

Upadhyay were those who had special skills of teachings and were the spiritual advisors of the king. Vyas or Byas were those who had got an expertise in the recital of Bhagvat Purana and Bhagvat Gita.

Pandey was the title given to the chief priests (pandits) and those who had expertise in post death rituals.

Mishra was the title given to those priests who had expertise in all kind of Brahmin duties.

Parashar: They are the ancestors of one of the greatest scholar of vedic era “Parashara”. Large tracts of ancient India was controlled by northern India therefore they are mostly found in North India.
Shukla was the title given to the reciters of the Shukl Yajurveda (Yajurveda has two parts, Shukl and Krishn).

The lineage of many ancient Rishis explain their ancestry e.g. Bharadwaj, Dadhichi, Bhargava...

Verma: Verma, Varma, Burma, Barma, Vurma, Barman, Varman are the same and one and mostly the inhabitants of India and South East Asia. In ancient culture “Verma “ title was given to the kshatriya warriors who were very firm, and shield like.

Yadav: The term Yadav (or sometimes Yadava) has been interpreted to mean a descendant of “Yadu”, who was a mighty king.
The term “Yadav” covers many castes which initially had different names, Ahir in the UP, Haryana, Bihar, Punjab and Gujarat, Gavli in Maharashtra and MP, Gola in Andhra Pradesh and Karnataka etc. Their traditional common business was that of herdsmen, cowherds and milksellers all over the Indian subcontinent.

Srivastava : According to one explanation, the name "Shrivastava" originates from "Shrivastu", the former name of the Swat River, said to be the place of origin of this clan. Swat river is situated in the Khyber province of North West province. Srivastava is a common surname in Northern India, notably among Kayasthas. However, recent times have also seen this surname used in other communities. Spelling variations include Shreevastava, Shrivastav, Shrivastava, Shrivastva, Srivastav, Srivastva, Srivastava, Sriwastaw and Srivastwa

Sharma: Did a lot of research for the origin of Sharma surname but got ambiguous answers. But most common and widely known sources suggests that “ancient sharmas were the upper class Brahmins who had achieved the highest level of concentrations. They were the peer Yogis who were always in joy and known as accomplished well wishers. They were living in shelters not in the houses during the ultimate years of their lives.” Later on due to the immense respect of Sharma surname, some non Brahmins and undeserving people also started using Sharma.

An alternative English spelling of the name used in the city of Varanasi and the Indian states of Assam, Andhra Pradesh and Kerala is "Sarma". Some Assamese people also use Surma but that is due to the river “ Surma” flowing in the lower Assam and Sylhet district Bangladesh.

On request

In the messages and comments some of the readers requested me to tell about Tendulkar surname.

Well I will tell you about this surname but take the bonus of Ambedkar, Gavaskar, Savarkar and Mangeshkar first. “Kar” means the suffix of the village associated.

Ambedkar : The original surname Ambavadekar comes from the native village ‘Ambavade’ in Ratnagiri district. Dr. Bhimrao Ambedkar's original surname was Sakpal but his father registered his surname Ambadawekar in school. His Brahmin teacher, Krishnaji Keshav Ambedkar, who was fond of him, changed his surname 'Ambadawekar' to his own surname 'Ambedkar' to pronounce easily in the school records.

Gavaskar: They came from the Gavaswadi Village in Kudal Taluka (Kudal is a legislative seat also) in the Sindhudurg District of Maharashtra.

Mangeshkar: Earlier the surname of Deenanath ji (Father of great Lata Mangeshkar) was Hardikar but he changed it to Mangeshkar in order to identify his family with his native town Mangeshi. Mangeshi is located near Priol Ponda at Goa-Maharastra border.

Savarkar : Vinayak Damodarji Savarkar - One of the greatest personality of Indian history had this surname. His original surname was Bapat but his forefathers changed the surname in order to identify their family with their native village Savarwadi in Palshet village of Guhagar taluka in Konkan region. Name Savarwadi came from the plentiful trees of “Saanwari ( or Saavari) in the area which is used to yield a type of soft cotton Shevari.


