Basant or Vasant means spring season. Indian culture has inherent reverence for nature and festivals inspire us to protect it.
Panchmi means fifth. Basant Panchami comes on the fifth day of Shukla Paksha of Magh month. Holi festival comes forty days after Basant Panchami.
On the day of Basant Panchami, people offer prayers to Devi Saraswati. She is the Devi of knowledge and takes us from darkness or ignorance to light or knowledge. People worship books, learning tools, musical instruments, arts, etc.
Devi Saraswati is also called as Vaghdevi- Devi of Vani- speech and sound.
Saraswati means perrineal flow of knowledge.
Devi Saraswati is usually depicted in white clothes holding Veena and books(Palm leaves with writtings on it) in her hands, and a peacock nearby. Her vehicle is white Hans. She sits on a white lotus. White color denotes purity.
This day is very auspicious to start education, learning, music, etc. (Vidhya Aarambh/Praasana). Small children start Akshar abhyas on this day( learn to write alphabets).
People wear yellow-colored clothes, decorate homes and shops with yellow flowers, and make yellow-colored food like saffron rice/yellow mittha rice, yellow besan laddoo, yellow moon dal ladoo, yellow Rasmalai, Rasgulla, Jalebi, Imarti, etc. People fly yellow kites also.
Agricultural fields bloom with yellow mustard in this season.
In Bali and Indonesia, this festival is celebrated with the name "Hari Raya Saraswati."
Saraswati is also the name of a sacred river of India.
देवी सरस्वती जो विद्या की प्रतीक है, मन में रहने वाली विचारात्मक वाणी है, जो 'मध्यमा' वाक् कहलाती है। । सरस्वती के लिए वेद में कहा गया है कि वह ज्ञान की बाढ़ लाती है, सूनृताओं को प्रेरित करती है और सुमतियों को जागृत करती है। 'सरस्'का अर्थ है मधुर ज्ञानधारा। एवं सरस्वती प्रशस्त ज्ञान धारावाली है। राष्ट्रीय में ज्ञान-विज्ञान की धार सदा बहती रहनी चाहिए। इसके लिए राजा और प्रजा दोनों का सतर्क रहना अनिवार्य है।
108 names of Devi Saraswati:
- Saraswati
- Mahabhadra
- Mahamaya
- Varaprada
- Padmanilaya
- Shripada
- Padmavaktraga
- Padmakshi
- Shivanuja
- Pustakabhrita
- Jnanamudra
- Rama
- Para
- Kamarupa
- Mahavidya
- Mahapataka Nashini
- Mahashraya
- Malini
- Mahabhoga
- Mahabhuja
- Mahabhaga
- Mahotsaha
- Divyanga
- Suravandita
- Mahakali
- Mahapasha
- Mahakara
- Mahankusha
- Pita
- Vimala
- Vishwa
- Vidyunmala
- Vaishnavi
- Chandrika
- Chandravadana
- Chandralekha
- Savitri
- Surasa
- Devi
- Divyalankarabhushita
- Vagdevi
- Vasudha
- Tivra
- Mahabhadra
- Mahabala
- Bhogada
- Bharati
- Bhama
- Gomati
- Govinda
- Shiva
- Jatila
- Vindhyavasa
- Vindhyachalavirajita
- Chandika
- Vaishnavi
- Brahmi
- Brahmajnanaikasadhana
- Saudamini
- Sudhamurti
- Subhadra
- Surapujita
- Suvasini
- Sunasa
- Vinidra
- Padmalochana
- Vidyarupa
- Vishalakshi
- Brahmajaya
- Mahaphala
- Trayimurti
- Trikalajna
- Triguna
- Shastrarupini
- Shumbhasura
- Shubhada
- Swaratmika
- Raktabijanihantri
- Chamunda
- Ambika
- Mundakayapraharana
- Dhumralochanamardana
- Sarvadevastuta
- Saumya
- Namaskrita
- Kalaratri
- Kaladhara
- Rupasaubhagyadayini
- Vagdevi
- Vararoha
- Varahi
- Varijasana
- Chitrambara
- Chitragandha
- Chitramalyavibhushita
- Kanta
- Kamaprada
- Vandya
- Vidyadharasupujita
- Shwetanana
- Nilabhuja
- Chaturvargaphalaprada
- Chaturanana Samrajya
- Raktamadhya
- Niranjana
- Hamsasana
- Nilajangha
- Brahmavishnushivatmika
https://www.omraizada.com/home/swan-hans-hamsa
Following are Whatsapp forwards:
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।।
अर्थात "ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।"
ऐसी मां सरस्वती का अवतरण दिवस..........
सम्राट पृथ्वीराज चौहान और वीर हकीकत राय का बलिदान दिवस......
कूका पंथ के संस्थापक गुरु राम सिंह कूका एवं
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म दिवस....
काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थापना दिवस.......
.... आदि ऐसे अनेक संस्मृतियों को याद दिलाने वाली वसंत पंचमी हम सभी के जीवन में नवोत्साह का संचार करें।
बहुत-बहुत शुभकामनाएं।...
मत चूको चौहान
वसन्त पंचमी का शौर्य
चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण! ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!
वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।
पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।
चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।
इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।
पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।
चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।
इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया
‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’
अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।
इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।
इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।
गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये.।
"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।"
🙏🙏 aap sabhi ko basant panchami ki shubhkaamnayein🌻🌻