आज तक जितनी शादियों मे मै गया हूँ, उनमे से करीब 90% में दुल्हा- दुल्हन की शक्ल तक नही देखी... उनका नाम तक नही जानता था... अक्सर तो विवाह समारोहों मे जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नही आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी करी, कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है...
भारत में लगभग हर विवाह में हम 75% फालतू जनता को invitation देते हैं ...
फालतू जनता वो है जिसे आपके विवाह मे कोई रुचि नही.. जो आपका केवल नाम जानती है... जो केवल आपके घर की लोकेशन जानती है.. जो केवल आपकी पद- प्रतिष्ठा जानती है..
और जो केवल एक वक्त के स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आती है...
ये होती है फालतू जनता..
विवाह कोई सत्यनारायण भगवान की कथा नही है कि हर आते जाते राह चलते को रोक रोक कर प्रसाद दिया जाए...
केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत close मित्रों के अलावा आपके विवाह मे किसी को रुचि नही होती..
ये ताम झाम, पंडाल झालर, सैकड़ों पकवान, आर्केस्ट्रा DJ, दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का काम करता है..
लोग आते हैं इसे देखते हैं और "मै भी ऐसा ही इंतजाम करूँगा, बल्कि इससे बेहतर"..
और लोग करते हैं... चाहे उनकी चमड़ी बिक जाए..
लोग 75% फालतू की जनता को show off करने में अपने जीवन भर की कमाई लुटा देते हैं.. लोन ले लेते हैं..
और उधर विवाह मे आमंत्रित फालतू जनता , गेस्ट हाउस के gate से अंदर सीधे भोजन तक पहुच कर, भोजन उदरस्थ करके, लिफाफा पकड़ा कर निकल लेती है..
आपके लाखों का ताम झाम उनकी आँखों में बस आधे घंटे के लिए पड़ता है,
पर आप उसकी किश्तें जीवन भर चुकाते हो...
इस अपव्यय और दिखावे को रोकना होगा..