Bharti Raizada

एक आदमी ने महिला से पूछा- तम्हारी जाति क्या है?
महिला ने उल्टा ही पूछ लिया- एक मां की या एक महिला की
उसने कहा चलो दोनों की बता दो और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बिखेरी।
महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया एक महिला जब माँ बनती है, तो वो जाति-विहीन हो जाती है,
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा वो कैसे?
जबाब मिला कि
जब एक माँ अपने बच्चे का लालन पालन करती है,अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है, तो वो शूद्र हो जाती है
वो ही बच्चा जब बड़ा होता है तो माँ नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है
जब बच्चा और बड़ा होता है, तो माँ उसे शिक्षित करती है, तब वो ब्राह्मण हो जाती है
और अंत में जब बच्चा और बड़ा होता है तो माँ उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर अपना वैश्य धर्म निभाती है तो अब बताओ कि हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन

Jaati

Jaati1

This hymn (Rig Veda 10:90) refers not to “Lord Brahma” at all but to Purusha: the primordial cosmic principle personified as male human consciousness. In verse 12, Purusha (i.e., universal consciousness) is described as giving rise to four “varnas”: Brahmin, Kshatriya, Vaishya, and Shudra.
Importantly, the term “varna” does not refer to any system of social distinction—let alone caste—but to combinations of inherent qualities that any individual may choose to develop.
The anatomical correlates of the four varnas within Purusha: the mouth for Brahmins, the arms for Rajanyas (Kshatriyas), the thighs for Vaishyas, and the feet for Shudras, might suggest a hierarchical relationship between them if considered in isolation. However, the following verse (13) of the Purusha Sukta destroys any notion of a hierarchical metaphor. It states: “The Moon was gendered from Purusha’s mind, and from his eye the Sun had birth; Indra and Agni from his mouth were born, and Vayu from his breath.”
It’s clear that in context, the relative anatomy of Purusha does not represent a linear order of superiors and inferiors. If it did, one would have to consider the moon superior to the sun, and the sun in turn superior to Indra and Agni. In Vedic theology, Indra is King of the Gods and Agni stands second only to Indra; it is ludicrous to think of the moon (Chandra), a relatively minor deity, outranking either of those figures.
In verse 14, the Purusha Sukta goes on to describe how the earth itself originated from Purusha’s feet, and extraterrestrial space from his navel—establishing yet again the irrelevance of social hierarchies to its bodily allegory.
By Kartik Mohan, CoHNA

Endogamy

Aacharya Kamlakant Bahuguna:
चिन्तन के पल
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारन के बेटे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे, उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे और पहले डाकू थे।तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद मानकर की बेटी थी बहुत बड़ी शिवभक्त थी, इंदौर में राज चलाया ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन
रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
कार्य की जगह जन्म आधारित जातीय व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से ख़ुद भी बचें और औरों को भी बचाएं ।

How can caste system and untouchability survive-- People use same land( Upper caste people need lower caste people to work on their land), same air, Same water as it comes in wells from under the earth.

Maulana sahib, who will go to heaven, Hindu or Christian?
Maulana -- only Muslim he said (angry tone)
OK, which Muslim? Shia or Sunni.?
Maulana immediately spoke ---
Sunni of course.
There are 2 classes in Sunni, which of them?
Muqallid, ya non-Muqallid.?
Maulana immediately spoke--
Only Muqallid will go!
Yes, there are four in Muqallid. Who among them will go to heaven?
Maulana said very leisurely ----
only Hanafi, who else?
Yes, but in Hanafi there are both Deobandi and Barelvi, then who among them will go to heaven???..
Maulana replied-----
"Brother, only my Deobandi are entitled to go to heaven.
thank you very much, but Maulana sahib..... even in debbandi there are 2.......
Hayati and Mamati
So who among them will go to heaven?*
After this Maulana saheb used abusive words and walked away...!!
and people make fun of casteism among Hindus !!


Let's begin to understand caste by some questions.

  1. How to identify a "caste" in a person?
  2. Let's say, a child was orphaned. what caste does it belong to?
  3. If two people from different "castes" marry, what would be the "caste" of the child?
  4. When the marriage is between "high" and "low" caste, will the child belong to "high" or "low" caste?
  5. How to create a "caste"?
  6. Who is authorized to create a "caste"?
  7. Since caste is oppressive, can someone drop out of a "caste" and become "caste free"?
  8. Does the state offer any incentive to become "caste free"?
  9. It is assumed that caste is native to India. So, how did caste occur in Mexico, Rwanda, Brazil etc?
  10. Why caste is not defined in the Indian constitution, if it central to Hindu way of life?

Hindu literature specifically says "varna" is NOT based on birth. Varna is purely based on actions and qualities.
"Jati" literally means birth. Jati and varna are like apples and trucks. Many trucks carry the same apple until it reaches its destination. Same way, anyone born has a Jati, who may belong to different varnas at different periods of time depending on their actions. A good example: VisvaMitra.

On top of this, Hindus have Gothram and Kulam.
Multiple "Jatis" can belong to the same "Gotham", which simply means they had the same ancestor long long back in time.

Let's have more questions,

  1. "Brahmin" is a name of a varna. How did become a "caste", which is based on birth?
  2. The Shudras are called "vellalar" in Tamil ( Ref: Tholkappiam). Today "vellalars" are identified as "high" castes. How?
  3. kshatria "castes" are considered "low" or "backward". Aren't they supposed to be rulers?
  4. Most castes have no reference to hindu literature. What is the basis of these "castes"?

Our scriptures are non-discriminatory fundamentally. Cases of discrimination were anecdotes and in general everyone was treated equally historically.

Just like the varna system in India, there were social structures in Europe and Japan. In Japan, there were 4 classes. The royalty and landed aristocracy, the professional class, the Samurais (akin to Kshatrias) and the peasants (akin to shudras). The only social movement that was possible was to become a Samurai. All other social levels were compartmentalized. Similar were the structures in Russia, France, England and other countries. They had professional guilds for most professions which again is akin to Jati.

In the European social system, the word "caste" is usually applied to a closed social group with exclusive privileges, but it is not necessarily based on birth or ethnicity.
Christian priests / clergy for example do not pass the position to their children, and easily accept members of various ethnic groups.
Professional guilds were never strictly hereditary but they have a sort of "adoption" system similar to the Vedic guru kula.
Royalty became a hereditary matter only in the middle ages, but not as a caste because foreigners could become kings and queens, although the population tended to generally mistrust "strangers".
Landed aristocracy or gentry was generally hereditary, but kings were normally giving titles to meritorious persons even from low born background, and clans also accepted members by adoption.
This was common especially in the ancient Roman society.
In colonies of European Christian kingdoms, racism was introduced on the basis of the Bible categorizing 3 ethnic groups as descendants of the 3 sons of Noah (Shem, Cam/Canaan and Japhet).
Shem was considered the ancestor of Semitic people, especially the Jews.
Cam/ Canaan was considered the ancestor of black people, cursed to be slaves forever.
Japhet was considered the ancestor of white/ Caucasian people.
Intermixing of these 3 races was considered sinful.
Some degree of confusion arose later because there was no accounting for brown, yellow and red people, so the Aryan Invasion Theory was created to give prominence to whites, and bunching all others as "mixed races", excluding blacks and Jews who were considered accounted for.
So the "mixed races" came to be considered a sort of alloy of inferior quality.
The word casta in Portuguese literally means "alloy" as in "cast iron" for example.

Brahmanas (wise men) have self-control, austerity, purity, tolerance, mercy, balance, truthfulness, honesty, contentment, devotion to God, love and equal vision for all. They guide the society.

Kshatriyas (warriors) have strength, dynamism, tolerance, generosity, steadiness and devotion to the learned. They protect and rule the society.

Vaisyas (businessmen) have desire to accumulate money and use it for Dharma, giving nature, lack of deceit and service to the learned. They move and supply goods within society.

Sudras (servicemen) have the ability to serve others and being contented with whatever they get from that service. They perform miscellaneous tasks in society.

Nonviolence, honesty, truthfulness, selflessness, desire for the welfare and happiness of others, and freedom from lust, anger and greed, are the BASIC qualities of ALL four varnas!!

Chandalas who fall outside of 4 varnas have dishonesty, impurity, lust, anger, selfishness, thievery and useless quarrel.

Cohna on caste.mpeg

मत कूदो जातिवाद में यह लड़ाई मुगलों ने कराई थी, राणा प्रताप ने तो भीलो के घर भी खीर खाई थी.
Ram ate half eaten ber from Shabri.

प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं।

प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।

Varna_JAti_Caste_pdf.pdf